गुरू पूर्णिमा स्पेशल : गुरू के रूप में तथागत बुद्ध केे विचार और उनका महत्व

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क्यों मनाई जाती है गुरु पूर्णिमा

राजकुमार सिद्धार्थ 29 वर्ष की उम्र में अपने घर, परिवार और सांसारिक संबंधों को छोड़कर, सत्य के मार्ग की तलाश में घर से निकले थे। निरंतर छः वर्षों तक वे जंगलों में भटकते रहे, 49 दिनों तक मौन रहकर एकाग्र तपस्या करते हुए, 35 वर्ष की उम्र में वैशाख पूर्णिमा के दिन उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई और उन्होनें संसार के सत्य का पता लगाया। इसी दिन वह राजकुमार सिद्धार्थ से बुद्ध हुए।

गौतम बुद्ध, जिन्होंने लगभग अपना आधा जीवन संसार के सत्य को जानने और आम जनमानस को उपदेश देने में बिताया, आज पूरे संसार में एक वास्तविक मार्गदर्शक और गुरु के रूप में याद किए जाते हैं। आषाढ़ माह की पूर्णिमा के दिन गौतम बुद्ध न अपना पहला उपदेश दिया। यह उपदेश बुद्ध ने सारनाथ के मृगदाव वन में पंचवग्गीय भिक्खुओं (कोंडिनय, वप्पा, भद्दीय, महानामा, अस्सागी) को दिया और यह दिन धम्मचक्कप्रवर्तन या गुरुपूर्णिमा के रूप में जाना गया। जिसके बाद उनके अनुयायी और शिष्यों की संख्या बढ़ती गई। और बुद्ध ने निरंतर बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय के लिए उपदेश दिए। अपने शिष्यों को संबोधित करते हुए बुद्ध ने बतलाया, “जिस प्रकार एक फूल यह नहीं चुनता कि वह किसे अपनी खुशबू दे, एक दयालु व्यक्ति सभी के प्रति प्रेम और दया का संचार करता है।” इस तरह बुद्ध तर्कपूर्ण ढंग से सदैव प्रेम और भाईचारे के उपदेश देते हुए, अलग अलग नगरों में विचरण करते थे।

बुद्ध का उपदेश :

बुद्ध ने जिस सत्य का पता लगाया वह आज भी पूरी मानव जाति के लिए संगत और तार्किक है। बुद्ध अपने शिष्यों को सम्यक मार्ग का उपदेश देते हुए कहते है की इस संसार में हर जगह दुःख मौजूद है, पर ऐसा नहीं है कि दुःख के कारण और निवारण न हो। इसे वह आर्य सत्य के द्वारा बतलाते है कि संसार में दुःख है, दुःख का कारण, दुःख का निवारण और दुःख निवारण का मार्ग भी मौजूद है। जिसके लिए हमें सदैव तार्किक दृष्टि रखनी चाहिए। बुद्ध कार्य कारण के सिद्धांत में विश्वास करते थे यानि हर घटना का कोई न कोई कारण ज़रूर होता है, अपने शिष्यों को तार्किक और प्रगतिशील विचारों का उपदेश देते हैं।

चार आर्य सत्य
दुःख
दुःख का कारण
दुःख का निवारण
दुःख निवारण का

image : twitter

इसी के साथ बुद्ध ने आष्टांगिक मार्ग की राह दिखाई जिसके माध्यम से बुद्ध ने बतलाया मनुष्य को संसार में हमेशा सही मार्ग का अनुसरण करना चाहिए। बुद्ध की ये शिक्षाएं दुखों से मुक्ति पाने के लिए और ज्ञान के साधन के रूप में देखी जाती है।

आष्टांगिक मार्ग :

सम्यक दृष्टि
सम्यक संकल्प
सम्यक वचन
सम्यक कर्म
सम्यक आजीविका
सम्यक व्यायाम
सम्यक स्मृति
सम्यक समाधि

बुद्ध ने अपनी शिक्षाओं के माध्यम से लोगों को कर्म और पुनर्जन्म की वास्तविकता से परिचित कराया। तथागत के अनुसार, कर्म ही सर्वोपरि है। वे कहते है संसार में प्रत्येक कार्य का कोई कारण मौजूद है, इसलिए हमें प्रत्येक कर्म उसके कारण और प्रतिक्रियाओं को ध्यान में रखकर करने चाहिए। और सम्यक कर्मों को ही अपनाना चाहिए।

क्यों आज भी तार्किक हैं बुद्ध के विचार

तथागत एक तार्किक और प्रबुद्ध व्यक्ति थे हालांकि आज लोग उन्हें एक मनुष्य की तुलना में भगवान की नज़र से अधिक देखते है। जबकि बुद्ध स्वयं एक व्यक्तिवादी थे जो मनुष्य और मनुष्य की समस्याओं की और ज्यादा ध्यान देते थे। तथागत के अनुसार मनुष्य स्वयं में पूर्ण है। जो भी मौजूद है सब मनुष्य के भीतर है और यही जानकर बुद्ध ने सांसारिक दुखों से निजात पाने का मार्ग पता लगाया।
बुद्ध कहते हैं, “अतीत में मत रहो, भविष्य के सपने मत देखो, मन को वर्तमान क्षण पर केंद्रित करो।”
बुद्ध के ये उपदेश आज भी मानव जाति के लिए जरूरी हैं और समाज को बेहतर बनाने के क्रम में योगदान देते है। नई पीढ़ियों को बुद्ध के विचारों से ज़रूर अवगत होने की जरूरत है।

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