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जातिवाद की भेंट चढ़ी एम. के. स्टलिन की मुफ्त नाश्ता योजना, दलित के हाथ का खाने से बच्चो ने किया इंकार

चेन्नई: 25 अगस्त को तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टलिन ने सरकारी स्कूलों में बच्चों के लिए मुफ्त नाश्ता योजना शुरू की थी। इस योजना का मकसद ये था कि गरीब बच्चों को आहार मिले और बच्चों का स्कूल से भी लगाव हो। लेकिन सीएम एम.के. स्टलिन की ये योजना जातिवाद की भेंट चढ़ गई।

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दलित के हाथ का नहीं खाएंगे :

तमिलनाडु के करूर जिले के वेलंचट्टियूर के एक सरकारी स्कूल से जातिवाद का एक मामला सामने आया है। जहाँ स्कूल के कुछ बच्चों ने दलित रसोइया के हाथ का बना नाशता खाने से मना कर दिया। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक क्लास के 35 बच्चों में से 15 बच्चों ने ऐसा किया। इतना ही नहीं इन 15 बच्चों के माता पिता ने भी स्कूल प्रशासन से कहा कि अगर स्कूल में दलित रसोइया ने खाना बनाया तो हम अपने बच्चों का इस स्कूल से स्थानांतरण करवा लेंगे। वहीं माता पिता ने अपने बच्चों को स्कूल में मिल रहा नाश्ता ना खाने के लिए कहा।

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image from the telegraph

दलित रसोइया की नौकरी पर सवाल :

घटना करूर जिले के वेलंचट्टियूर में एक पंचायत संघ प्राथमिक विद्यालय की है जहाँ दलित रसोइया सुमथी ने बच्चों के लिए नाशता बनाया था। लेकिन बच्चों ने दलित के हाथ का खाने से मना कर दिया। आधे छात्रों के माता-पिता ने अपने बच्चों द्वारा दलित रसोइया- द्वारा पकाया गया नाश्ता खाने पर आपत्ति जताई। सियासत डेली की एक रिपोर्ट के मुताबिक कुछ दिन पहले तिरुपुर के कलिंगारायणपालयम पंचायत प्राथमिक विद्यालय में भी करीब दर्जन भर छात्रों ने दलित रसोइया दीपा के हाथ से बना नाशता खाने से मना कर दिया था।

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Sc, St एक्ट में होगी कार्यवाही:

जातिवाद के इस मामले की खबर जब जिला कलेक्टर को लगी तो करूर जिले के कलेक्टर प्रभु शंकर ने स्कूल का दौरा किया और दलित महिला के हाथ से बना नाश्ता भी खाया।  इसके बाद उन्होंने उन माता-पिता को बुलाया जिन्होंने अपने बच्चों को सुमथी (दलित रसोइया) द्वारा पकाया गया खाना खाने से रोका था। कलेक्टर ने उन्हें कहा कि उनकी इस हरकत पर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत मामला दर्ज करने जैसी सख्त कार्रवाई की जा सकती है।

 

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जातिवादी मानसिकता कहाँ जाने वाली है :

कलेक्टर की इस चेतावनी से अधिकांश माता-पिता अपने बच्चों को सुमथी के हाथ का बना नाश्ता खाने देने पर सहमत हुए लेकिन जातिवादी मानसिकता रखने वाले कुछ लोगों ने इसके बाद भी दलित रसोइया के हाथ से खाना बनाए जाने का विरोध किया। इसके बाद उन्हें पुलिस द्वारा भी सख्त चेतावनी दी गई। लोकिन माता-पिता नहीं माने। बल्कि अपने बच्चों को स्कूल से निकालने तक के लिए राज़ी हो गए।

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