आदिवासी समुदाय के खिलाफ हिंसा के बीच राजनीतिक सहानुभूति तलाशती मध्यप्रदेश सरकार

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4 जुलाई को मध्य प्रदेश के सीधी जिले की एक वीडियो सोशल मीडिया पर फैलती है, जिसमें आरोपी प्रवेश शुक्ला (बीजेपी विधायक केदार शुक्ला का प्रतिनिधि)  है। जो एक आदिवासी व्यक्ति पर पेशाब करते दिखाई पड़ रहे हैं। इस तरह की हिंसा और दुर्व्यवहार का कारण आरोपी में जाति प्रभुत्व और राजनीतिक संरक्षण को दिखाता है। स्वतंत्र भारत में वे किस तरह से अपने से निम्न समझे जाने वाले समुदायों के साथ हिंसा करने के लिए आतुर रहते हैं। मध्य प्रदेश में जनजाति समुदाय के साथ यह इस तरह की पहली घटना नहीं है, जनजाति समुदाय इस तरह की घटना ब्रिटिशकाल से झेलता आ रहा है। और विश्व गुरु भारत ने आज भी इस तरह की हिंसा को बरकरार रखे हुए है।

 

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की रिपोर्ट के अनुसार, मध्य प्रदेश में जनजातीय समुदायों के खिलाफ अपराध के सबसे अधिक 29.8% मुकदमे दर्ज किए गए हैं।

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मध्य प्रदेश और जनजाति समुदाय के साथ होने वाली हिंसा

 

मध्य प्रदेश, भारत का सबसे अधिक जनजातीय बहुल राज्य है। 2011 की जनगणना के अनुसार, प्रदेश में अनुसूचित जनजाति की जनसंख्या 153.16 लाख है जो कि राज्य की कुल जनसंख्या का 21.10 प्रतिशत है। इसका मतलब मध्य प्रदेश का हर पांचवा व्यक्ति अनुसूचित जनजाति वर्ग का है। अब मुद्दा यह है इतनी आबादी होने के बावजूद भी ये लोग वहां कमजोर, अपमानित और हिंसा का शिकार हो रहे है। संविधान में मौजूद प्रावधानों और दिशानिर्देशों के बावजूद भी इन जनजातियों की स्थिति न केवल मध्य प्रदेश बल्कि पूरे भारत में सबसे खराब है। सरकारें उनकी पीड़ाओं पर केवल राजनीतिक दांव पेंच लगाती है।

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की वार्षिक रिपोर्ट 2022 के अनुसार,  2021 की तुलना में अनुसूचित जनजातीय समुदायों के खिलाफ अपराधों में 6.4% की वृद्धि हुई है। जिसमें मध्य प्रदेश में सबसे अधिक 29.8% मामले दर्ज किए गए। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट से पता चलता है अनुसूचित जाति और जनजाति समुदायों के खिलाफ होने वाले अपराधों में मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश सबसे आगे हैं। ऐसी हिंसाओं के लिए हालांकि बहुत से कानूनों और प्रावधानों को निश्चित किया गया है। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 जो कि अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के खिलाफ होने वाले अत्याचारों से संरक्षण करता है और दंड संबंधी प्रावधान भी सुनिश्चित करता है।

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मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान कहते हैं अपराधी की कोई जाति और धर्म नहीं होता

लेकिन भारत में उनका राजनीतिक संरक्षण जरूर होता है।” 

