“ज्ञान की मशाल बाबा साहेब अंबेडकर”
अछूत,नीच जात कह कर
जब प्रताड़ित किया इंसान को
पानी बांटा ,धरती बांटी
बांट दिया भगवान को
तब कलम की धार से
बाबा साहेब ने जीत लिया आसमान को |
शब्दों के समूह में लिखा
अपने अंदर की नीचता के भण्डार को
वेद ,पुराण का ज्ञान बताया
तब मनुस्मृति किताब को
इंसानियत को मारकर के
धर्म, बताया भेद-भाव को
तब कलम की धार से
बाबा साहेब ने जलाया
ज्ञान रूपी मशाल को ||
माटी की मूरत बनाकर
मंदिर में देवी को पूजा
मगर माटी में मिला दिया
नारी के अस्तित्व की पहचान को
पंडित बनकर भी ज्ञान ना पाया
समझा पैरो की धूल नारी के सन्मान को,
तब कलम की धार से,
बाबा साहेब ने ऊँचा उठाया नारी के अभिमान को |
इंसानियत भी शर्मसार हुई
देखकर उस दौर के राक्षस रूपी इंसान को
अमीरों के हक़ में ही फैसला
बताते थे जब इंसाफ को
तब कलम की धार से लिखा
बाबा साहेब ने संविधान को ||
क्षमता,गुण और ज्ञान ना देखा
बस देखा तो वर्ग और जात को
मुक़ाबले का तो मौका ही ना दिया
और श्रेष्ठ बताया बस अपने ही समाज को
नरभक्षी दरिंदे बनकर , नोचते रहे गरीब इंसान को
फिर कैसे गंगा स्नान धो देता इनके पाप को
तब कलम की धार से
बाबा साहेब किया खंडित पाखंडवाद और कर्मकाण्ड को |
पढ़ने लिखने आगे बढने का हक़ दिलाया
दिलाया समानता के अधिकार को
सर उठाकर, कदम से कदम मिलाकर चलना सिखाया
अपने हक़ के लिए आवाज़ उठाना, लड़ना सिखाया
है सिखाया छू लेना आसमान को
सूरज सा चमक कर जिसने
है मिटाया अज्ञानता के अंधकार को
हाथ जोड़ ,सर झुका कर नमन करू मैं,
बाबा साहेब की उस शख्सियत महान को ||
लेखक : सोनू कुश
(सोनू कुश हमारे दाश्रोपा हैं। यह उनकी स्वरचित कविता है जो उन्होंने हमें ईमेल द्वारा भेजी है)
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