अपने भाषण में बाबा साहेब अंबेडकर ने गांधी, जिन्ना और रानाडे पर क्या कहा था.. जानिए

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बाबा साहेब अंबेडकर अपने भाषण में हमेशा दलितों और शोषितों के कल्याण के बारे में कहते रहें हैं। महिलाओं के हितों के बारें में बोलने से भी वह पीछे नहीं हटें हैं। आपकों बता दें कि बाबा साहेब अंबेड़कर ने 1943 में रानाडे, गांधी और जिन्ना पर भाषण दिया था। इस भाषण में रानाडे गांधी और जिन्ना पर बाबा साहेब ने क्या कहा था आज हम इस लेख में जानेंगे।

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1943 में आज ही के दिन 18 जनवरी को महादेव गोविंद रानाडे के 101 वें जन्मदिन के अवसर पर पुणे की दक्कन सभा द्वारा आयोजित गोखले मेमोरियल हॉल में बाबा साहेब अंबेडकर ने “रानाडे गांघी और जिन्ना” पर भाषण दिया था।

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मैं आलोचक रहा हूँ:

“द अंबेडकरराइट टुडे“ के मुताबिक अपने भाषण में बाबा साहेब अंबेडकर ने कहा था कि लोगों ने मेरी निंदा की थी क्योंकि श्री गांधी और श्री जिन्ना की राजनीति में जो गड़बड़ी है उसकी बाबा साहेब अंबेडकर ने उसकी आलोचना की थी। उन्होंने अपने भाषण में यह भी कहा था कि उनपर आरोप लगाया गया था कि वह जिन्ना और गांधी के प्रति नफरत और अनादर का भाव रखते हैं। इस पर अपने भाषण में बाबा साहेब अंबेडकर का कहना था कि “मैं आलोचक रहा हूं और मुझे ऐसा ही रहना चाहिए। हो सकता है कि मैं गलतियाँ कर रहा हूँ, लेकिन मैंने हमेशा महसूस किया है कि दूसरों से मार्गदर्शन और निर्देश स्वीकार करने या चुप बैठने और चीजों को बिगड़ने देने की तुलना में गलतियाँ करना बेहतर है।

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महात्मा गांधी , इमेज क्रेडिट गूगल

अत्याचार आडंबर और अहंकार से नफरत:

बाबा साहेब अंबेडकर ने अपने भाषण में यह भी कहा था कि उन्हें अत्याचार आडंबर और अहंकार से नफरत है। उनका कहना है कि उनकी नफरत और आलोचना उन सभी के लिए है जिन्होंने भारतीय राजनीति की प्रगति को ठप्प कर दिया है। इसलिए वह कहते हैं कि श्री गांधी और जिन्ना दो व्यक्ति जिनकी वजह से भारतीय राजनीति की प्रगति ठप्प हुई है उनकी निंदा करने में उन्हें किसी तरह की कोई शर्मिंदगी नहीं है और इस आलोचना के लिए वह कोई माफी नहीं मांगते हैं।

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महादेव गोविंद रानाडे पर बाबा साहेब ने क्या कहा था ?

“द अंबेडकरराइट टुडे“ के मुताबिक बाबा साहेब अंबेडकर ने अपने भाषण में महादेव गोविंद रानाडे के बारे में कहा था कि “मैं रानाडे के बारे में केवल एक सार्नजनिक व्यक्ति के रुप में बात करुंगा।“

• रानाडे पर बाबा साहेब का कहना था कि उनका व्यक्तित्व महान था। और वह उत्साही स्वभाव, मिलनसार स्वभाव और अपनी क्षमता में बहुमुखी व्यक्ति थे।
• उनमें ईमानदारी थी जो सभी नैतिक गुणों का योग है और उनकी ईमानदारी “डींग मारने वाली     नहीं थी।
• उनकी ईमानदारी एक संवैधानिक गुण था न कि कोई दिखावा।
• वह न केवल शारीरिक गठन और ईमानदारी में बड़े थे, बल्कि बुद्धि में भी बड़े थे।
• कोई भी इस बात पर संदेह नहीं कर सकता कि रानाडे की बुद्धि उच्च कोटि की थी।
• वह केवल एक वकील और उच्च न्यायालय के न्यायाधीश नहीं थे, वह एक प्रथम श्रेणी के अर्थशास्त्री, एक प्रथम श्रेणी के इतिहासकार, एक प्रथम श्रेणी के शिक्षाविद् और एक प्रथम श्रेणी के दिव्य व्यक्ति थे।
• बाबा साहेब अंबेडकर ने अपने भाषण में यह भी कहा था कि रानाडे कोई राजनेता नहीं थे। और यह अच्छा हुआ अगर वह राजनेता होते तो शायद वह एक महान व्यक्ति नहीं होते।