आरोपी प्रवेश शुक्ला और मध्य प्रदेश की राजनीतिक हलचल

मध्य प्रदेश हिंसा मामले में आरोपी को कथित तौर पर बीजेपी विधायक प्रतिनिधि पाया गया है, कहीं ना कहीं यह आरोपी को राजनीतिक संरक्षण भी देता है। परंतु मध्य प्रदेश में आगामी चुनाव के कारण राजनीतिक पार्टियां यह खेल-खेल रही हैं, जिसमें मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सीधे आरोपी के घर पर बुलडोजर चलवा दिया। यह जनजातीय समुदाय को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए किया गया प्रतीत होता है। हालांकि सरकार के पास इसके अलावा भी कानूनी और आधिकारिक विकल्प मौजूद थे। लेकिन शिवराज सिंह चौहान सरकार ने बुलडोजर चलवाने के बाद आदिवासी व्यक्ति के साथ होने वाली दुर्व्यवहार की घटना को जैसे समाप्त ही कर दिया है। अब जनता का ध्यान आदिवासी व्यक्ति पर पेशाब कर रहे आरोपी प्रवेश शुक्ला से हटकर इस और पहुंच चुका है कि प्रवेश शुक्ला के घर पर बुलडोजर क्यों चलाया जा रहा है। और यह मुद्दा आरोपी प्रवेश शुक्ला के परिवार के लिए कहीं न कहीं सहानुभूति को बटोरने का काम कर रहा है। अगर बुलडोजर चलवाने से अपमान और दुर्व्यवहार का हिसाब बराबर हो रहा है तो हमें इस पर काफी विचार करने की जरूरत है।

मध्यप्रदेश : आदिवासी युवक के साथ अमानविय व्यवहार करता BJP का कार्यकर्ता प्रवेश शुक्ला (image : social media)

 

मध्यप्रदेश में आगामी चुनाव 2023 की राजनीतिक हलचल के बीच इस तरह के मुद्दों को लाइमलाइट में लाना और राजनीतिक दलों का बोलबाला करना काफी आम हो गया है। दलित और आदिवासी समुदायों के मुद्दों पर इस तरह की राजनीति करना राजनीतिक दलों की पहचान रही है और भारतीय राजनीति में अक्सर ऐसा देखा जाता रहा है। हालांकि बहुत से मामलों में यही राजनीतिक पार्टियां प्रवेश शुक्ला जैसे आरोपियों को राजनीतिक संरक्षण और अपनी राजनीतिक दलों में पद भी मुहैया करा देती हैं जो कि केवल जाति और पैसे के प्रभुत्व के कारण होता है। और दलित शोषित सरवाइवर्स की कहानी खत्म कर दी जाती है।

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जनजाति समुदाय के साथ होने वाली हिंसा और कानूनी संरक्षण

 

अनुसूचित जाति और जनजाति के खिलाफ होने वाले अपराधों और हिंसा से संरक्षण के लिए संविधान में कानूनों और प्रावधानों को सुनिश्चित किया गया है। अनुसूचित जाति और जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम  1989 पूर्ण रूप से अनुसूचित जाति और जनजाति के संरक्षण और बचाव के लिए कार्य करता है और आरोपी को दंडित करने के भी प्रावधान रखता है।

 

 

लेकिन समस्या तब पैदा होती है जब मौजूदा कानूनों की प्रभावी कार्यवाही की जरूरत होती है और सरकारें उसमें लाग लपेट कर उसे ठीक तरीके से कार्यान्वित नहीं करती हैं। अक्सर ऐसे मामलों में पुलिस प्रशासन द्वारा तथ्यों में हेरफेर कर दी जाती है या कानूनों को सही भावना के साथ लागू नहीं किया जाता है। सरकारों को एससी/एसटी अधिनियम को प्रभावी ढंग से कार्यान्वित करने की जरूरत है जिससे आरोपियों के खिलाफ तीव्र दंडित कार्रवाई की जा सके।

 

Reference:

https://frontline.thehindu.com/the-nation/human-rights/tribals-at-the-receiving-end-in-madhya-pradesh/article65666370.ece

https://www-newsclick-in.translate.goog/NCRB-Report-Shows-Rise-Atrocities-Towards-Dalits-Adivasis?_x_tr_sl=en&_x_tr_tl=hi&_x_tr_hl=hi&_x_tr_pto=tc

https://sociallawstoday.com/rights-of-tribal-communities-in-india/

https://ncrb.gov.in/en

लेखिका : निशा भारती

निशा भारती दिल्ली विश्वविद्यालय में छात्रा और पत्रकार है। सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर लिखना- पढ़ना और सीखना पसंद है।

*दलित टाइम्स उन करोड़ो लोगो की आवाज़ है जिन्हें हाशिए पर रखा गया है। *

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