UCC: समान नागरिक संहिता पर क्या थी संविधान सभा और डॉ. अंबेडकर की राय

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समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) का मुद्दा फिर चर्चा का विषय बना हुआ है, हालांकि इस पर चर्चा संविधान सभा से लेकर जनसंघ के समय में भी हुई और आज बीजेपी के शासन में भी चल रही है। UCC भारत में एक ऐसा मुद्दा रहा है जिसका कुछ खेमों ने समर्थन किया है तो कुछ इसका सिरे से विरोध करते रहे हैं। राजनीतिक पार्टियां चुनावों के दौरान इस पर जम कर राजनीति करती है, वहीं दूसरी ओर चुनाव खत्म होते ही इस मुद्दे को वापस बस्ते में डाल दिया जाता है। विधि आयोग ने भी समान नागरिक संहिता को न आवश्यक और न वांछनीय बताया है। समान नागरिक संहिता के मुद्दे की बहसों और मतों को सही ढंग से समझने के लिए आईए समझते है कि समान नागरिक संहिता है क्या?

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क्या है समान नागरिक संहिता?

संविधान के अनुच्छेद 44 में समान नागरिक संहिता या Uniform Civil Code पर चर्चा की गई है। राज्य के नीति निदेशक तत्वों से संबंधित यह अनुच्छेद कहता है राज्य, भारत के समस्त राज्यक्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता प्राप्त कराने का प्रयास करेगा। साधारण शब्दों में कहें तो यह भारत के प्रत्येक नागरिक के लिए समान कानून की बात करता है चाहे वह किसी भी धर्म और जाति से संबंध रखता हो। जैसा कि भारत के संविधान की प्रस्तावना में निर्देशित है भारत एक सार्वभौम,समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक और गणतंत्रवादी राज्य है। तो देश के कानून में सभी धर्म, जाति या वर्ग को एक समान आंकना समान नागरिक संहिता की मांग है।

एक सभा में मंच से लोगों को संबोधित करते बाबा साहेब अंबेडकर (image : google)

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UCC पर संविधान सभा और डा. अंबेडकर

संविधान सभा की बहस में भी समान नागरिक संहिता का मुद्दा चर्चा का विषय रहा था। संविधान सभा में केएम मुंशी, अल्लादी कृष्णास्वामी और अंबेडकर ने UCC का समर्थन किया। नजीरुद्दीन अहमद और कुछ अन्य सदस्य इसके खिलाफ थे, उनका मानना था यह उनके धार्मिक कानूनों को प्रभावित करेगा। इसी कारण अल्पसंख्यक समुदाय का एक पक्ष आज भी इसका सिरे से विरोध कर रहा है। दूसरी ओर रूढ़िवादी हिंदुओं की भी इस कानून को लेकर तीखी प्रतिक्रिया रही, उन्हें डर था अगर इस तरह का कोई कोड या संहिता लागू की जाती है तो उनके धार्मिक मूल्य और शास्त्रों की तवज्जों कम हो जाएगी।

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जबकि अंबेडकर धार्मिक संहिताओं के खिलाफ थे। डा. अंबेडकर का मानना था रूढ़िवादी धार्मिक संहिताओं ने समाज में असमानता और ऊंच-नीच को जन्म दिया है। इन धार्मिक संहिताओं से सबसे अधिक नुकसान महिलाओं और छोटी जातियों का हुआ है, ऐसी संहिताओं के कारण ही उन्हें सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक रूप से आगे बढ़ने के मौके और अधिकार नहीं मिल सके। इसलिए ज़रूरी है कि समान नागरिक संहिता जैसा कोई कानून हो, जहां धर्म और जाति के इत्तर सब एक समान हों। हालांकि इसके लागू होने में धार्मिक कानून और रूढ़िवादी सोच आड़े आती रही है।

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संविधान सभा की बहस में डॉ. अंबेडकर ने पश्चिमी नागरिक संहिता से प्रेरित होकर भारतीय समाज में सुधार के उद्देश्य से समान नागरिक संहिता की वकालत की। उन्होंने उन सभी प्रतिनिधियों का विरोध किया जो उस समय व्यक्तिगत कानूनों या धार्मिक संहिताओं के पक्ष में खड़े थे। उन्होंने मुस्लिम प्रतिनिधियों से प्रश्न किया कि

संविधान सभा की तस्वीर (image : wikipedia)

मैं व्यक्तिगत रूप से यह नहीं समझ पा रहा हूं कि धर्म को इतना विशाल, विस्तृत क्षेत्राधिकार क्यों दिया जाना चाहिए,ताकि पूरे जीवन को कवर किया जा सके और विधायिका कोस क्षेत्र में अतिक्रमण करने से रोका जा सकें। आखिरकार, हमें यह स्वतंत्रता किसलिए मिल रही है? यह स्वतंत्रता हमारी सामाजिक व्यवस्था को सुधारने के लिए है, जो असमानताओं, भेदभावों और अन्य चीजों से भरी हुई है, जो हमारे मौलिक अधिकारों के साथ टकराव करती है।

