Honor Crime: भारत में जाति और धर्म के नाम पर होने वाले अपराध पर क्या कहती है DHRD की रिपोर्ट ?

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भारत में शादी-विवाह और प्रेम के संबंधों में जाति एक अहम सवाल रहा है। जाति जो कभी नहीं जाती, जन्म से मृत्यु तक व्यक्ति के साथ चलती है और हर तरह की क्रियाओं में अहम भूमिका अदा करती है। आइए समझते है ऑनर क्राइम में जाति किस तरह से संबंध रखती है और कहां तक बसी हुई है।

ऑनर क्राइम परिवार और समाज की इज्ज़त के नाम पर किए जाने वाले अपराध है जिनमें अधिकतर पाया जाता है कि अपनी जाति से बाहर विवाह करने वाली महिलाओं की परिवार, समाज और जाति की इज़्ज़त की खातिर हत्या कर दी जाती है।

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अधिकतर केसों में ऐसा भी देखा गया है यदि महिला अपने से नीची जाति (जो की ब्राह्मणवादी प्रभुत्तवशाली सोच के लोगों ने कायम रखी हुई है) के पुरुष के साथ संबंध बनाती है या विवाह करती है तो पुरुष के परिवार को इसका खामियाज़ा भुगतना पड़ता है जिसमें प्रभुत्वशाली जाति के पुरुष निम्न जाति से संबंध रखने वाले पुरुष के घर परिवार की महिलाओं के साथ रेप, हिंसा और हत्या जैसे गलत कृत्य कर देते हैं। ये जातियां अधिकतर निम्न जातियों को कमजोर समझकर या बदले की भावना से ऐसे अपराधों को अंजाम देते हैं। ऐसे अपराधों के मूल में उच्च जातियों का प्रभुत्व और उनके परिवार की महिलाओं की सेक्सुअलिटी को कंट्रोल करना है।

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क्या है ऑनर क्राइम ?

ऑनर क्राइम एक सामाजिक और सांप्रदायिक मुद्दा है, जिसमें महिला और पुरुषों को अपनी पसंद से या अंतर जातीय(Inter Caste) संबंध बनाने पर परिवार/समुदाय/ समाज की इज़्जत के लिए या तो पीड़ित को मार दिया जाता है या आत्महत्या के लिए मजबूर किया जाता है। अन्य तरह की हिंसा भी इसमें शामिल है। भारत के विधि आयोग द्वारा रिपोर्ट संख्या 242 में उल्लेख किया गया है ये कृत्य अक्सर उस परिवार के सम्मान के विचारों पर आधारित होते हैं, जिनकी बेटी ने जाति के विचार से बाहर विवाह किया। इतने क्रूर और प्रचलित होने के बावजूद भी इन अपराधों को कम रिपोर्ट किया जाता है।

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क्या कहती है रिपोर्ट ?

यह रिपोर्ट ‘जाति आधारित ऑनर क्राइम’ की जमीनी हकीकत का एक विश्लेषण है जिसे दलित ह्युमन राइट्स डिफेंडर्स नेटवर्क (Dalit Human Rights Defenders) ने अन्य संगठनों के साथ मिलकर तैयार किया है। रिपोर्ट में 8 राज्यों का विश्लेषण किया गया है जिनमें बिहार, हरियाणा, गुजरात, राजस्थान, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश शामिल है। विश्लेषण बताता है कि अपनी पसंद के आधार पर विषम लैंगिक अंतर-जातीय संबंध बनाने पर महिलाओं और पुरुषों के खिलाफ़ हिंसा को ज़ारी रखने में जाति एक महत्त्वपूर्ण कारक है।

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रिपोर्ट के मुताबिक 8 राज्यों के 20 पुरुषों में से अधिकांशतः पीड़ित या जीवित बचे हुए सभी अनुसूचित जाति समुदायों से थे, जिन्हें या तो उनके साथी के परिवार द्वारा मार दिया गया या गंभीर रूप से घायल कर दिया गया था।  अधिकतर पीड़ित लड़कियाँ या महिलाएं प्रमुख जातियों की थी, जिनको परिवार और समुदाय की इज्ज़त के लिए मार दिया गया था। पीड़ितों महिलाओं और पुरुषों में से अधिकतर पढ़ रहे थे और स्कूलों और विश्वविद्यालयों में मिले थे। पीड़ितों में 14 पुरुष और 10 महिलाएं उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे थे या स्नातक कर चुके थे।

