जानिये कौन थे भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम की नींव रखने वाले दलित योद्धा शहीद मातादीन वाल्‍मीकि

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मंगल पांडेय ने मातादीन को पानी पिलाने से इंकार कर दिया था  और कहा था कि ‘अरे भंगी, मेरा लोटा छूकर तू इसे अपवित्र करेगा क्या?इस पर मातादीन वाल्मिकि ने मंगल पांडे को उनकी पंडाताई याद दिलाते हुए कहा, “पंडत, तुम्हारी पंडिताई उस समय कहा चली जाती है जब तुम और तुम्हारे जैसे चुटियाधारी गाय और सूअर की चर्बी लगे कारतूसों को मुंह से काटकर बंदूकों में भरते हो।“

 

DALIT FREEDOM FIGHTER : आज भी भारत के इतिहास में जब आज़ादी की बात होती है तब हमारे मन मस्तिष्क में सबसे पहले 1857 के विद्रोह का ख्याल आता है। क्योंकि 1857 के युद्ध ने ही भारतवासियों के मन में आज़ादी का दीप जलाया था। वैसे तो भारत के इस पहले स्वतंत्रता संग्राम में मंगल पांडेय, तात्या टोपे और रानी लक्ष्मीबाई सहित अनगिनत स्वतंत्रता सेनानियों का नाम शामिल है। लेकिन ऐसा कहा जाता है कि भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम के असली सूत्रधार मातादीन वाल्मीकि थे। इस लेख में आज हम मातादीन वाल्मीकि के जीवन और स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान के बारे में जानेंगे।

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अछूत होने की वजह से शिक्षा से वंचित :

मातादीन वाल्मीकि को “मातादीन भंगी” के नाम से भी जाना जाता है। इनका जन्म ब्रिटिश हुकूमत वाले मेरठ के एक भंगी परिवार में हुआ था। उस समय जातिगत भेदभाव बहुत ज़्यादा होता था और मातादीन वाल्मीकि भंगी समुदाय से थे। उस समय की जाति व्यवस्था में भंगियों को पढ़ने का अधिकार नहीं था इसलिए मातादीन कभी स्कूल नहीं जा पाए। मातादीन का परिवार उत्तरप्रदेश में रहकर अपना भरण पोषण करता था फिर एक समय के बाद इनका परिवार बंगाल में जाकर बस गया।

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मातादीन के परिवार का संबंध अंग्रेजों से :

मातादीन के परिवार का संबंध शुरु से ही अंग्रेजों से था जिसकी वजह से मातादीन को अंग्रेजों की सरकारी नौकरी आसानी से मिल गई थीं। कलकत्ता से तकरीबन 16 किलोमिटर दूर स्थित बैरकपुर छावनी में मातादीन को खलासी की नौकरी मिल गई। इस छावनी में सिपाहियों के लिए कारतूस बनाए जाते थे। उस समय मृत जानवरों के चमड़े और त्वचा के साथ काम करना निम्न जातियों का व्यवसाय माना जाता था। रूढ़िवादी उच्च जाति के हिंदू उन्हें “अशुद्ध” मानते थे।वहीं बैरकपुर छावनी में ही सेना की एक टुकड़ी “34वी बंगाल इंफेंट्री” का मार्गदर्शन मंगल पाण्डे करते थे।

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मातादीन को पानी पिलाने से इंकार किया :

सेना में काम करते हुए मातादीन की मुलाकात मंगल पांडेय से हो गई थीं और जब उन्हें प्यास लगी तो उन्होंने मंगल पांडेय नाम के सैनिक से पानी मांगा। मंगल पांडेय उच्च जाति से थे और वह जानते थे कि मातादीन भंगी समुदाय से है। उन्‍होंने मातदीन को नीची जाति का होने के चलते पानी पिलाने से इंकार कर दिया। मंगल पांडेय ने इसे मातादीन का दुस्साहस समझा और मंगल पाडेय ने इसे मातादीन का दुस्साहस समझा और यह कहकर उन्हें पीने के लिए पानी नहीं दिया कि ‘अरे भंगी, मेरा लोटा छूकर तू इसे अपवित्र करेगा क्या?

