नवजागरण की परंपरा को आगे बढ़ा रहा है दलित साहित्य : शरण कुमार लिम्बाले

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मराठी लेखक शरण कुमार लिंबाले ने अपनी लेखन और चितंन क्षमता के बल पर नवजागरण की परम्परा और दलित साहित्य को आगे बढ़ाने में सराहनीय योगदान दिया है। दलित समाज के हित में बात करते हुए शरण कुमार लिम्बाले कहते हैं कि- ‘दलित जीवन ने बीती सदियों में जो कुछ झेला है और जो अब भी झेल रहा है, उसके मुक़ाबले यह प्रतिदान बूंद भर भी नहीं है, कि दलित सम्मान और बराबरी की लड़ाई अभी लंबी चलनी है और जितनी समाज में चलनी है उससे ज़्यादा दिलों के भीतर कई परतों में चलनी है।’

दलित साहित्यकार शरण कुमार लिम्बाले ने दलित साहित्य पर अपने विचार साझा करते हुए अपने एक वक्तव्य में बताया कि, हिन्दू समाज प्रचीन काल से जातिवादी समाज रहा है, लेकिन इसमें सभी वर्गों और मतों को लेकर बग़ावत भी होती रही है। दलित साहित्य, आदिवासी साहित्य, स्त्री विमर्श की बग़ावत से पहले बहुत से लोगों ने बग़ावत की थी। शरण कुमार लिंबाले सामाज के जातिगत वर्गों की तो बात की ही साथ ही उन्होंने चार्वाक दर्शन, बुद्ध दर्शन, जैन दर्शन के में सामाजिक समरसता की बात की और कई महान धर्म प्रचारकों की मान्याओं को उल्लेख भी किया। साथ ही यह भी बताया कि किस प्रकार मध्यकाल में संतो ने भी जातिगत भेदभावों के विरूद्ध समाज के हित में महत्वपूर्ण काम किया।

शरण कुमार लिंबाले एक ऐसे विरले दलित साहित्यकार जो मध्यकाल से चली आव रही संतों परिपाटी को लेकर , उनकी मान्यताओं को लेकर आगे बड़े हैं। शरण कुमार लिंबाले ने अपने साहित्यक योगदान से समाजसुधारक का काम किया है। हाल ही में हुए ‘सत्य प्रकाश मिश्र स्मृति व्याख्यान माला’ के 16 वें व्याख्यान में शरण कुमार लिंबाले ने अपना वक्तव्य दिया, जिसमें उन्होंने मॉडर्न समाज को स्थापित करने की बात कही। वे, बताते है कि किस प्रकार नवजागरण ने समय के साथ हमें आगे लेकर जाने का काम किया है। अब मध्यकाल और ब्रिटिश काल में हुए नवजागरण को आगे बढ़ाने का काम दलित साहित्य कर रहा है।

प्रसिद्ध मराठी दलित लेखक शरण कुमार लिम्बाले ने इस व्याख्यान माला में ‘हमारा समय और दलित साहित्य’ विषय पर मुख्य वक्ता के तौर पर बोलने के लिए आमंत्रित किये गये थे। ‘सत्य प्रकाश मिश्र साहित्य संस्थान’ एवं हिंदी विभाग- इलाहाबाद विश्वविद्यालय ने मिलकर आयोजित किया था। गौरतलब है कि, शरण कुमार लिम्बाले मराठी भाषा के प्रसिद्ध लेखक, चिंतक और मराठी दलित साहित्य आन्दोलन के पुरोधा हैं। उनकी आत्मकथा ‘अक्करमाशी’ बहुचर्चित है।

दलित साहित्य के विकास में शरण कुमार लिम्बाले एक प्रगतिशील लेखक बनकर उभरे हैं। साथ ही वे प्रगतिशील समाज के योगदान की सराहना भी करते हैं। वे कहते हैं कि, प्रगतिशील समाज ने हमारा स्वागत किया और उसका प्रभाव मुझ पर और मेरे लेखन पर हमेशा रहा है। शरण कुमार लिम्बाले संवयं को संबोधित करते हुए कहते हैं कि- ” शरण कुमार लिम्बाले बहुत अच्छा लिखता है। ये गालियां देता है, विद्रोह करता है, ज़ोर से बोलता है तो इसका अधिकार है।”

अत: प्रगतिशील लेखक, समाज सुधारक शरण कुमार लिम्बाले पुरखों के समय से चली आ रही हजारों साल पुरानी रूढ़िवादी मानसिकता का विरोध करता हैं और कहते है कि जो हमारे पुरखों ने अत्याचार सहन किया वह आज के समय की में सहन करना कदापि उचित नहीं है। इसलिए वे वर्तमान समय में एक योद्धा बन कर नवजागरण की परम्परा और दलित साहित्य को आगे बढ़ाने में सराहनीय योगदान देने के लिए सामने आए हैं, अमानवीय व्यवस्था के ख़िलाफ़ बोलना शरण कुमार लिम्बाले अपना हक़ मानते हैं।

शरण कुमार लिम्बाले की बहुचर्चित रचनाओं में- सनातन, नरवानर, रामराज्य,हिंदू, दलित ब्राह्मण आदि 5 उपन्यास, देवता आदमी (कहानी संग्रह) और दलित साहित्य का सौंदर्यशास्त्र जैसी आलोचना पुस्तक शामिल हैं। वास्तव में देखा जाए तो, दलित साहित्यकार शरण कुमार लिम्बाले ने अपने लेखन से भारतीय साहित्य को समृद्ध किया है।

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