कई बार आपने पढ़ा या सुना होगा “जब आप एक पुरुष को शिक्षित करते हैं तो केवल एक आदमी शिक्षित होता है लेकिन एक स्त्री के शिक्षित होने से पूरी पीढ़ी शिक्षित होती है।“ ठीक उसी तरह राजनिति की कमान अगर एक स्त्री के हाथ में है तो न केवल लोकतंत्र फलेगा-फूलेगा बल्कि उसकी बुनियाद भी जबरदस्त तरीके से मजबूत होगी और तभी होंगे ‘लोकतंत्र में चमत्कार वो भी एक नहीं कई बार’।
यह भी पढ़े : यूपी का ये दलित परिवार मौत क्यों मांग रहा है ?
आप बिल्कुल ठीक समझ रहे है। यहाँ बात हम राजनीती के आयरल लेडी बसपा (बहुजन समाज पार्टी) सुप्रीमों मायावती की कर रहे हैं। जो लोकतंत्र के इसी चमत्कार का बेहद नायाब उदाहरण है। जून 1995 में, जब मायावती पहली बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं, तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने उन्हें “लोकतंत्र का चमत्कार” कहा । शायद इसलिए कहा होगा क्योंकि अनुसूचित जाति की पहली महिला मायावती मुख्यमंत्री बनी थी।
यह भी पढ़े : बीएसपी का “गांव चलो अभियान” आइए जानते हैं क्या है इस अभियान का एजेंडा
लेकिन उस समय कोई नहीं जानता था कि ये चमत्कार एक बार नहीं बल्कि कई बार होगा और हुआ भी वही। बसपा सुप्रीमों मायावती ने एक बार नहीं बल्कि चार बार मुख्यमंत्री पद की कमान संभाली और राजनिति के दंगल में कई सारी राजनीतिक पतन की भविष्यवाणियों को निराधार बता दिया। यह सिलसिला अभी भी थमा नहीं है, जारी है। कई अन्य झूठ और निराधार भविष्यवाणियों को गलत साबित करना है।

यह भी पढ़े : राजस्थान : भरतपुर में परिवहन निरीक्षक ने किया दलित महिला का यौन उत्पीड़न, मामला दर्ज
बहनजी के लोकतंत्र में चमत्कार का सिलसिला तभी शुरू हो गया था जब 21 साल की मायावती से कांशीराम ने कहा था- तुम्हारे पीछे IAS अफसरों की लाइन लगा दूंगा। साल 1977 की बात है। मायावती उस वक्त 21 साल की थीं और दिल्ली के एक सरकारी प्राइमरी स्कूल में पढ़ाती थीं। कांशीराम ने दिल्ली के एक कार्यक्रम में मायावती को जोरदार भाषण देते सुना। मायावती के भाषण को सुनकर कांशीराम काफी प्रभावित हुए और उनके पिता से मायावती को राजनीति में भेजने की गुजारिश की, लेकिन जब पिता ने बात को टाल दिया तो मायावती ने अपना घर छोड़ दिया और वो पार्टी ऑफिस में रहने लगीं।
यह भी पढ़े : माफिया से जमीन छुटाने के लिए दलित परिवार यूपी में कर रहा गुहार।
3 जून 1995 को मायावती उत्तर प्रदेश की सबसे युवा और दलित महिला मुख्यमंत्री बनीं। 2001 में कांशीराम ने उन्हें अपना उत्तराधिकारी घोषित किया। कई सारे बीएसपी समर्थकों ने अपना हाथ और साथ पीछे खींच लिया लेकिन फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी वो अकेले लड़ती रही मजलूमों के लिए गरीबों के लिए। फिर चाहे वो गेस्ट हाउस कांड ही क्यों ना हो जहां पर 2 जून 1995 में बीएसपी मीटिंग के दौरान समाजवादी पार्टी के गुंडों ने अचानक धावा बोल दिया ताकि बहनजी डर कर राजनीति से वापसी कर लें ।
यह भी पढ़े : आनंद मोहन की रिहाई पर क्यों हो रहा है बवाल ?
लेकिन बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने कई सारे गुंडों को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया कई गुंडों को सलाखों के पीछे पहुंचाया और कई तो बहनजी के खौफ से अंडरग्राउंड हो गए। गेस्ट हाउस कांड से निकली मायावती चिंगारी बन चुकी थी जिसने मुलायम राज को भी बहुमत हासिल कर पटखनी दे दी और मुलायम राज औधे मुंह राजनीति मे धड़ाम से गिर गया। “उनका उत्तरप्रदेश में राज नहीं सुशासन था” ऐसा उत्तरप्रदेश के कोटवा गांव की मंजू देवी ने मायावती का शासन याद कर कहा कि, उनके शासन में न जुल्म था, न सितम चप्पे चप्पे पर पुलिस की तैनाती होती थी, गुंडे उनके नाम से ही थर-थर कांपने लगते थे।

