करुक्कू फेम लेखिका बामा को प्रसिद्ध वर्चोल दलित साहित्य पुरस्कार, दलित फिल्मकार पा. रंजीत बोले गैरदलित लेखक-​निर्देशक हमारा दर्द समझने में असमर्थ

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करुक्कू फेम लेखिका बामा को पुरस्कृत करते हुए प्रसिद्ध दलित फिल्म निर्माता रंजीत ने कहा कि गैर-दलित लेखक और फिल्म निर्माता दलितों के जीवन को प्रतिबिंबित करने में असमर्थ हैं, क्योंकि उन्होंने कभी उनके जीवन को समझने की कोशिश नहीं की है…

Dalit Writer Bama receives Verchol Dalit Literary Award 2024 : करुक्कू, संगति और मानुषी जैसी प्रसिद्ध साहित्यिक कृतियों की रचनाकार प्रसिद्ध दलित लेखिका और कवि बामा को 2024 के महत्वपूर्ण वर्चोल दलित साहित्य पुरस्कार से नवाजा गया है। उन्हें यह पुरस्कार सुप्रसिद्ध फिल्म निर्माता पा. रंजीत ने प्रदान किया। पुरस्कार के बतौर उन्हें वर्चोल दलित साहित्य पुरस्कार और ₹1 लाख का नकद पुरस्कार मिला। चेन्नई में वाणम कला महोत्सव 2024 के हिस्से के रूप में साहित्यिक कॉन्क्लेव द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में यह महत्वपूर्ण पुरस्कार प्रदान किया गया। यह उत्सव दलित इतिहास माह के उपलक्ष्य में फिल्म निर्माता पा. रंजीत द्वारा स्थापित नीलम सांस्कृतिक केंद्र द्वारा आयोजित किया गया था।

इस पुरस्कार समारोह के दौरान अपने जीवन पर एक वृत्तचित्र की स्क्रीनिंग के बाद बोलते हुए दलित लेखिका बामा ने कहा कि उनका जीवन आसान नहीं था, लेकिन यह कुछ ऐसा था जिसे उन्होंने चुना था, और अपनी पीड़ा को शब्दों में पिरोया।

द हिंदू में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक दलित लेखिका बामा ने कहा, “विजय की डॉक्यूमेंट्री के माध्यम से अपने जीवन यानी वृत्तचित्र को देखकर मैं खुश भी हुई और भावुक भी। मुझे कई पुरस्कार मिले हैं, लेकिन यह पुरस्कार खास है। यह मेरे परिवार में एक समारोह की तरह है। हम अपनी परंपराओं और संस्कृति के माध्यम से जुड़े हुए हैं। मेरे जीवन में कालाकलाप्पु (खुशी) और कालागम (विद्रोह) दोनों हैं। किसी समय, हम अकेले होंगे। मेरे पास पा. रंजीत को धन्यवाद देने के लिए शब्द नहीं हैं, लेकिन यह उनकी ज़िम्मेदारी और कर्तव्य भी है।’

वहीं इस दौरान अपनी बात रखते हुए फिल्म निर्माता रंजीत ने कहा कि गैर-दलित लेखक और फिल्म निर्माता दलितों के जीवन को प्रतिबिंबित करने में असमर्थ हैं, क्योंकि उन्होंने कभी उनके जीवन को समझने की कोशिश नहीं की है।

उन्होंने आगे कहा, ‘मैंने दलितों के जीवन पर केंद्रित रचनाएँ पढ़ी हैं, जैसे के. गुनासेकरन की वाडु, और लेखक इमायम की रचनाएँ। करुक्कू (लेखक बामा का आत्मकथात्मक उपन्यास) की इस पुरस्कार के लिए मेरे अनुशंसा की गई थी, लेकिन उस समय इस्तेमाल की गई भाषा के कारण मैं इसे समझ नहीं पाया था। जब गैर-दलित लेखक दलित महिलाओं के बारे में लिखते हैं, तो वे अक्सर उनकी यौन इच्छाओं के बारे में लिखते हैं। ये बात आज तक सच है, जबकि करुक्कू इससे बिल्कुल अलग है। यह मेरे लिए आंखें खोलने वाला और अचंभित करने वाला था। मैं करुक्कू में अपने परिवार की महिलाओं की भूमिका महसूस कर सकता हूं। यही कारण है कि मेरा मानना ​​है कि दलितों को अपनी कहानियाँ खुद बनानी चाहिए।’

पा. रंजीत ने कहा कि नीलम सांस्कृतिक केंद्र द्वारा किए जा रहे कार्यों की अक्सर अनुचित आलोचना की जाती थी और उन पर ‘गुप्त उद्देश्य’ रखने का आरोप लगाया जाता था, उन्होंने कहा कि अंबेडकर को भी इसी तरह की बदनामी का सामना करना पड़ा था। फिल्म निर्देशक पा. रंजीत खुद दलित वर्ग से ताल्लुक रखते हैं और उनकी फिल्मों में अपने समाज की पीड़ा-दर्द-उत्पीड़न नजर आता है।

वह कहते हैं, “डॉ. अम्बेडकर की आवाज़ सबसे अलग थी, या यूं कहें कि सबसे अलग, उन्होंने उस समय की सबसे प्रभावशाली पार्टी कांग्रेस की आलोचना की थी, लेकिन उन पर ब्रिटिशों का चापलूस होने का आरोप लगाया गया। वह अपने विचारों में दृढ़ और समझौता न करने वाले थे और हिंदू धर्म का विरोध करते थे।’

वहीं इस अवसर पर अपनी बात रखते हुए कवि सुकीरथरानी, ​​जिन्होंने दलित लेखिका बामा के कार्यों के बारे में बात की, ने कहा, “मैंने उनके शब्दों के माध्यम से मानवतावाद सीखा। एक प्रसिद्ध लेखिका बनने के बाद भी मैंने उनसे विनम्रता सीखी।’

गौरतलब है कि बामा तमिल भाषा की जानी-मानी लेखिका हैं, जिनकी रचनाएं दिल्ली विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में लगी थीं, मगर पिछले साल कोर्स से हटा दी गयी।

दरअसल, तमिल लेखिका फौस्तीना मैरी फ़ातिमा रानी दलित इसाई समुदाय से ताल्लुक रखती हैं, जो साहित्य जगत में बामा के नाम से प्रसिद्ध हो गयी हैं। बामा तमिलनाडु में मदुरई के निकट पुदुपत्ति गांव की रहने वाली हैं। 1958 में जन्मी बामा ने अपनी रचनात्मक अभिव्यक्ति के लिए यह नाम चुना। उनके पिता सुसाई राज भारतीय सेना में नौकरी करते थे। माता का नाम था – सेबस्थिअम्मा। जानकारी के मुताबिक 18वीं शताब्दी में ही उनके पूर्वज ईसाई हो गए थे। उनके पहले की पीढ़ी के लोग कथित ऊंची जातियों की चाकरी करते थे। अपने गांव में ही प्राथमिक शिक्षा हासिल करने के बाद उन्होंने तुठुक्कुदी के सेंट मेरीज़ कान्वेंट से स्नातक किया। इसके बाद बीएड किया और शिक्षक बन गयीं।

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