2 अप्रैल 2018 इतिहास की वो तारीख जब देश भर के दलित संगठनों और दलितों ने भारत बंद किया था। देश के कोने कोने में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ सिर्फ दलित सड़को पर दिखाई दे रहा था। यह आंदोलन कॉलेजियम वयवस्था और कॉलेजियम के जजो द्वारा अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अधिनियम को बेअसर करने के खिलाफ था। हालांकि आंदोलन सफल रहा, सुप्रीम कोर्ट और सरकार दोनों को दलितों की मांग के आगे झुकना पड़ा लेकिन दलितों के लिए यह दिन “बलिदान दिवस” के रूप में इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया। क्योंकि इस दिन पूरे देश में 13 दलितों ने अपने हक-हकूक के लिए जान गवाई थी। साथ ही देश भर में 4 हज़ार से ज्यादा दलितों पर मुकदमें दर्ज किए गए थे जो बिना किसी सबूत और गवाहों के आधार पर थे। बहरहाल, आज 2 अप्रैल 2024 को इस घटना को 6 साल पूरे हो गए हैं.. आइए इस लेख में आपको बताते हैं 2 अप्रैल 2018 में दलितों द्वारा किए गए “एतिहासिक भारत बंद” की पूरी कहानी
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Sc St एक्ट में बदलाव:
20 मार्च 2018 को माहाराष्ट्र के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि अनुसूचित जाति और जनजाति अधिनियम 1989 में बदलाव किए जा रहे है जिसके तहत अब दलित उत्पीड़न के मामले में FIR के साथ तुरंत गिरफ्तारी नहीं की जाएगी। पहले मामले पर डीएसपी लेवल का अधिकारी जांच करेगा और अगर आरोप सही पाए गए तो उसके बाद गिरफ्तारी की जाएगी। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर दलित संगठनों ने आपत्ति जताई। क्योंकि अनुसूचित जाति जनजाति अधिनियम 1989 के तहत दलित और आदिवासी उत्पीड़न का मामला सामने आने के तुरंत बाद सबसे पहले FIR दर्ज कर आरोपी की गिरफ्तारी की जाती है। उसके बाद जांच होती है। ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि आरोपी पक्ष की तरफ से पीड़ित दलित पक्ष पर कोई दबाव ना डाला जा सके। दलित संगठनों ने 2 अप्रैल 2018 को भारत बंद की घोषणा कर दी। 2 अप्रैल 2018 को देश भर के राज्यों में बड़ी संख्या में दलित सड़को पर दिखाई दिए जो सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विरूद आंदोलन कर रहे थे।
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मायावती ने किया था समर्थन :
मीडिया संस्थान आज तक के मुताबिक बसपा सुप्रीमों मायावती ने Sc,St एक्ट को बचाने के लिए दलितों द्वारा किए जा रहे इस आंदोलन का समर्थन किया था। उन्होंने नोएडा के सेक्टर 19 में मीडिया से बात करते हुए कहा था कि, “मैं SC/ST आंदोलन का समर्थन करती हूं। उन्होंने आगे कहा कि हम सदन में नहीं हुए तो क्या हुआ, हम अपनी ताकत पर सदन के बाहर रहते हुए भी इस (केंद्र) सरकार को घुटने टेकने पर मजबूर करने में समर्थ हैं। मायावती ने केंद्र सरकार पर अनुसूचित जाति और जनजाति को गुलाम बनाए रखने का आरोप भी लगाया था। मायावती ने इस बात का भी जिक्र किया था कि कुछ लोग दलितों के इस आंदोलन में हिंसा फैला रहे हैं।
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13 दलितों की निर्मम हत्या :
दलितों के मुताबिक शांतिपूर्ण आंदोलन अचानक हिंसक हो गया। कुछ अराजक तत्वों ने आंदोलन को हिंसक करने का काम किया। जिसके बाद पंजाब से लेकर मध्य प्रदेश तक और बिहार से लेकर हरियाणा तक में आगजनी, नारेबाजी, हिंसक झड़पे और लाठीचार्ज जैसी हिंसा देखने के लिए मिली। अपने हक-हकूक के लिए सड़कों पर उतरने वाले 13 दलितों ने इस हिंसा में अपनी जान गवाई। इनमें पवन सागर, दीपक मित्तल जाटव, राकेश टमोरिया, जगरूप उर्फ दशरथ, अंकुर, गोपी, अमरेश, जसवंत उर्फ बॉबी, प्रदीप सिंह, आकाश, हरबिलास,विमल प्रकाश और एक मासूम बच्चे निखिल की निर्मम हत्या हो गयी। बता दें कि इस हिंसा में एक शख्स की मौत पुलिस की गोली से हुई थी। 2018 के बाद हर साल 2 अप्रैल को इन 13 दलितों के बलिदान को याद किया जाता है और इस दिन को दलित समाज बलिदान दिवस के रूप में मनाता है।
