जाई खामकर एक ऐसी महिला जिन्होंने अपनी आंखे हमेशा के लिए खो दीं, पर अपने नज़रिए से बदली समाज की सोच

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“मैं भले ही  देख नहीं  सकती लेकिन खुद को दृष्टिहीन नहीं मानती, मैं देख नहीं सकती पर मेरे पास भी एक नज़रिया है नज़र और नज़रिया दोनों अलग अलग चीज़ें हैं  मेरा नज़रिया और मेरा मिशन एक ही है दिव्यांग लोगों को आत्मनिर्भर बनाना”
जाई खामकर

किसान परिवार से संबंध रखने वाली “जाई खामकर” एक ऐसी महिला जिनकी महज़ 17 साल की उम्र में लगभग जिंदगी बर्बाद हो गई थी। डॉक्टर तक ने कह दिया था कि “यह लड़की अब बचेगी नहीं” लेकिन इस लड़की ने 6 महीने तक मौत से संघर्ष किया और मौत को हरा दिया। लेकिन इस लड़की ने अपनी आंखे हमेशा के लिए खो दीं। आंखे खोने के बाद ही उन्होंने ज़िदगी की असली रोशनी को पहचाना और इस रोशनी से विकलांग और दृष्टिबाधित लोगों के जीवन को रोशन किया।

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जाई खामकर का साल 1997 :

जाई खामकर का जीवन मुश्किलों से भरा हुआ था उन्होंने अपने जीवन में काफी संघर्षो का सामना किया था। BBC की रिपोर्ट के मुताबिक साल 1997 में जाई खामकर 12वीं कक्षा में पढ़ती थीं। उन्हें उस दौरान बुखार हो गया था तो एक निजी अस्पताल में डॉक्टर ने उन्हें इंजेक्शन लगा दिया था जिसके बाद वह बेहोश हो गईं थीं। होश आने पर उनकी बॉडी पर रिएक्शन हो गया था। चेहरा, आंखें, हाथ और पैर सूज गए थे। उनके परिवार वालों ऐसा लगने लगा कि इस पर किसी का साया है।” दानव। आख़िरकार, चार दिनों के बाद, ठाणे सरकारी कार्यालय भेजा गया। अस्पताल में भर्ती कराया गया।” जब उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया तो स्थिति काफी खराब हो चुकी थी. शरीर की चमड़ी उधड़ गयी थी शरीर कमजोर होता जा रहा था। वह दर्द से चीखना चाहती थी। अपनी इस स्थिति पर बात करते हुए जय खामकर कहती हैं कि “जांच के बाद डॉक्टर ने बताया कि इंजेक्शन की एक्सपायरी डेट होने के कारण रिएक्शन हुआ है”

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डॉक्टर ने कहा अब ये नहीं बचेंगी :

उस दौरान जाई खामकर की स्थिति इतनी खराब थी कि ड़ॉक्टरों ने उन्हें जवाब दे दिया था कि अब ये नहीं बचेंगी। फिर उनका इलाज शुरु हुआ और जब वह कुछ महीनों तक अस्पताल में रहीं जिसके बाद उन्हें धुंधला दिखाई देने लगा था क्योंकि वह घावों, दर्द निवारक दवाओं, सेलाइन, इंजेक्शनों से जूझ रहीं थीं। BBC की रिपोर्ट के मुताबिक जाई खामकर ने बताया कि “4 महीने हुए होंगे, मेरी दृष्टि बंद हो गई। उस बीमारी के दौरान मेरी आंखें पढ़ नहीं पाती थीं। छह महीने बाद मैं अस्पताल से घर आयी।” जय खामकर को पूरी तरह से दिखना बंद हो गया था और इसे वह स्वीकार नहीं कर पा रहीं थीं। लेकिन धीरे धारे जाई खामकर ने इस सच्चाई को स्वीकार लिया था।

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जाई खामकर, इमेज क्रेडिट बीबीसी

टेलीफोन बूथ चलाने का अवसर :

जीवन की तमाम समस्याओं को पार करते हुए जय खामकर ने अपनी पढ़ाई भी पूरी कर ली थी। उन्हें गांव से थोड़ी दूरी पर STD टेलीफोन बूथ चलाने का अवसर मिला। इस पर BBC से बात करते हुए जाई खामकर कहती हैं कि “लोग आश्चर्यचकित थे कि मैं अंधी होने के बावजूद इतनी बार फोन का जवाब दे सकती हूं। मैं इस काम में इतनी अच्छी हो गयी थी कि मुझे लगभग 1,000 फोन नंबर याद हो गए। लोग भी आश्चर्यचकित थे।”

