राष्ट्रीय राजनीति में तीसरे विकल्प के तौर पर बहुजन समाज पार्टी

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लेखक : सरवन कोरी 


बहुजन समाज पार्टी (BSP) प्रमुख और उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री  मायावती ने आने वाले 2024 के लोकसभा चुनावों और चार राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों में अकेले ही लड़ने का फैसला किया है। पार्टी ने भारतीय जनता पार्टी (BJP) के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) या विपक्ष के भारतीय राष्ट्रीय विकास समावेशी गठबंधन (INDIA) के साथ हाथ मिलाने की किसी भी संभावना को ख़ारिज कर दिया है।

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INDIA गठबंधन, जिसमें 26 पार्टियां, जिनमें कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल, और अन्य सम्मिलित हैं, को राष्ट्रीय राजनीति में भाजपा के प्रभुत्व को चुनौती देने के मकसद से बनाया गया है। गठबंधन ने जून में पटना में अपनी पहली बैठक की, उसके बाद जुलाई में बेंगलुरु में एक बैठक की गई, जहाँ इसके नाम और एजेंडे को अंतिम रूप दिया गया। गठबंधन की तीसरी बैठक मुंबई में हुई।

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हालांकि, बसपा सुप्रीमो मायावती ने बुधवार 23 अगस्त को ही साफ कर दिया था कि उनकी पार्टी न तो INDIA दल का हिस्सा होगी, और न ही वे NDA में शामिल होंगी। उन्होंने अपने ट्वीट के माध्यम से कहा कि, दोनों ही गठबंधनों में ऐसी पार्टियां हैं, जिनकी “गरीब-विरोधी, जातिवादी, साम्प्रदायिक, पूँजीपति समर्थक एवं पूंजीपति-मुलक नीतियां” हैं, जिनके खिलाफ शुरुआत से ही बसपा का संघर्ष जारी है।

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कुछ राजनेताओं औऱ राजनीतिक पार्टियों के लिए बसपा का INDIA से न जुड़ने का निर्णय चौकाने वाला हो सकता है, लेकिन उनकी पार्टी के इतिहास और विचारधारा को देखें तो मायावती का निर्णय आश्चर्यजनक नहीं है।

प्रेस को संबोधित करतीं मायावती (तस्वीर : The wire )

 

बसपा की स्थापना कांशीराम ने 1984 में दलितों और अन्य उत्पीड़ित वर्गों का प्रतिनिधित्व करने और उन्हें सशक्त बनाने के उद्देश्य से की थी। पार्टी ने “बहुजन हिताय बहुजन सुखाय” का नारा अपनाया, जिसका अर्थ है “बहुमत का कल्याण और सुख”।  पार्टी समानता, स्वतंत्रता, बंधुत्व और न्याय के सिद्धांतों के आधार पर सामाजिक परिवर्तन की भी बात करती है।

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जिसके कारण ही बसपा उत्तर प्रदेश में प्रमुखता से उभरी, जहां उसने 1995 से 2012 के बीच चार सरकारें बनाईं, जिसमें मायावती मुख्यमंत्री रहीं। तो वहीं पार्टी ने पंजाब, मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली, बिहार और महाराष्ट्र जैसे अन्य राज्यों में भी अपना आधार बढ़ाया।  पार्टी ने साल 2009 में लोकसभा का चुनाव अकेले लड़कर 21 सीटें जीतीं। और सदन में तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बन गई थी।

जुलाई महिने में नई दिल्ली में आयोजित हुई NDA गठबंधन की मीटिंग की एक तस्वीर ( तस्वीर : The new Indian express)

 

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लेकिन उसके बाद से ही बसपा को अपने चुनावी भाग्य में गिरावट का सामना करना पड़ा है।  पार्टी ने 2012 में उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के हाथों सत्ता खो दी और 2014 के लोकसभा चुनाव में शून्य सीटों पर सिमट गई।  2017 में, पार्टी उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में 19 सीटों के साथ तीसरे स्थान पर रही। और 2019 में, पार्टी ने लोकसभा चुनाव के लिए समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोक दल के साथ गठबंधन किया, लेकिन बावजूद उसके 10 सीटें जीतने में ही सफल रही।

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2022 में हुए उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में पार्टी 22.2% वोटों से महज़ 12.8% वोटों पर सिमट गई, जोकि पार्टी के पिछले 30 सालों के चुनाव इतिहास का सबसे ख़राब प्रदर्शन रहा।

मुंबई में INDIA गठबंधन की मीटिंग के दौरान ली गई तस्वीर ( तस्वीर : indian express )

 

इस संदर्भ को समझते हुए मायावती अब अपने संगठन को पुनः मजबूत करने और अपने सामाजिक आधार का विस्तार करके अपनी पार्टी की संभावनाओं को पुनर्जीवित करने की कोशिश कर रही हैं। लोकसभा चुनाव से पहले राजस्थान, छतीसगढ़, मध्यप्रदेश, और तेलंगाना में हो रहे विधानसभा चुनाव को भी बसपा का किसी भी दल से न जुड़ने के एक कारण के रूप में देखा जा रहा है। क्योंकि इनमें से 3 राज्य चुनावों में बसपा का सीधा संघर्ष कांग्रेस और बीजेपी से है। इसलिए इन पार्टियों के साथ किसी भी प्रकार का सीधा गठबंधन विधानसभा चुनावों के परिणामों में बसपा के लिए परेशानी का सबब बन सकता है।

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जहाँ एक ओर बसपा भाईचारे के आधार पर उपेक्षित करोड़ों लोगों को एकजुट करके अपने दम पर केंद्र में सरकार बनाने का दावा कर रही है, वही दूसरी ओर वह यह भी स्वीकार रही है कि ऐसा न होने की स्थिति में भी उनके अलग चुनाव लड़ने से गठबंधन की मजबूत सरकार बनने से वो रोक सकती हैं। हाल के दिनों में संविधान में किये जा रहे बदलाव व छेडख़ानी भी एक कारण हो सकता है जिसकी वजह से मायावती किसी भी गठबंधन की में शामिल नहीं हो रही है। और खुद मजबूर सरकार बनाने पर जोर दे रहीं है। ताकि आने वाले दिनों में गठबंधन सरकार बनाने में असफल रहें।

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अब INDIA और NDA में शामिल ना होने का फ़ैसला चुनावों के परिणामों को किस प्रकार प्रभावित करेगा यह तो वक्त के गर्भ में है, पर इस फैसले से बसपा सुप्रीमो मायावती ने चुनावों को लेकर अपनी   मंशा शिशे की तरह साफ कर दी है।

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