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फैसला बदलने पर मजबूर हुआ SC :
बता दें कि देश भर में हुए इस आंदोलन ने सरकार की नींद तो उड़ाई ही वही सुप्रीम कोर्ट तक को हिला कर रख दिया था। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की और SC, ST एक्ट में किये जा रहे संशोधन में रोक की मांग की। वहीं आंदोलन के बाद सुप्रीम कोर्ट भी अपना फैसला वापस लेने पर मजबूर हो गया। पहले सुप्रीम कोर्ट ने ये फैसला सुनाया था कि दलित अत्यचार के मामले में FIR के बाद तुरंत गिरफ्तारी नहीं होगी , वहीं एफआईआर दर्ज करने से पहले वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों या नियुक्ति प्राधिकरण से अनुमति लेनी होगी।
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बाद में सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला वापस लेते हुए कहा, एफआईआर दर्ज करने से पहले वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों या नियुक्ति प्राधिकरण से अनुमति जरूरी नहीं है। एससी/एसटी एक्ट के मामलों में अग्रिम जमानत का प्रावधान नहीं है। न्यायालय असाधारण परिस्थितियों में एफआईआर को रद्द कर सकते हैं. SC/ST संशोधन कानून, के मुताबिक अब शिकायत मिलने के बाद तुरन्त FIR दर्ज होगी और गिरफ्तारी होगी.
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दलितों पर आज तक चल रहे झूठे मुकदमे :
2 अप्रैल 2018 को हुए इस आंदोलन ने दलितों और आदिवासीयों के साथ जातिगत भेदभाव से लड़ने का सबसे बड़ा हथियार यानी Sc St एक्ट को तो बदलने से बचा लिया लेकिन उन हज़ारों दलितों को झूठे मुकदमों से नहीं बचा पाए जो सरकारों ने उन पर बिना किसी सबूतो और गवाहों के दर्ज किए। साल 2021 में उत्तर प्रदेश के हापुड़ में दलित नेता विकास दयाल ने मुख्यमंत्री को एक ज्ञापन लिख कर Sc St आंदोलन में दलितों पर दर्ज किए गए झूठे मुकदमों को वापस लेने का आग्रह किया था। उन्होंने अपने ज्ञापन में लिखा था कि “सरकार जो दलितों के विकास के लिए प्रयासरत है। दलितों के लिए अनेक योजनाएं निकाली जा रही हैं।
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ऐसे में दलित समुदाय का रक्षाकवच कहे जाने वाले एससी एसटी एक्ट जिसको लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी एक आदेश को लेकर लोकतांत्रिक तरीके से 2 अप्रैल 2018 को भारत बंद का विभिन्न सामाजिक संगठनों द्वारा आह्वान किया गया था। जिसमे असामाजिक तत्वों द्वारा आंदोलन को बदनाम करने की साजिश रची गयी थी। इसमें सरकार द्वारा निर्दोष दलितों पर झूठे मुकदमे लगाकर सरकार ने उन्हें जेल भेजने का काम किया। 2013 में मुजफ्फरनगर में हुए धार्मिक एवं जातीय हिंसा में सरकार ने जो मुकदमे दर्ज किए थे उन्हें जनहित में वापस लिया गया। मुजफ्फरनगर की तरह ही 2 अप्रैल 2018 में दर्ज किए गए गलत एवं फर्जी मुकदमों को तत्काल आपके द्वारा जनहित में वापस लेकर दलित समाज को भी न्याय देने की मांग है।”
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वहीं दी मूकनायक की ग्राउंड रिपोर्ट के मुताबिक साल 2023 में मध्यप्रदेश में 2 अप्रैल 2018 में भारत बंद के दौरान दलितों पर दर्ज हुए झूठे मुकदमों के ख़िलाफ़ धरने दिए गए। जिसमे मांग की गई कि मुख्यमंत्री साहेब अपनी रैलियों में मुकदमे वापस लेने की बात करते हैं लेकिन धरातल पर उस पर अमल नहीं करते। अगर सरकार मुकदमे वापस नहीं लेगी तो दलित समाज बड़े स्तर पर धरना प्रदर्शन करेगा। हालांकि दलितों की लगातार मांगो के बाद भी सरकार के कानों पर जूं तकक ना रेंगी और हज़ारों दलितों पर झूठे मुकदमे बरकरार हैं।
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