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गाय और सूअर की चर्बी लगे कारतूस से भड़का विद्रोह :

मातादीन को मंगल पांडेय के ये बोल चुब गए और इस पर मातादीन वाल्मिकि ने मंगल पांडे को उनकी पंडाताई याद दिलाते हुए कहा, “पंडत, तुम्हारी पंडिताई उस समय कहा चली जाती है जब तुम और तुम्हारे जैसे चुटियाधारी गाय और सूअर की चर्बी लगे कारतूसों को मुंह से काटकर बंदूकों में भरते हो।“ ये सुनकर मंगल पांडे का माथा ठिनक गया। क्योंकि बात अब उनकी पंडताई पर आ गई थी। बात मंगल पांडे तक ही नहीं रूकी औऱ एक के बाद एक सेना की सभी टुकड़ियों में इस बात के चर्चे होने लगे कि जिस कारतूस को वो मुंह से छीलते हैं, वो गाय औऱ सूअर की चर्बी से बना हुआ है।

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ब्रिटिश हुकुमत के खिलाफ विद्रोह :

मातादीन की गाय और सूअर की चर्बी वाली बात सुनकर मंगल पांडे ने ब्रिटिश हुकुमत के खिलाफ विद्रोह कर दिया। 1 मार्च 1857 की सुबह परेड मैदान में मंगल पाण्डे ने लाइन से बाहर निकलकर अंग्रेज़ सैनिकों को कहा कि “तुम गोरे लोग हमसे गाय और सूअर की चर्बी लगे कारतूसों का इस्तेमाल करवाकर हमारे धर्म औऱ इमान के साथ खिलवाड़ कर रहे है।“ इसके बाद मंगल पांडे ने ब्रिटिश अधिकारियों को गोलियों से भूनना शूरू कर दिया। जिसके बाद पूरे उत्तर भारत में विद्रोह की ज्वाला भड़क गई।

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सच्चे सिपाही की तरह लड़ा युद्ध :

मातादीन वाल्मिकि ने सच्चे सिपाही की तरह अंग्रेज़ो के खिलाफ इस युद्ध को लड़ा था। हालांकि 1857 का ये युद्ध अंग्रेज़ी हुकुमत को जड़ से उखाड़ तो नहीं पाया लेकिन इस युद्ध ने अंग्रेज़ी हुकुमत की जड़े ज़रूर हिला दी थीं। इसके बाद अंग्रेज़ो ने विद्रोह करने वालों की लिस्ट तैयार की जिसमें पहला नाम मातादीन वाल्मीकि का था। मंगल पांडे का कोर्ट मार्शल कर उन्हें सैनिकों की टुकड़ियों के सामने फांसी पर पहले ही लटका दिया था। विद्रोह को चिंगारी देने के लिए अंग्रेज ऑफिसरों ने मातादीन वाल्मीकि को गिरफ्तार कर उन्हें फांसी पर लटका दिया गया।

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संजीव नाथ की पुस्तक क्या कहती है ?

संजीव नाथ ने अपनी पुस्तक “1857 की क्रांति के जनक नागवंशी मातादीन हेला” में मातादीन को 1857 की क्रांति का जनक बताया है। साथ ही नाथ ने अपनी पुस्तक में इस बात को भी उद्धृत किया है कि यह उस समय की व्यवस्था की बात है जब ब्राह्मण सैनिक अपने मुंह से चर्बी वाले कारतूस काटते थे लेकिन एक प्यासे व्यक्ति को पानी देने से मना कर देते थे सिर्फ इसलिए क्योंकि वह उनके लिए अछूत था। हालांकि  ऐसे कईं स्वतंत्रता सेनानी हैं जिनका नाम आज भी इतिहास के पन्नों में गुम है।

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