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वहीं 4 पुरुष और 4 महिलाएं इंटरमीडिएट कर रहे थे। ये आँकड़े बताते हैं ये लोग जातिगत बंधनों को तोड़ने और अपने पसंद से निर्णय ले रहे थे। जो कि प्रभुत्वशाली जातियों द्वारा  पसंद नहीं किया गया था। मामले पर एक उदाहरण लेते हैं, उत्तर प्रदेश के गोरखपुर के एक मामले में लड़का दलित समुदाय से था और लड़की ब्राह्मण समुदाय। उन्होंने ग्राम पंचायत में विभिन्न क्षमताओं में काम किया और शिक्षित हुए।  उन्होंने अपनी मर्जी से शादी की और नतीजा यह हुआ कि लड़की की प्रभावशाली जाति के परिवार को ‘अपमानित’ महसूस हुआ।

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इसलिए उसके परिवार ने लड़के की हत्या कर दी।  अब जो लड़की अपने ससुराल में रहती है, वह अकेली कमाने वाली सदस्य है और उसने हाल ही में एक लड़के को जन्म दिया है।

तमिलनाडु में एक अन्य मामले में, एक जोड़े ने  अंतर्जातीय संबंध बनाए और भाग गए।  लड़का अनुसूचित जाति पृष्ठभूमि से आता था और लड़की थेवर जाति (प्रमुख जाति) से थी। चूंकि दंपति का पता नहीं चल सका, इसलिए लड़की के परिवार ने लड़के की बहन का अपहरण कर लिया और बदला लेने के लिए लड़के के परिवार को एक भयानक संदेश भेजकर उसकी हत्या कर दी।

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हरियाणा के एक मामले में जाट समुदाय (प्रभुत्वशाली वर्ग) की लड़की को उसके परिवार वालों ने ज़हर खाने के लिए मजबूर किया और उसकी हत्या कर दी गई। लड़के और लड़के के परिवार वालों को मर्डर का एहसास हुआ तो उन्होंने लड़की के परिवार के खिलाफ़ केस दर्ज किया। पर बाद  में केस वापस ले लिया गया। उन्होंने तर्क दिया कि लड़की की माँ को कैंसर है और अगर उनके परिवार के सभी पुरुष सलाखों के पीछे होंगे तो वह पीड़ित हो जाएगी।

रिपोर्ट में घटनाओं और डेटा की जाँच में एक पैटर्न दिखाई पड़ता है जिन प्रभावशाली जातियों की महिलाओं ने जाति की सीमाओं से परे अपने जीवन साथी को चुनने की कोशिश की, वे मूक दर्शक बनकर रह गईं या उनके परिवार के द्वारा उन्हें मौत के घाट उतार दिया गया। और अगर वे इसमें विफल रहे तो उन्होंने दलित महिलाओं और पुरुषों की हत्या के बर्बर तरीकों का सहारा लिया।   

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ऑनर किलिंग/क्राइम और समाज

भारत में सजातीय विवाह या अरेंज मैरिज का कल्चर रहा है। जिसमें घर के किसी सदस्य के जीवनसाथी का चुनाव उसके माता पिता या घर के बड़े बुज़ुर्ग करते हैं। पर इसके विपरीत अगर कोई महिला या पुरुष अपनी जाति के बाहर किसी व्यक्ति को पसंद करता है और अंतरजातीय संबंध या विवाह करना चाहता है तो उसे बहुत सी सामाजिक और सांप्रदायिक संहिताओं का उल्लंघन करना पड़ता है। वे सहिंताएँ जो किसी समुदाय विशेष के मुखियाओं ने बनाई हुई हैं, जैसे उत्तर भारत में खाप पंचायतें और तमिलनाडु में कट्टा पंचायतें।

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ये सामाजिक और सांप्रदायिक समुदाय विशेष जाति के साथ एक अपनेपन की भावना रखते हैं और नियमों और संहिताओं का पालन कराते है इनके विरुद्ध जाने पर पूरे परिवार को एक व्यक्ति के कार्यों के लिए दंडित करने का खतरा रहता है। अंबेडकर कहते है, “वास्तव में जाति व्यवस्था सजातीय विवाह और माता पिता द्वारा स्वीकृत विवाह के माध्यम से कायम है, जो भारत में जाति और पितृसता को अविभाज्य बनाती है।”

