मुद्राराक्षस का मूल नाम सुभाष चंद्र था। मुद्राराक्षस का जन्म 21 जून 1933 को लखनऊ, उत्तर प्रदेश के गाँव बेहटा में हुआ था। गाँव में ही उनकी सारी प्रारंभिक शिक्षा हुई, फिर उच्च शिक्षा के लिए लखनऊ आ गए। बाद में वे कलकत्ता चले गए थे। फिर उतरार्द्ध में लखनऊ वापस आ गए थे। भारत के प्रसिद्ध लेखक, उपन्यासकार, नाटककार, आलोचक तथा व्यंग्यकार थे। उनके साहित्य का अंग्रेज़ी सहित दूसरी भाषाओं में भी अनुवाद हुआ है। वे अकेले ऐसे लेखक थे, जिनके सामाजिक सरोकारों के लिए उन्हें जन संगठनों द्वारा सिक्कों से तोलकर सम्मानित किया गया था। कहानी, कविता, उपन्यास, आलोचना, नाटक, इतिहास, संस्कृति और समाज शास्त्रीय क्षेत्र जैसी अनेक विधाओं में ऐतिहासिक हस्तक्षेप उनके लेखन की बड़ी पहचान है। मुद्राराक्षस अभिव्यक्ति की आज़ादी, साम्प्रदायिकता, जातिवाद, महिला-उत्पीड़न जैसे गंभीर मुद्दों पर वे अपनी बेबाकी से राय रखते थे। कहानी, कविता, उपन्यास, आलोचना, नाटक, इतिहास, संस्कृति और समाज शास्त्रीय क्षेत्र जैसी अनेक विधाओं में ऐतिहासिक हस्तक्षेप उनके लेखन की बड़ी पहचान है। उन्होंने किसी भी परम्परा और शैली का अनुगमन नहीं किया। उन्होंने खुद अपना एक नया रास्ता बनाया, वे 1962 में आकाशवाणी, दिल्ली में एक पटकथा संपादक के रूप में शामिल हुए और 1976 तक वहाँ एक प्रशिक्षक के रूप में काम किया।
प्रमुख रचनाएँ :hindi literature
सन 1951 से मुद्राराक्षस की प्रारंभिक रचनाएं छपनी शुरू हुईं।मुद्राराक्षस ने 10 से भी ज्यादा नाटक, 12 उपन्यास, पांच कहानी संग्रह, तीन व्यंग्य संग्रह, तीन इतिहास किताबें और पांच आलोचना सम्बन्धी पुस्तकें लिखी हैं। मुद्राराक्षस जी की कुछ प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं-
- कृतियाँ – आला अफसर, कालातीत, नारकीय, दंडविधान, हस्तक्षेप।
- संपादन – नयी सदी की पहचान (श्रेष्ठ दलित कहानियाँ)।
- बाल साहित्य – सरला, बिल्लू और जाला, चित्रपुरम के भूरे लाल।
- व्यंग्य पर पुस्तकें – मथुरादास की डेयरी, राक्षस उचाव, प्रपंचतंत्र, सुनो भाई साधो, एक और प्रपंचतंत्र
- उपन्यास– मैडेलिन, मकबरा, अचला एक मंहस्थिती, शांति भंग, भगोड़ा, हम सब मनसाराम, नरकिया, दंडविधान, अर्धव्रत, हस्तक्षेप, शोक संवाद, शब्द दंश, मेरा नाम तेरा नाम, ग्यारह सपनों का देश
- अंग्रेजी साहित्य – द हंटेड, री-रीडिंग जीसस
- प्ले – योर्स फेथफुली, डाकू, आला अफसर, तेंदुआ, संतोला, मरजीवा, तिलचट्टा, गुफायें, जिनिपिग, बादबख्त बादशाह
इसके अतिरिक्त उन्होंने ‘ज्ञानोदय’ और ‘अनुव्रत’ जैसी तमाम प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिकाओं , 20 से ज्यादा नाटकों का निर्देशन भी किया। इन सभी विधाओं में उनकी 65 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।
पुरस्कार व सम्मान :
‘विश्व शूद्र महासभा’ द्वारा ‘शूद्राचार्य’ और ‘अंबेडकर महासभा’ द्वारा उन्हें ‘दलित रत्न’ “लोक नाट्य शिरोमणि” की उपाधियाँ प्रदान की गई थीं।
उन्हें पुरस्कार सहित कई पुरस्कार मिले – साहित्य भूषण, कैफ़ी आज़मी पुरस्कार, सर्वोदय साहित्य पुरस्कार, संगीत नाटक अकादमी रत्न सदास्यता पुरस्कार, राष्ट्रीय संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान का साहित्य भूषण सम्मान ।
कहते हैं मुद्राराक्षस अकेले ऐसे लेखक थे, जिनके सामाजिक सरोकारों के लिए उन्हें जन संगठनों द्वारा सिक्कों से तोलकर सम्मानित किया गया था।
निधन :
मुद्राराक्षस जी का निधन 13 जून, 2016 को सोमवार के दिन हुआ वह पिछले कुछ समय से बीमार चल रहे थे। निधन के समय वह 82 वर्ष के थे।
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