अमेरिका मे “जाति” पर CJI के भाषण के बाद उठे सवाल, भारत में कितने न्यायधीश दलित और पिछड़ी जाति के ? जानिए

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सोमवार 23 अक्टूबर को सीजेआई (CJI) डीवाई चंद्रचूड़   अमेरिका में मैसाचुसेट्स के वाल्थम स्थित ब्रैंडिस यूनिवर्सिटी में डॉक्टर भीमराव आंबेडकर की अधूरी विरासत विषय पर आयोजित छठे अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में शामिल हुए थे।

चीफ जस्टिस ने इस सम्मेलन में मुख्य वक्ता के रुप में लोगों को संबोधित किया। इस संबोधन का विषय  ‘रिफॉर्मेशन बियोंड रिप्रजेंटेशन : द सोशल लाइफ ऑफ द कंस्टिट्यूशन इन रेमेडिंग हिस्टॉरिकल रांग्स’ पर आधारित था।

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जाति और आंबेडकर पर CJI  चंद्रचूड़ ने क्या कहा?

CJI  चंद्रचूड़ ने सम्मेलन में कानून व्यवस्था पर कहा कि कानून तो बन गया है लेकिन इस कानून प्रणाली ने हाशिए (किनारे पर) पर रहने वाले लोगों के लिए मुश्किलें पैदा की हैं। इस कानून ने हाशिए पर रहने वाले लोगों के सामाजिक समूहों के खिलाफ होने वाले अपराध को कायम रखने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई हैं इस तरह की गलतियां अक्सर अन्याय को बढ़ावा देती हैं।

CJI OF INDIA, DY CHANDRACHUD

 

इस सम्मेलन में उन्होंने अफ्रीका का उदाहरण दिया उन्होंने कहा कि क्रूर दास प्रथा की वजह से अफ्रीका के लाखों लोगों को समस्याओं का सामना करना पड़ा और वहीं अमेरिका के मूल लोगों को विस्थापित होना पड़ा।

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चीफ जस्टिस ने कहा कि भारत में जातिगत भेदभाव इतना बढ़ गया है कि पिछड़ी जाति के लोग समस्या का सामना कर रहे हैं। प्रधान न्यायाधीश ने यह भी कहा कि हमारा इतिहास आदिवासी समुदायों, महिलाओं,  LGBTQI  समुदाय के लोगों और अन्य अल्पसंख्यक समुदायों के उत्पीड़न और भेदभाव के उदाहरणों से भरा हुआ है। चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने यह भी कहा कि कानून प्रणाली को अक्सर दलितों के खिलाफ अत्याचार करने और उन्हे हाशिए पर धकेलने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।

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इस सम्मेलन में उन्होंने यह भी कहा कि अमेरिका और भारत दोनों देशों में उत्पीड़ित समुदाय को काफी लंबे समय तक मतदान के अधिकार से वंचित रहना पड़ा है।सीजीआई ने यह भी कहा कि इस तरह के कानून कभी भी हाशिए पर कायम लोगों को उत्पीड़न से ऊपर उठने नहीं देते हैं। उनका यह भी कहना था कि जाति आधारित भेदभाव पर रोक लगाने वाले कानूनों के कायम होने के बाद भी दलित समुदायों के खिलाफ हिंसा की घटनाएं बढती जा रहीं हैं। लैंगिक समानता की संवैधानिक गारंटी मिलने के बाद भी पितृसत्तात्मक जैसी व्यवस्था कायम रह सकती है जिसकी वजह से लैंगिक आधारित भेदभाव और हिंसा होने की संभावना रहती हैं।

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डॉक्टर आंबेडकर के विचार पर क्या कहा?

सम्मेलन में CJI ने इस बात पर भी जोर दिया था कि आज डॉक्टर भीमराव आंबेडकर के संवैधानिक विचार ने इतनी गहरी जड़े जमा ली हैं कि इसने जातिगत प्रणाली को खत्म कर दिया है और हाशिए पर रहने वाले लोगों के लिए सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक सशक्तीकरण को बढ़ावा दिया है। आज बाबा साहेब आंबेडकर के संवैधानिक विचार ने भारतीय समाज को बदलने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

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 CJI  के भाषण पर वरिष्ठ पत्रकार ने कसा तंज :

वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल ने CJI के अमेरिका में दिये गए भाषण के बाद सुप्रीम कोर्ट के एक स्टेटमेंट को कोट करते हुए X पर लिखा,” पंडित डी.वाई. चंद्रचूड़ ने  जाति व्यवस्था के खिलाफ एक ज़ोरदार भाषण दिया जिसे सुनकर लोगों की आँखों में आँसू आ गए। फिर वे ऑफिस गए और स्वजातीय रूद्र प्रकाश मिश्रा और रमेश चंद मालवीय को पटना हाई कोर्ट का जज बनाने की कोलिजियम की सिफ़ारिश केंद्र सरकार को भेज दी।“

 

दिलीप मंडल का ट्वीट देखिए

https://x.com/Profdilipmandal/status/1716433599111844256?s=20

 

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बता दे कि वरिष्ठ पत्रकार ने सुप्रीम कोर्ट के जिस जजमेंट को कोट किया वह कॉलेजियम व्यवस्था के तहत हाई कोर्ट मे जजों की नियुक्ति का सिफारिश पत्र है जो CJI द्वारा केंद्र सरकार को भेजा गया है। बता दे कि इस सिफारिश में जिन दो जजों के नाम कॉलेजियम व्यवस्था ने दिये हैं वह दोनों रुद्र प्रकाश मिश्रा और रमेश चंद्र मालवीय हैं जो सवर्ण समाज से आते हैं। वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल का सवाल है कि अमेरिका में CJI द्वारा यह कहना कि कानून व्यवस्था में यह कहना कि दलितों के लिए सम्स्याएं उत्पन्न हुई हैं, उनके अधिकारों का हनन हुआ है फिर क्यों न्यायधीशों की नियुक्ति में दलितों और पिछड़ी जातियों को वरीयता नहीं दी जाती ?

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भारत में कितने न्यायधीश दलित और पिछड़ी जाति के:

लोकसभा में AIMIM के नेता असदुद्दीन ओवैसी ने विधि एवं न्याय मंत्रालय से यह सवाल पूछा कि क्या यह सच है की बीते पांच सालों में हाई कोर्ट में हुई जजों की नियुक्ति में 79% न्यायाधीश ऊंची जातियों से थे, जो न्यायपालिका में पिछड़ों और अल्पसंख्यकों के असमान प्रतिनिधित्व को दर्शाता है?

 

MINISTER OF LAW AND JUSTICE OF INDIA ARJUN RAM MEGHWAL

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जिसके जवाब में कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने बताया, 2018 के बाद सभी हाई कोर्ट में नियुक्त कुल जजों में 18 जज अनुसूचित जाति से संबंध रखते हैं. 9 जज अनुसूचित जनजाति, 72 अन्य पिछड़ा वर्ग और 34 अल्पसंख्यक श्रेणी से आते हैं। हालांकि लाइव लॉ की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2018 से 17 जुलाई, 2023 तक नियुक्त 604 हाई कोर्ट जज में से 458 न्यायाधीश सामान्य श्रेणी के हैं, जो 75% से अधिक हैं।

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