केंद्रशासित लद्दाख को छठी अनुसूची के तहत राज्य का दर्जा देने की मांग को लेकर 17 दिन से अनशन पर बैठे हैं थ्री इडियट के रैंचो

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पर्यावरणविद और सामाजिक कार्यकर्ता सोनम वांगचुक पिछले 17 दिन से भूख हड़ताल पर बैठे हैं, उनके बारे में बता रही हैं उषा परेवा

सोनम वांगचुक ने कहा था,‘ग्लोबल वार्मिंग’ की चुनौतियों का सामना करने और जलवायु परिवर्तन के खतरे से निपटने में दुनिया भर में आदिवासी समुदायों को मजबूत किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘‘आदिवासी समुदाय के लोगों का ज्ञान और उनकी समझ औद्योगीकरण और तथाकथित आधुनिक जीवन शैली की तुलना में लंबे वक्त के लिए अधिक लाभ प्रदान करने वाली है.’’

सामाजिक कार्यकर्ता, पर्यावरणविद् और शिक्षा की दिशा में अभूतपूर्व परिवर्तन लाने वाले सोनम वांगचुक आज किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं। आपने अगर थ्री ​इडियट फिल्म देखी होगी तो रैंचो (फुंगसुक वांगडू) नाम का किरदार जिसे आमिर खान ने निभाया था, शायद ही उसे ताउम्र भूल पायें। यह किरदार सोनम वांगचुग के कैरेक्टर से ही प्रेरित था। सोनम वांगचुक बीते 6 मार्च 2024 से लेह में भूख हड़ताल पर बैठे हैं। उनके भूख हड़ताल का आज 17वां दिन है। इससे संबंधित वीडियो वह अपने सोशल मीडिया एकाउंट पर लगातार डालते रहते हैं। 6 मार्च को जब उन्होंने भूख हड़ताल शुरू की थी तो उस दिन कहा था, ‘मैं आज फिर आप लोगों से बात कर रहा हूं, लेकिन इस बार एक अनशन शुरू करने के लिए…आमरण अनशन। चुनाव आने के संदर्भ में इसे हम चरणों में करेंगे। 21-21 दिन के चरणों में…जब तक कि हमारे लद्दाख की आवाज सुनी नहीं जाती…जब तक सरकार लद्दाख पर ध्यान नहीं दे देती।”

सोनम वांगचुक मोदी सरकार से मांग कर रहे हैं कि केंद्रशासित प्रदेश लद्दाख को छठी अनुसूची के तहत राज्य का दर्जा दिया जाए। साथ ही संवैधानिक सुरक्षा उपायों की व्यवस्था की जाए। इसके अलावा सोनम लद्दाख के लिए दो लोकसभा सीटें और एक राज्यसभा की सीट भी मांग रहे हैं। भूख हड़ताल शुरू करने से पहले 3 फरवरी को भी लेह में इन मांगों को लेकर बड़ा प्रदर्शन किया गया था, मगर जब सरकार ने उनकी मांग पर कान नहीं दिया तो मजबूरन भूख हड़ताल का रास्ता अख्तियार करना पड़ा।

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व्यक्तिगत जीवन

सोनम वांगचुक का जन्म 1 सितंबर 1966 को लद्दाख के लेह जिले के अलची के पास हुआ था। ऐसा कहा जाता है कि उनके गांव में कोई स्कूल नहीं था, इसलिए 9 साल की उम्र तक उनका दाखिला नहीं हुआ था। 9 साल की उम्र तक सोनम ने मातृभाषा में अपनी मां से बुनियादी ज्ञान हासिल किया। सोनम वांगचुक के पिता एक राजनेता थे और बाद उनके पिता राज्य सरकार में मंत्री बन गए थे। उनके पिता की पोस्टिंग जब श्रीनगर में हो गईं थी तब श्रीनगर के एक स्कूल में उनका दाखिला हो गया था।

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शिक्षा

सोनम वांगचुक ने बीटेक किया फिर इसके बाद श्रीनगर के राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान से मैकेनिकल इंजीनियरिंग किया । साल 2011 में फ्रांस के ग्रेनोबल में क्रेटर स्कूल ऑफ आर्किटेक्चर में अर्थेन आर्किटेक्चर में दो साल का उच्च अध्ययन किया।

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ऑपरेशन न्यू होप” शुरु करने का श्रेय

1988 में छात्रों के एक समूह ने “स्टूडेंट्स एजुकेशनल एंड कल्चरल मूवमेंट ऑफ लद्दाख “ की स्थापना की थी और सोनम वांगचुक इसके संस्थापक और निर्देशक  थे। “स्टूडेंट्स एजुकेशनल एंड कल्चरल मूवमेंट ऑफ लद्दाख “ का परिसर भी सोनम ने डिजाइन किया था। और ऐसा कहा जाता है कि ये पूरी तरह से सौर ऊर्जा पर आधारित है। जिसमें खाना पकाने और प्रकाश के लिए जीवशम ईधन की ज़रुरत नहीं होती है। सोनम वांगचुक को सरकारी स्कूलों की व्यवस्था में सुधार के लिए सरकार, नागरिक समाज के सहयोग से 1994 में “ऑपरेशन न्यू होप” शुरु करने का श्रेय प्राप्त हुआ था। ऐसा कहा जाता है कि सोनम ने बर्फ-स्तूप तकनीक का आविष्कार किया है जो कृत्रिम हिमनदों (ग्लेशियरों) का निर्माण करता है।

