रामजी मालोजी सकपाल जिन्होंने बाबा साहेब अंबेडकर के सर्वांगीण विकास में दिया था योगदान…जानिए

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रामजी मालोजी सकपाल का जन्म 14 नवंबर 1848 में हुआ था और इनकी पत्नी का नाम भीमाबाई था। रामजी सकपाल के 14 बच्चें थे और इनमें सबसे छोटे बाबा साहेब अंबेडकर थें। रामजी मालोजी सकपाल महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले में आंबडवे गाँव के निवासी थे। रामजी के पिता ईस्ट इंडिया कंपनी की बॉम्बे आर्मी में सेवानिवृत्त हवलदार थे। ऐसा कहा जाता है कि युद्ध के मैदान में रामजी मालोजी के पिता को बहादुरी के कार्यो के लिए भूमि दी गई थीं और अपने पिता से रामजी काफी प्रेरित थें और उन्हीं की तरह सेना में भर्ती हुए थें।

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प्रतिभाशाली व्यक्तित्व:

रामजी मालोजी सकपाल प्रतिभाशाली व्यक्ति थे। अपनी मेहनत से अंग्रेजी भाषा सीखी और पूना के आर्मी नॉर्मल स्कूल से शिक्षण में डिप्लोमा प्राप्त किया और इसके बाद उन्होंने आर्मी स्कूल में शिक्षक के तौर पर कार्य किया था। इसके अलावा उन्होंने हेड मास्टर और सूबेदार मेजर के पद पर भी काम किया था। सकपाल कबीर पंथ से जुड़ें थे और महार ( अछूत) जाति से थे।

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आध्यात्मिक प्रभाव :

महाराष्ट्र में जब भक्ति आंदोलन हुआ तो इसका सकपाल परिवार पर आध्यात्मिक प्रभाव पड़ा। रामजी मालोजी सकपाल ने अपने बच्चों को सख्त धार्मिक माहौल में बड़ा किया था। उनके परिवार में पूजा पाठ का माहौल बना रहता था और ऐसा कहा जाता है कि इसलिए बचपन में बाबा साहेब अंबेडकर भक्ति गीत गाया करते थें। अपने बच्चों के प्रति रामजी सकपाल का व्यवहार मूल रूप से डॉ. अम्बेडकर के सर्वांगीण विकास के लिए जिम्मेदार था।

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दूसरे विवाह का विरोध:

रामजी अंग्रेजी और गणित विषय में काफी अच्छे थे और अपने बच्चों के आध्यात्मिक विकास में सबसे अधिक रुचि रखते थे। रामजी सकपाल 1894 में सेवानिवृत्त हो गए थें और तकरीबन दो साल बाद उनका परिवार सतारा में रहने लगा था। जब रामजी सकपाल की पत्नी भीमाबाई की मृत्यु हो गई थीं तब उन्होंने दूसरा विवाह कर लिया था। लेकिन उनके इस विवाह बाबा साहेब अंबेडकर ने विरोध किया था।

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रामजी मालोजी सकपाल, इमेज क्रेडिट गूगल

शिक्षा के प्रति दृढ़ और प्रतिबद्ध :

रामजी मालोजी अपने बच्चों की शिक्षा के प्रति काफी सचेत रहते थे खासतौर से बाबा साहेब अंबेडकर की शिक्षा के प्रति वह दृढ़ और प्रतिबद्ध थे। ऐसा कहा जाता है कि रामजी मालोजी बाबा साहेब अंबेडकर का विशेष ख्याल रखते थे। उन्हें पढ़ने के लिए प्रेरित करते थे। अपने पिता की वजह से ही बाबा साहेब अंबेडकर को अनुवाद कार्य में अनुभव प्राप्त हुआ था। पिता की भाषा मे रुचि के कारण ही बाबा साहेब अंबेडकर की अंग्रेजी भाषा में पकड़ अपने सहपाठियों की तुलना में काफी अच्छी थीं।

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पढ़ाने के लिए संघर्ष :

बाबा साहेब अंबेडकर को किताबें रखने का शौक था और अपने पिता का उन्हें पूरा समर्थन प्राप्त था। रामजी सकपाल ने बाबा साहेब अंबेडकर को पढ़ाने के लिए संघर्ष किया था वह अंबेडकर को नई किताबे उपलब्ध कराने के लिए पैसे उधार लेते थे। बाबा साहेब अंबेडकर ने 1912 में बीए की परीक्षा पास की थीं।1913 में बड़ौदा राज्य सेना में लेफ्टिनेंट के रूप में बड़ौदा राज्य की सेवा में प्रवेश किया। एक तार के माध्यम से बाबा साहेब को पता लगा कि उनके पिता “रामजी मालोजी सकपाल” बंबई में गंभीर रूप से बीमार हैं। अपने पिता के स्वास्थ्य की देखभाल के लिए उन्होंने तुरंत बड़ौदा छोड़ दिया।

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मौत के निकट:

बाबा साहेब अंबेडकर अपने पिता से मिले तब उन्हें देखकर वह काफी भावुक हो गए। उनके पिता उस समय मौत के बिल्कुल निकट थें। उनके पिता की डूबती लेकिन खोजती आँखें अपने प्यारे बेटे की ओर चली गईं, जिस पर उसने अपने विचार, अपनी आशाएँ और अपना अस्तित्व लगाया हुआ था। कुछ पलों में उनके पिता की आँखें बंद हो गईं। बाबा साहेब अंबेडकर ने आज ही के दिन 2 फरवरी 1913 में अपने पिता को खो दिया था। इस प्रकार एक सूबेदार मेजर रामजी मालोजी सकपाल का निधन हो गया, जो अपने जीवन के अंत तक मेहनती, संयमी, भक्तिपूर्ण और महत्वाकांक्षी थे।

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सर्वांगीण विकास में योगदान:

रामजी बाबा साहेब अंबेडकर के दिमाग और व्यक्तित्व को आकार देने के लिए जिम्मेदार थे। रामजी द्वारा दिखाए गए मार्ग ने बाबा साहेब को विदेशों में शिक्षा प्राप्त करने और ऐसे विचार विकसित करने में मदद की जो उन्हें उत्पीड़ितों का मुक्तिदाता बनाते थे। और डॉ. अंबेडकर ने अपनी पुस्तक, ‘द प्रॉब्लम ऑफ द रुपी’ को अपने पिता और माता की याद में समर्पित किया था, जो उनके द्वारा किए गए बलिदानों और उनकी शिक्षा के मामले में दिखाए गए ज्ञान के प्रति उनके आभार का प्रतीक है।

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