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मालगंगा अंधा अपंग सेवा संस्था की स्थापना :

टेलीफोन बूथ पर कामयाबी के कारण जय खामकर से कई विकलांग और दृष्टिबाधित लोग उनसे मदद मांगने लगे। जाई खामकर ने पुणे के गांवों में सैकड़ों विकलांग और दृष्टिबाधित लोगों को प्रमाणपत्र दिलाने में मदद की। फिर जाई खामकर ने विकलांग और दृष्टिबाधित लोगों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए 2005 में मालगंगा अंधा-अपंग सेवा संस्था की स्थापना की। इससे पहले स्वरोजगार के लिए जय खामकर ने प्याज आलू के बैग बनाने का काम शुरु किया था।

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लोगों के तानों का सामना :

जाई खामकर के लिए यह सफ़र आसान नहीं था उन्होंने अपनी निजी जिंदगी में कई उतार चढ़ाव का सामना किया था। अपने रिश्तेदारों के कटु बोल का भी सामना किया था। उनके रिश्तेदार या लोग उनसे बोलते थे कि तुम अंधे हो क्या करना चाहते हो ?
शादी के मामले में भी उनसे तीखेपन से सवाल पूछा जाता था लेकिन उनकी शादी एक रिश्तेदार से हो गई थी।  BBC रिपोर्ट के मुताबिक जाई खामकर जब टेलीफोन बूथ पर काम करती थीं उस दौरान भी लोग उन्हें ताना देते थे और कहते थे कि तुम अंधी हो क्या ही कर लोगी ?

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52 दृष्टिबाधित लड़कियों और दिव्यांगों को प्रोफेशनल मदद :

दृष्टिहीनों और विकलांगों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए मालगंगा संस्था ने काम करना शुरू कर दिया था। जब संस्था ने 2014 में काम करना शुरु किया तो पुणे की कुछ विकलांग और दृष्टिबाधित लड़कियां उनके संपर्क में आई। इन लड़कियों का एक विज्ञापन ने ध्यान अपनी ओर खींचा था। इस विज्ञापन पर लिखा था कि “52 दृष्टिबाधित लड़कियों और दिव्यांगों को प्रोफेशनल मदद” जब जय खामकर ने इन लड़कियों से बात की तब उन्हें पता लगा कि जिस हॉस्टल में वह रहकर अलग अलग कॉलेजों में पढ़ती थीं अब वह बंद हो चुका है। उनके पास कमाने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। जाई खामकर जब विकलांग छात्रों से जुड़े मुद्दों पर काम कर रही थी तब उन्होंने साल 2019 में न्यू विज़न आर्ट एंड कॉमर्स कॉलेज शुरु किया। इस कॉलेज में पूरे महारष्ट्र और बाहर के राज्यों से भी विद्यार्थी पढ़ने के लिए आते थें।

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एक ही स्थान पर शिक्षा और छात्रावास की स्थापना :

अब इसमें सबसे बड़ा सवाल यह था कि बिना हॉस्टल के वह सभी कहां रहने वाले थे? इसलिए वह सभी अपनी पढ़ाई छोड़कर अपने अपने गांव चले गए थे। BBC की रिपोर्ट के मुताबिक इस पर बात करते हुए जय खामकर कहती हैं कि “उस समय मुझे बहुत दुख हुआ कि हम पुणे जैसी जगह में उनके लिए कुछ नहीं कर सके। इसलिए मैंने फैसला किया कि एक दिन हम इन लड़कियों के लिए एक ही स्थान पर शिक्षा और छात्रावास स्थापित करेंगे।” इसके बाद जाई खामकर ने शिक्षा विभाग को प्रस्ताव भेजा लेकिन इसमें उन्हें कुछ खास सफ़लता नहीं मिली।
लेकिन सरकार से बार बार संपर्क करने पर 2017 में उनके कॉलेज को मंजूरी मिल गई। इस पर BBC से बात करते हुए जाई खामकर कहती हैं कि दृष्टिहीनों और विकलांगों के लिए यह पहला ऐसा कॉलेज है। उन्होंने केंद्र और राज्य सरकार से अनुदान की मांग की थी। जिसमें ग्यारहवीं-बारहवीं कक्षा के स्कूलों को भी अनुमति दी गई थी। उनका कहना था कि कॉलेज और हॉस्टल एक साथ होने चाहिए।

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