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मोहम्मद अली जिन्ना, इमेज क्रेडिट गूगल

 

• रानाडे राजनीतिज्ञ नहीं थे वह राजनीति के गहन अध्ययनकर्ता थे।
• ऐसा कोई विषय नहीं था जिसे उन्होंने न छुआ हो और जिसमें उन्होंने गहनता न प्राप्त की हो। उनका पढ़ना विशाल पैमाने पर था।
• रानाडे को एक इतिहासकार, अर्थशास्त्री या शिक्षाविद् से अधिक एक समाज सुधारक के रूप में जाना जाता है। उनका पूरा जीवन समाज सुधार के लिए एक अनवरत अभियान के अलावा और कुछ नहीं है।
• एक समाज सुधारक के रूप में उनकी भूमिका पर ही महान व्यक्ति होने की उपाधि निहित है। रानाडे के पास दूरदर्शिता और साहस दोनों थे जिनकी एक सुधारक को आवश्यकता होती है।
• रानाडे जानते थे कि जाति व्यवस्था में सुधार एक तत्काल आवश्यकता है।
• रानाडे ने हिंदू समाज के नैतिक स्वर को सुधारने पर ज़ोर दिया था। उनका कहना था कि या तो नई व्यवस्था का निर्माण करो या पुरानी व्यवस्था को शुद्ध करो।
• रानाडे ने गांधी और जिन्ना जैसा कोई भी लापरवाह अहंकार नहीं दिखाया था।

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भाषण में बाबा साहेब अंबेडकर ने गांधी और जिन्ना पर क्या कहा था?

• बाबा साहेब अंबेडकर ने कहा था कि जिन्ना का कहना था कि गांधी को स्वीकार करना चाहिए कि वह हिंदू हैं।
• गांधी इस बात पर जोर देते थे कि जिन्ना को यह स्वीकार करना चाहिए कि वह मुसलमानों के नेताओं में से एक हैं।
• दोनों की इस सोच पर बाबा साहेब अंबेडकर कहते थे कि राज्य कौशल के दिवालियेपन की इतनी दयनीय स्थिति पहले कभी नहीं देखी गई, जैसी भारत के इन दो नेताओं में देखी जाती है। वे वकीलों की तरह लंबे और अंतहीन भाषण दे रहे हैं, जिनका काम हर चीज का विरोध करना, कुछ भी स्वीकार न करना और समय के हिसाब से बात करना है।
• इन दोनों महापुरुषों के हाथों में राजनीति फिजूलखर्ची की होड़ बन गयी है। यदि श्री गांधी को महात्मा के रूप में जाना जाता है । तो श्री जिन्ना को कायद-ए-अजीम के रूप में जाना जाना चाहिए।
• यदि गांधी के पास कांग्रेस है, तो श्री जिन्ना के पास मुस्लिम लीग अवश्य होगी।
• यदि कांग्रेस के पास एक कार्य समिति और अखिल भारतीय कांग्रेस समिति है, तो मुस्लिम लीग के पास भी अपनी कार्य समिति और अपनी परिषद होनी चाहिए।

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• कांग्रेस के अधिवेशन के बाद लीग का भी अधिवेशन होना चाहिए। यदि कांग्रेस कोई बयान जारी करती है, तो लीग को भी उसका अनुसरण करना चाहिए।
• यदि कांग्रेस 17,000 शब्दों का प्रस्ताव पारित करती है, तो मुस्लिम लीग का प्रस्ताव कम से कम एक हजार शब्दों से अधिक होना चाहिए।
• यदि कांग्रेस अध्यक्ष की प्रेस कॉन्फ्रेंस है, तो मुस्लिम लीग के अध्यक्ष की भी प्रेस कॉन्फ्रेंस होनी चाहिए।
• यदि कांग्रेस को संयुक्त राष्ट्र में अपील करनी है, तो मुस्लिम लीग को खुद को पराजित नहीं होने देना चाहिए।
• यदि कांग्रेस को संयुक्त राष्ट्र में अपील करनी है, तो मुस्लिम लीग को खुद को पराजित नहीं होने देना चाहिए।

