बिहार के पहले दलित सांसद किराय मुसहर की दिलचस्प कहानी, ट्रेन के जनरल डिब्बे में फर्श पर बैठ किया था दिल्ली तक का सफ़र-परिवार आज भी बदहाल

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“जब मेरे दादा जी चुनाव जीते और दिल्ली जाने लगे तो उनके पास ट्रेन का टिकट कटाने तक के पैसे नहीं थे, तब सोशलिस्ट पार्टी के कार्यकर्ताओं ने चंदा करके उनके दिल्ली जाने और खाने की व्यवस्था की थी, वे ट्रेन के जनरल डिब्बे में फर्श पर बैठकर दिल्ली गये थे…’

FIRST DALIT MEMBER OF PARLIAMENT : वर्ष 2024 के चुनावों में बस कुछ ही दिन शेष बचे हैं। लोकतांत्रिक तरीके से सरकार चुनने के इस मेले में न जाने कितनी पार्टियां हिस्सा ले रही होंगी और अलग-अलग जातियों के प्रत्याशी इसमें हिस्सा ले रहे होंगे। मगर क्या आप जानते हैं कि बिहार के पहले दलित सांसद कौन थे, और बिहारों को दलितों को प्रतिनिधित्व देने की उनकी यात्रा कैसी थी। जी हां, हम बात कर रहे हैं बिहार के पहले दलित सांसद किराय मुसहर की। आइये जानते हैं उनकी राजनीतिक यात्रा और अब किस हाल में जी रहा है उनका परिवार।

बात उस उस समय की है जब 1951 में पहला आम चुनाव हुआ था। ये चुनाव अक्टूबर 1951 से फरवरी 1952 यानी करीब 4 महीने तक चला था। इस आम चुनाव की सबसे खास बात यह थीं कि इसमें 86 संसदीय क्षेत्र दो और एक संसदीय क्षेत्र तीन सीटों वाला था। इन बहुसदस्य संसदीय क्षंत्रों से एक से अधिक सदस्य चुने जाते थे। इन बहुसदस्यीय सीटों में से था भागलपुर पुर्णिया संयुक्त लोकसभा सीट और इस सीट से 1952 में किराय मुसहर चुनाव जीतकर आये थे। किराय मुसहर बिहार के पहले दलित सांसद कहे जाते हैं।

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किराय का व्यक्तिगत परिचय :

किराय मुसहर का जन्म मधेपुरा जिले के मरहो गांव में 18 अगस्त 1920 को हुआ था । किराय मुसहर दलित समुदाय से संबंध रखते थे। इनके पिता का नाम खुशहर मुसहर था। इनके माता-पिता दोनों ही गांव के जमींदार के यहां पर मेहनत- मजदूरी करके अपने परिवार का भरण पोषण करते थे। जब किराय मुसहर बड़े हो गए तो वह भी गांव के जमींदार जिनका नाम महावीर प्रसाद यादव था के घर पर काम करने लगे।  किराय मुसहर काफी मेहनत और ईमानदारी से काम करते थे और उनके इस गुण की वजह से वह जमींदार महावीर प्रसाद के चहेते बन गये थे।

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जमींदार घर पहरेदार का काम किया :

किराय मुसहर जब जमींदार के यहां रखवार (पहरेदार) पर काम करते थे तो उस दौरान जमींदार के घर पर राजनेताओं का आना जाना लगा रहता था। उस माहौल में रहकर और राजनीतिज्ञों को सुनकर किराय मुसहर को भी राजनीति का ज्ञान होने लगा। दस लोगों के बीच बोलने की क्षमता विकसित होने के कारण किराय मुसहर को ज़मीदार महावीर प्रसाद यादव और गांव के लोगों ने प्रथम आम चुनाव में आरक्षित सीट से उम्मीदवार बनाया था और लोगों के सहयोग से जीतकर वह दिल्ली पहुंचे।

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दिल्ली जाने के लिए पैसे तक नहीं  थे :