पी. चौधरी अपने लेख इंफोर्सिंग कल्चरल कोडस्: जेंडर एंड वॉलेंस इन नॉर्दन इंडिया में बताते है, “भारतीय उपमहाद्वीप के लिए जाति सम्मान एक विशिष्ट घटना है।”  समाज की प्रमुख जातियों जिनका संसाधनों पर स्वामित्व या कब्जा रहा है उनके लिए जातिगत संबंध, पदानुक्रम और मतभेद में से किसी में भी परिवर्तन होना एक खतरे के तौर पर देखा जाता है या वे अपने प्रभुत्व की समाप्ति की तरह इसे देखते है। इसलिए भारत में जाति को बहुत बारीकी से संरक्षित किया जाता रहा है और इसकी जिम्मेदारी महिलाओं और उनकी सेक्सुअलिटी के साथ परिवार, जाति, धर्म और राष्ट्रों की रक्त शुद्धता को बरकरार रखने के लिए डाल दी जाती है।

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इस तरह किसी महिला की सेकसुअलिटी को केंद्रीय विषय बनाकर कंट्रोल किया जाता है वह किस के साथ संबंध बनाएगी या बच्चे पैदा करेगी इसे न केवल परिवार बल्कि समुदाय के सम्मान का विषय बना दिया जाता है। अंततः एक महिला की कामुकता को  नियंत्रण और निगरानी की वस्तु सिद्ध कर दिया जाता है।

 

ऑनर किलिंग और कानून

भारत में सम्मान अपराध की जड़े उतनी ही गहरी है जितनी जाति की। इसके बावजूद भारत में इसके लिए कोई समर्पित कानून नहीं है। CLPR के अनुसार, “ऑनर क्राइम से निपटने के मौजूदा कानूनी प्रावधान अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत आते हैं , जो दलितों और आदिवासियों के खिलाफ अत्याचार से संबंधित है। हालांकि, इस तरह के अपराधों को बड़े पैमाने पर भारतीय दंड संहिता – विशेष रूप से धारा 107 -11 (हत्या के लिए उकसाना), धारा 120A और  120B , धारा 299 – 304 (हत्या और गैर इरादतन हत्या) और धारा 307 -308 के तहत चलाया जाता है।”

 

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हालांकि इस पर निरंतर कानूनों की माँग की जाती रही है पर चर्चा और बहस के लिए सांसदों ने इसे संसद में पेश नहीं किया। राष्ट्रीय मानवधिकार आयोग के अनुसार, “27 मार्च, 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने शक्ति वाहिनी बनाम भारत संघ और अन्य में एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया कि खाप पंचायतों या किसी अन्य विधानसभा द्वारा किसी भी प्रयास को बाधित करने या रोकने के लिए वयस्कों को शादी करने से रोकना पूरी तरह से ‘अवैध’ है और इस संबंध में निवारक, उपचारात्मक और दंडात्मक उपाय निर्धारित किए गए हैं। अदालत का यह फैसला 2010 में एक गैर-सरकारी संगठन  शक्ति वाहिनी द्वारा दायर याचिका पर आया था। याचिकाकर्ता ने ऑनर किलिंग पर अंकुश लगाने के लिए एक योजना बनाने के लिए राज्यों और केंद्र को निर्देश देने की मांग की थी।”

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DHRD की रिपोर्ट के अनुसार, साल 2004 में, संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) ने सम्मान के नाम पर महिलाओं के खिलाफ अपराधों पर अपने पिछले प्रस्तावों को वापस ले लिया। और 20 दिसंबर 2004 59/165 के संकल्प को अपनाया, जिसमें महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ अपराधों के उन्मूलन की दिशा में काम किया गया।

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यह प्रस्ताव संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा (UDHR) और महिलाओं के खिलाफ सभी प्रकार के भेदभाव के उन्मूलन पर कन्वेंशन (CEDAW) सहित अन्य अंतरराष्ट्रीय अनुबंधों की पुष्टि के साथ शुरू किया गया। इस संकल्प में, यूएनजीए (UNGA) सम्मान के नाम पर महिलाओं और बच्चों के खिलाफ सभी अपराधों को कानून द्वारा दंडनीय आपराधिक अपराध मानने की आवश्यकता पर बल दिया गया है। यह प्रस्ताव लैंगिक समानता को बढ़ावा देने और लैंगिक रूढ़ियों को खत्म करने में पुरुषों की भूमिका और जिम्मेदारी पर भी जोर देता है।

संदर्भ :

https://clpr.org.in/blog/the-need-for-a-law-on-honour-crimes/

https://nhrc.nic.in/press-release/important-judgment-supreme-court-india-0#:~:text=231%20of%202010%2D%20Shakti%20Vahini,punitive%20measures%20in%20this%20regard.

 

लेखिका : निशा भारती (स्वतंत्र पत्रकार)

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