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इसके साथ ही रूढ़िवादी हिंदुओं और परंपरावादी कांग्रेसियों के विरुद्ध  भी डॉ. अंबेडकर ने इस बहस में बोला। बहस के चार दिन बाद अंबेडकर ने एक भाषण दिया जिसमें उन्होंने राम और सीता की नैतिकता और राधा और कृष्ण के विवाह संबंधों पर हिंदू परिदृश्य की आलोचना की, जिसके बाद हिंदू परंपरावादी कांग्रेसी उनके विरुद्ध दिखाई पड़े। हालंकि इस भाषण से पहले तक नेहरू, अंबेडकर और समान नागरिक संहिता के समर्थन में थे। इसके बाद विवाह और तलाक संबंधी हिंदू कोड बिल के हिस्सों को संशोधनों के माध्यम से अलग कर दिया गया, जिसका नेहरू ने बिलकुल विरोध नहीं किया। इसके बाद अंबेडकर ने सरकार से त्यागपत्र दे दिया।

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UCC पर जनसंघ के दौर से चल रही है कवायद :

भारतीय जनसंघ (अब भाजपा) ने 1967 के आम चुनावों में पहली बार समान नागरिक संहिता की मांग की और इसे अपने मैनिफेस्टो में शामिल किया। 1967 के चुनावों में जनसंघ की सरकार नहीं बन सकी, तो यह मुद्दा फिर से शांत हो गया था। 1980 में जब जनसंघ भाजपा बनी तब इस मुद्दे को नए सिरे से उठाया गया। भाजपा के तीन मुख्य मुद्दे राम मंदिर निर्माण, अनुच्छेद 370 हटाना और समान नागरिक संहिता ही रहे हैं।

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डा. अंबेडकर और भाजपा का UCC :

समान नागरिक संहिता एक ऐसा मुद्दा रहा है जो सियासत और समाज दोनों को समान रूप से प्रभावित करता है। डा. अंबेडकर का समान नागरिक संहिता का विचार मुख्य तौर पर सामाजिक सुधार से अधिक संबंधित था उनका मानना था कि समान नागरिक संहिता के माध्यम से भारत में भी पश्चिमी देशों की तरह सुधार किए जा सकेंगे जोकि समाज को प्रगतिशील भी बनाएगा। उनका मानना था कि व्यक्तिगत और धार्मिक कानूनों को खत्म करके समाज में पीछे रह गए तबकों और महिलाओं के लिए समानता और अधिकारों की यूसीसी के माध्यम से पैरवी होनी चहिए।

UCC लागू करने वाला उत्तराखंड भारत में पहला राज्य हो सकता है (image : google)

लेकिन सवाल यह है जिस समान नागरिक संहिता का समर्थन अंबेडकर कर रहे थे क्या भाजपा का समान नागरिक संहिता का विचार वैसा ही है या यह राजनीतिक दांव पेंचो से लेस है?  यूसीसी पर सियासत संविधान सभा में भी ज़ारी थी और आज भी। जबकि अंबेडकर इसे समाज और राष्ट्र की प्रगति के नज़रिए से देख रहे थे। अब देखना यह होगा कि भाजपा के द्वारा लागू UCC देश में सभी धर्म, जाति और वर्ग के लिए समान रूप में लागू होगा या नहीं?

 

Reference:

https://hindi.newsclick.in/what-ambedkar-really-uniform-civil-code

https://www.jansatta.com/jansatta-special/ambedkar-and-uniform-civil-code-why-ambedkar-supported-ucc/2894071/#:~:text=%E0%A4%85%E0%A4%82%E0%A4%AC%E0%A5%87%E0%A4%A1%E0%A4%95%E0%A4%B0%20%E0%A4%94%E0%A4%B0%20UCC,%E0%A4%95%E0%A4%BE%20%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%96%E0%A5%8D%E0%A4%AF%20%E0%A4%AD%E0%A5%80%20%E0%A4%B2%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%AF%20%E0%A4%B9%E0%A5%88%E0%A4%82%E0%A5%A4%E2%80%9D

https://www-outlookindia-com.translate.goog/website/story/ambedkar-and-the-uniform-civil-code/221068?_x_tr_sl=en&_x_tr_tl=hi&_x_tr_hl=hi&_x_tr_pto=tc

 

लेखिका : निशा भारती दिल्ली विश्वविद्यालय में छात्रा और पत्रकार है। सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर लिखना- पढ़ना और सीखना पसंद है।

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