“प्रभात खब़र” के अनुसार किराय मुसहर के पोते उमेश कोइराला का कहना है कि “जब मेरे दादा जी चुनाव जीते और दिल्ली जाने लगे तो उनके पास ट्रेन का टिकट कटाने तक के पैसे नहीं थे. तब सोशलिस्ट पार्टी के कार्यकर्ताओं ने चंदा करके उनके दिल्ली जाने और खाने की व्यवस्था की थी। वे ट्रेन के जनरल डिब्बे में फर्श पर बैठकर दिल्ली गये थे। “अपने परिवार के साथ मिट्टी के साधारण घर में रहने वाले उमेश कहते हैं, “दादा जी के पास में उस समय संसद के चुनाव में जीत का प्रमाण पत्र होने के बाद भी उन्होंने रिजर्वेशन का प्रयास नहीं किया और न ही जनरल डिब्बे में सीट पर बैठने की हिम्मत दिखायी. हां, ट्रेन में सहयात्रियों के साथ हंसते-बतियाते और खाते-पीते दिल्ली पहुंच गये थे।”

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मुसहर के बेटे छट्ठू श्रषिदेव और उसकी पत्नी इमेज क्रेडिट दैनिक भास्कर

 

अपनी बेबाकी के लिए जाने जाते थे :

बिहार के पहले दलित सांसद किराय मुसहर अपनी बेबाकी के लिए जाने जाते थे। वह संसद में बहस के दौरान ठेठ देसी अंदाज में किराय अपनी बात रखते थे। बेबाकी अंदाज की वजह से उस दौरान प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को भी कई बार उनके विरोध का सामना करना पड़ा था, लेकिन इसके बावजूद भी जवाहरलाल नेहरु किराय मुसहर को गंभीरता से सुनते थे।

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सांसद रहते हुए कईं कार्य किये :

प्रभात ख़बर के अनुसार किराय मुसहर के पोते उमेश बताते हैं- दादाजी की सादगी व सेवा भाव से प्रभावित होकर 1960 में वरिष्ठ कांग्रेस नेता लाल बहादुर शास्त्री अपने बिहार दौरे के दौरान किराय मुसहर के साथ सहरसा तक ट्रेन से और वहां से टायर गाड़ी (बैलगाड़ी) से मधेपुरा तक आये थे। उमेश बताते हैं-उनके दादा किराय मुसहर ने सांसद रहते हुए कई कार्य किये. आज जिस तरह बाइक, मोटर या अन्य वाहनों के रजिस्ट्रेशन की जरूरत होती है, उस समय उन्होंने बैलगाड़ी के लिए भी लाइसेंस अनिवार्य कराया था. प्रत्येक बैलगाड़ी पर टिन का प्लेट ठोंका जाता था. उमेश बताते हैं कि इसके अलावा सांसद किराय मुसहर ने पहली बार बुधमा के अत्यंत गरीब व भूमिहीन घंटिन दास को सरकारी भू-खंड का आवंटन कराकर उनके लिए फूस व टाली का घर बनवाया था. यही योजना बाद की इंदिरा सरकार में इंदिरा आवास योजना बनी.

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राम मनोहर लोहिया व बीएन मंडल के बेहद करीबी :

दैनिक भास्कर की रिपार्ट के मुताबिक बीपी मंडल के बेटे मनिंद्र कुमार मंडल का कहना है कि उनका पूरा परिवार हमारे खेत में काम करता था। उनके परिवार की रोजी रोटी हमारे खेत से चलती थीं। मेरे पिताजी कांग्रेस के नेता थे लेकिन किराय मुसहर सोशलिस्ट पार्टी के नेता बीएन मंडल से प्रभावित थे। बीएन मंडल और राम मनोहर लोहिया दोनों ने मिलकर किराय मुसहर को चुनाव लड़ाया था। जिस समय भागलपुर-पूर्णिया की आरक्षित सीट से किराय मुसहर का नाम फाइनल हुआ था, उस समय वे खेत में काम कर रहे थे।

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साल 1962 में किराय मुसहर का निधन :

साल 1962 में किराय मुसहर का निधन हो गया था। किराय मुसहर के निधन से राम मनोहर लोहिया काफी दुखी हुए थे। किराय के निधन की सूचना लोहिया ने संसद में दी थी। 1952 के बाद किराय कोई चुनाव जीत नहीं पाए, जिस वजह से संसद से उनका ज़्यादा संबंध नहीं रहा था। किराय मुसहर के बेटे छट्ठू श्रषिदेव को कुछ राजनीतिक दलों ने अपने पक्ष में चुनाव में उतारा था लेकिन उन्हें सफ़लता नहीं मिली थी।

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