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भारतीय सेना के लिए सोलर हीटेड मिलिट्री टेंट बनाया

सोनम वांगचुक भारतीय सेना के लिए सोलर हीटेड मिलिट्री टेंट बनाया है। इस टेंट की सबसे खास बात यह है कि ज़्यादा ठंड में भी टेंट के अंदर का वातावरण गर्म ही रहता है। सोनम ने इस बारे में कहा था कि “एक दिन रात 10 बजे जब बाहर का तापमान -14°C था तब टेंट के अंदर का तापमान +15°C था। यानी बाहर के वातावरण के मुकाबले टेंट के अंदर का वातावरण 29°C ज्यादा था। इससे भारतीय सेना को लद्दाख में भीषण ठंड से बचने में मदद मिलेगी। इस टेंट की खासियत यह है कि टेंट पूरी तरह से मेड इन इंडिया, इको फ्रेंडली है और इसका वजन महज 30 किलो है। इसे आसानी से एक जगह से दूसरी जगह पर ले जाया जा सकता है।

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आर्टिफिशियल ग्लेशियर बनाया

लद्दाख में सूखे की समस्या को देखते हुए सोनम ने एक आर्टिफिशियल ग्लेशियर भी बनाया है। इसके जरिए गर्मियों में सिंचाई की जाती है। सोनम ने इस कृत्रिम ग्लेशियर को बर्फ का स्तूप नाम दिया है। इसमें ड्रिप इरिगेशन सिस्टम का इस्तेमाल किया जाता है। इसकी खासियत यह है कि इसमें किसी मशीन या बिजली की जरूरत नहीं पड़ती है।

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आदिवासी समुदाय को मजबूत करें

साल 2023 में सोनम वांगचूक ने अपने बयान में कहा था कि “जलवायु परिवर्तन मानव जाति के लिए विश्व युद्धों से भी बड़ा खतरा है। वांगचुक ने पर्यावरण की रक्षा में आदिवासी समुदायों की भूमिका को रेखांकित किया और आधुनिक शहरों के निवासियों से, प्रकृति के करीब रहने वाले लोगों से जीवन जीने का तरीका सीखने का आग्रह किया। सोनम ने पर्यावरण की रक्षा के मामले में इस बात पर जोर दिया कि ‘ग्लोबल वार्मिंग’ की चुनौतियों का सामना करने और जलवायु परिवर्तन के खतरे से निपटने में दुनिया भर में आदिवासी समुदायों को मजबूत किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘‘आदिवासी समुदाय के लोगों का ज्ञान और उनकी समझ औद्योगीकरण और तथाकथित आधुनिक जीवन शैली की तुलना में लंबे वक्त के लिए अधिक लाभ प्रदान करने वाली है.’’ वांगचुक को शिक्षा व्यवस्था में सुधार, सतत परिवर्तन और पर्यावरण सुरक्षा में उनके योगदान के लिए 20वां उपेन्द्र नाथ ब्रह्मा ‘सोल्जर ऑफ ह्यूमैनिटी’ पुरस्कार 2023 दिया गया था और यह पुरस्कार ‘यूएन ब्रह्मा ट्रस्ट’ द्वारा दिया जाता है।

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वांगचुक का विरोध प्रदर्शन

आपको बता दें कि सोनम वांगचुक ने 6 मार्च 2024  से अपना विरोध प्रदर्शन शुरु किया था। वांगचुक का विरोध प्रदर्शन 6 मार्च को लेह, लद्दाख से शुरू हुआ था, जहां उन्होंने समुद्र तल से 3,500 मीटर ऊपर सैकड़ों लोगों की एक सभा को संबोधित किया था, और घोषणा की थी कि उनका विरोध 21 दिनों के चरणों में होगा। मार्च की  शुरुआत में लेह से बोलते हुए, उन्होंने विरोध प्रदर्शन से पहले अपने संबोधन में दो अपीलों को रेखांकित किया: सभी लोगों से सरल जीवन जीने की अपील, और सरकार से लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने के अपने वादे को पूरा करने की सीधी अपील। और क्षेत्र को राज्य का दर्जा दें।

वांगचुक का कहना है कि कई बैठकों के बाद, सरकार अपने वादों से पीछे हट गई है और इस सटीक स्थिति के लिए संविधान में पहले से ही मौजूद चीज़ों के बहुत हल्के संस्करण की बात कर रही है। तो क्या हुआ और उन्होंने अपना मन क्यों बदल लिया?” वांगचुक ने कहा, यह बताते हुए कि भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने 2019 के लोकसभा चुनाव और 2020 के लद्दाख हिल काउंसिल के लिए अपने घोषणापत्र में छठी अनुसूची के तहत लद्दाख की सुरक्षा का उल्लेख किया था।

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