यह भी पढ़े : “मायावती का ये दांव अखिलेश के लिए खतरा”
उनका नारा ख़ुद बताता है कि किस तरह उन्होंने उत्तरप्रदेश से गुंडाराज का खात्मा किया। जैसे- “चढ़ गुंडों की छाती पर मुहर लगेगी हाथी पर” ये नारे एक समय में उत्तरप्रदेश की हवाओं में गूंजते थे। वो सत्ता को बीजेपी और कांग्रेस से गठबंधन करके कभी पाना नहीं चहती क्योंकि वो बताती है कि एक दल सांपनाथ तो एक नागनाथ है इसलिए बीएसपी विपक्ष में बैठ जाएगी लेकिन बीजेपी और कांग्रेस के साथ नहीं जाएगी।
यह भी पढ़े : उत्तर प्रदेश : आगरा में दलित बेटी की शादी में उच्च जाति के दबंगों ने किया बवाल
सुप्रीमो जानती है वो अकेले ही काफ़ी है हर तूफ़ान से टकराने के लिए जुल्मों पर वार करने के लिए। वह बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। पार्टी के संस्थापक कांशी राम ने 2001 में मायावती को अपना उत्तराधिकारी नामित किया। उन्हें 2003 में अपने पहले कार्यकाल के लिए पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में चुना गया।
यह भी पढ़े : यूपी नगर निकाय चुनाव में मायावती का ये दांव सपा और बीजेपी को पड़ रहा है भारी
गौरतलब है कि बसपा प्रमुख मायावती उत्तर प्रदेश की चार बार (1995, 1997, 2002, 2007) मुख्यमंत्री रह चुकी है।

यह भी पढ़े : ज्योतिबा फुले ऐसे कहलाए थे महात्मा
दलित नेता के रूप में पहचान बनाने वाली मायावती ने हमेशा न केवल दलितों और मुसलमानों के विकास के लिए कार्य किया बल्कि सवर्णों को भी साथ लिया है और उनके साथ भी काम किया फिर चाहे वो उत्तरप्रदेश में भाजपा के समर्थन से सरकार बनाना ही क्यों न हो। जैसे उनका ये नारा ही बता देता है “हाथी नहीं गणेश है, ब्रह्मा-विष्णु-महेश है”। भारतीय राजनीति उनकी सक्रिय और बिंदास छवि की गवाह है।
यह भी पढ़े : उत्तरप्रदेश : ये दलित हैं, हवन नहीं कर सकते भगाओ इन्हें
आज “बहुजन हिताय बहुजन सुखाय” से “सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय” के सिद्धांत पर बीएसपी चलती है । कई बार सत्ता की बागडोर संभालने की उम्मीदें बनी और टूटी भी लेकिन उनकी राजनीति के अखाड़े में उतरने और जीतने की लगन कम नहीं हुई। लेकिन वो कहते है ना,”गिरते हैं शहसवार ही जंग-ए- मैदान में, वो तिफ़्ल क्या गिरे जो घुटनों के बल चले”!
फिर चाहे सवर्णों की धुर विरोधी होकर ही लोकतंत्र को मजबूत करना हो। उस दौरान उनकी पार्टी का प्रमुख नारा था- तिलक, तराजू और तलवार, इनको मारो जूते चार। शायद यह नारा भी इसलिए था कि कहीं लोकतंत्र महज़ सवर्णों के हाथ की कठपुतली बनकर न रह जाए ? वे समाज के हाशिए पर खड़े अंतिम व्यक्ति तक लोकतंत्र और राजनीति की पहुंच बनाना चाहती है।
यह भी पढ़े : क्या थी “बहिष्कृत हितकारणी सभा” जिसके पहले अधिवेशन ने बाबा साहेब अंबेडकर को कर दिया था निराश ?

अल्पसंख्यकों को दलितों की तरह ही खतरा महसूस हो रहा है और इसलिए बसपा अल्पसंख्यकों की स्वाभाविक सहयोगी है और उनके बीच काफी समर्थन प्राप्त करती है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में उनके चार कार्यकाल के दौरान सांप्रदायिक हिंसा की एक भी बड़ी घटना नहीं हुई। उनके शासन के दौरान, यह देखा गया है कि सांप्रदायिक ताकतें अपना मुंह नहीं खोलती हैं और फिर लोकतंत्र मज़बूत होता है।
लोकतंत्र का अर्थ जनता की, जनता के द्वारा, जनता के लिए सरकार होती है, आगे कहूं तो बिना लोकतंत्र के जनता बिमार होती है। ये पंक्तियां लोकतंत्र के महत्व को बखूबी बताती है। जब जनता की बात होती है तो उसमें जाति, धर्म, वर्ग, रूप,रंग, लिंग से परे समाज के हाशिए पर खड़े अंतिम व्यक्ति तक लोकतंत्र और राजनीति की पहुंच की बात होती है और उसे पहुंचाने का काम बीएसपी सुप्रीमों मायावती ने बखूबी किया है।
लेखक : दीपाली (दीपाली दिल्ली साउथ कैंपस में पत्रकारिता की छात्रा है और दलित टाइम्स के लिए स्वतंत्र रूप से लिखतीं हैं)
संपादक : सुषमा तौमर
*Help Dalit Times in its journalism focused on issues of marginalised *
Dalit Times through its journalism aims to be the voice of the oppressed.Its independent journalism focuses on representing the marginalized sections of the country at front and center. Help Dalit Times continue to work towards achieving its mission.
Your Donation will help in taking a step towards Dalits’ representation in the mainstream media.