बाबा साहेब अंबेडकर ने दलित वर्गों के अधिकारों के लिए अजीवन लड़ाई लड़ी, वे अकेले ऐसे योद्धा थे जिन्होंने कभी इस लड़ाई से हार नहीं मानी। बाबा साहब ने विदेश से उच्च शिक्षा प्राप्त की और कई डिग्रियां लेकर वे वापस भारत लौटे। भारत आने के बाद डॉ. आंबेडकर ने अछूतों के उद्धार के लिए 20 जुलाई, 1924 के दिन ‘बहिष्कृत हितकारणी सभा’ की स्थापना की, जिसका उद्देश्य अछूतों की उन्नति करना व उनको अधिकार दिलावाना था।

‘बहिष्कृत हितकारणी सभा’ का मुख्य कार्यालय मुंबई में था। बता दें, डॉ. बाबा साहब आंबेडकर ने अछूतों के लिए क्रांति का शंख यहीं से फूंका था, जिसका नाद पूरे भारत में गूंजा और दलित समाज में चेतना जागृत हुई।
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‘बहिष्कृत हितकारिणी सभा’ की स्थापना भारतीय समाज में ऐतिहासिक तौर पर महत्त्वपूर्ण है। बता दें कि, बाबा साहब ने अछूतों के अंधकारमय जीवन में स्वाभिमान और स्वावलंबन की रौशनी पैदा करने के लिए ‘बहिष्कृत हितकारिणी सभा’ की स्थापना की थी। इसके बावजूद भी ‘बहिष्कृत हितकारिणी सभा’ का प्रथम वार्षिक अधिवेशन तो निराशाजनक रहा था, लेकिन बाबासाहेब इससे निराश नहीं हुए उन्होंने गांव-गांव, शहर- शहर जाकर अपने तेजस्वी विचार और उपदेश फैलाए, जिसके बाद धीरे-धीरे अछूतों में चेतना का संचार हुआ।

बाबा साहब के तीखे भाषण सुनकर अछूत वर्ग जाग उठा। वहीं, बाबासाहेब ने अछूतों संबोधित करते हुए यह भी कहा था कि “आपके कुपोषित चेहरों को देखकर और करुणाजनक वाणी को सुनकर मेरा हृदय फटा जा रहा है। युगों तक आप गुलामी की खाई में सड़ते जा रहे हो। इसके बावजूद आपकी यह दशा भाग्यनिर्मित है। ईश्वरी संकेत के अनुसार है, ऐसा कहके आपको शर्म नहीं आती?
आप अपनी माता के गर्भ में ही क्यों नहीं मर गए? किसलिए पृथ्वी पर जन्म लेकर आप जगत के दुख, दारिद्रय और गुलामी के भयानक चित्र को अपमान भरे और दुखी जीवन से ज्यादा घेरा बना रहे हो? अपने जीवन में नई तरह से प्राण डाल सकते नहीं हो, तो इस जीवन में से विदा होकर क्यों दुख का भार कम नहीं करते हो?

आप इंसान हो। इंसान को अपनी कार्यशैली के द्वारा दुनिया में उन्नति करने का अधिकार है। आप इस देश के रहने वाले हो । आपको रोटी, कपड़ा और मकान अन्य भारतीयों की तरह हासिल करने का जन्मसिद्ध अधिकार है स्वाभिमानपूर्ण जीवन जीना हो तो स्वावलंबन ही उन्नति का मार्ग है, यह ध्यान में रखिए।”
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बाबासाहेब के सिवाए ऐसी वाणी में कौन बोल सकता था? लोग भाषण सुनकर जाग्रत होने लगे और जगह-जगह सभाएं आयोजित करने लगे। बता दें, मानव अधिकारों की मांग को बुलंद बनाकर अछूतोद्धार आंदोलन को आगे बढ़ाने का श्रेय बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर को जाता है।
यह लेख – रुखसाना द्वारा लिखा गया है। (जर्नलिस्ट, दलित टाइम्स)
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