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रानाडे के राजनीतिक दर्शन के तीन प्रस्ताव:

• हमें किसी ऐसी चीज़ को अपना आदर्श नहीं बनाना चाहिए जो पूरी तरह से काल्पनिक हो। एक आदर्श ऐसा होना चाहिए जिसमें यह आश्वासन हो कि वह व्यावहारिक है।
• राजनीति में बुद्धि और सिद्धांत से ज्यादा महत्व जनता की भावना और स्वभाव का होता है. विशेषकर संविधान निर्माण के मामले में ऐसा होता है। संविधान उतना ही स्वाद का विषय है जितना कि कपड़े। दोनों को फिट होना चाहिए, दोनों को खुश होना चाहिए।
• राजनीतिक बातचीत में नियम वही होना चाहिए जो संभव हो। इसका मतलब यह नहीं है कि हमें जो दिया जाए उससे संतुष्ट रहना चाहिए। नहीं, इसका मतलब यह है कि जब आप जानते हैं कि आपके प्रतिबंध आपके प्रतिद्वंद्वी को और अधिक स्वीकार करने के लिए मजबूर करने के लिए अपर्याप्त हैं, तो आपको जो पेशकश की जाती है उसे अस्वीकार नहीं करना चाहिए।

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महादेव गोविंद रानाडे, इमेज क्रेडिट गूगल

कांग्रेस प्रेस पर तीखा हमला:

द अंबेडकरराइट टुडे” के मुताबिक अपने भाषण में बाबा साहेब अंबेडकर ने अपने भाषण में कांग्रेस प्रेस पर भी तीखा हमला बोला था । उनका कहना था कि “मैं कांग्रेस प्रेस को अच्छी तरह जानता हूं। मैं इसकी आलोचना को कोई महत्व नहीं देता। इसने कभी भी मेरे तर्कों का खंडन नहीं किया। यह केवल मेरे हर काम के लिए मेरी आलोचना करना, फटकारना और मेरी निन्दा करना [कैसे] जानता है? और मैं जो कुछ भी कहता हूं उसे गलत तरीके से पेश करना, गलत तरीके से प्रस्तुत करना और विकृत करना। मैं जो कुछ भी करता हूं वह कांग्रेस प्रेस को खुश नहीं करता “। इस पर बाबा साहेब अंबेडकर ने यह भी कहा था कि मेरे प्रति कांग्रेस प्रेस की शत्रुता को अछूतों के प्रति सवर्णों की नफरत के रुप में समझा जा सकता है।

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मैं मूर्तिपूजक नहीं हूं:

कांग्रेस प्रेस पर बाबा साहेब अंबेडकर ने यह भी कहा था कि “कांग्रेस प्रेस द्वारा मुझे चाहे जितनी भी तीखी और गंदी गालियाँ दी जाएँ, मुझे अपना कर्तव्य अवश्य निभाना चाहिए। मैं कोई मूर्तिपूजक नहीं हूं। मैं उन्हें तोड़ने में विश्वास रखता हूं. मैं इस बात पर जोर देता हूं कि अगर मैं श्री गांधी और श्री जिन्ना से नफरत करता हूं – मैं उन्हें नापसंद करता हूं, मैं उनसे नफरत नहीं करता – तो ऐसा इसलिए है क्योंकि मैं भारत से अधिक प्यार करता हूं। यही एक राष्ट्रवादी की सच्ची आस्था है। मुझे आशा है कि मेरे देशवासी किसी दिन सीखेंगे कि देश मनुष्यों से बड़ा है, श्री गांधी या श्री जिन्ना की पूजा और भारत की सेवा दो बहुत अलग चीजें हैं और एक दूसरे के विरोधाभासी भी हो सकते है।

 

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