पुण्यतिथि विशेष:  भिखारी ठाकुर को भोजपुरी का शेक्सपीयर क्यों कहा गया ?  पढ़िए..

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भोजपुरी शेक्सपीयर के नाम से विख्यात भिखारी ठाकुर बिहार में नृत्य और लोक विधाओ के सुत्रधार माने जाते है। भिखारी ठाकुर को भोजरपुरी भाषा से काफी लगाव था। भोजपुरी के शेक्सपीयर कहे जाने वाले लोक कलावंत भिखारी ठाकुर भोजपुरी के समर्थ लोक कलाकार होने के साथ ही रंगकर्मी, लोक जागरण के सन्देश वाहक, नारी विमर्श और दलित विमर्श के उद्घोषक रहे हैं। भिखारी ठाकुर लोक गीत तथा भजन कीर्तन के भी लोकप्रिय रह चुके हें।  आज यानि 10 जुलाई को भिखारी ठाकुर की पुण्यतिथि है तो आईए जानते है उनके जीवन चक्र के बारें में..

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भिखारी ठाकुर का जन्म : 

भिखारी ठाकुर का जन्म 18 दिसंबर, 1887 को बिहार के छपरा जिले के क़ुतुबपुर नामक गांव में एक सामान्य नाई परिवार में हुआ था। पिता  का नाम दलसिंगार ठाकुर था एवं माता का नाम शिवकली देवी था। भिखारी ठाकुर का पूरा परिवार जज़मानी व्यवस्था के तहत कार्य करता था जिसमें वह हजामत बनाना, चिट्ठी नेवतना, शादी-विवाह, जन्म-श्राद्ध एवं अन्य अनुष्ठानों तथा संस्कारों के कार्य किया करते थे।

भोजपुरी के शेक्सपीयर के नाम से प्रख्यात भिखारी ठाकुर (image : wikipedia)

 

भिखारी ठाकुर एक कवि, गीतकार, नाटककार, लोक संगीतकार, के साथ ही वह कई कलाओ में परिपूर्ण थे। इनके परिवार में दूर तक गीत, संगीत, नृत्य, नाटक का किसी प्रकार का कोई भी माहौल नही हुआ करता था। भिखारी ठाकुर ने अपने जीवनी गीत में लिखा है, कि वह नौ वर्ष के हो गए थे जब उन्होंने स्कूल जाना शुरू किया था। एक वर्ष तक स्कूल जाने के बाद भी उन्हें एक भी अक्षर का ज्ञान नहीं हुआ तब वो अपने घर की गाय को चराने लगे। धीरे-धीरे अपने परिवार के जातिगत पेशे के अंतर्गत हज़ामत बनाने का काम भी करने लगे।

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जब हज़ामत का काम करने लगे तब उन्हें दुबारा से पढ़ने-लिखने की इच्छा हुई। गाँव के ही भगवान साह नामक लड़के (बनिया) ने उन्हें पढ़ाया। तब जा कर उन्हें अक्षर ज्ञान हुआ था। जिसके बाद उनकी शादी हो गई। बाद में वो हजामत बना कर रोज़ी-रोटी कमाने के मक़सद से खड़गपुर (बंगाल) चले गए। वहाँ से फिर मेदनीपुर (बंगाल) गए तथा वहाँ रामलीला देखी। कुछ समय बाद वो बंगाल से वापस अपने गाँव आ गए तथा गाँव के लोगों को इकट्ठा कर रामलीला का मंचन भी किया। परंतु जल्द ही उन्होंने रामलीला को छोड़ कर अपनी नाच मंडली को तैयार कर लिया।

भिखारी ठाकुर की नाच मंडली :

महान संगीतकार के साथ ही भिखारी ठाकुर नाच मंडली के लिए भी जाने जाते है उनके नाच मंडली बनाने से पूर्व ही उस क्षेत्र में नाच निम्न जाति-वर्ग की अभिव्यक्ति एवं मनोरंजन का एक बहुत ही महत्वपूर्ण विधा रही थी। नाच के अधिकतर कलाकार निम्न जाति-वर्ग से होते थे। स्त्री पात्र का अभिनय भी पुरुष ही करते थे, जिसे “लौंडा नाच” कहा जाता था।

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समाज में इस विधा से जुड़े कलाकारों को कुछ ख़ास वर्गों द्वारा हमेशा हेय दृष्टि से देखा जाता था। इन सभी सामाजिक परिस्थितियों को जानते-समझते हुए भी भिखारी ठाकुर ने मनोरंजन की इस विधा को चुना एवं उसमें अपनी सृजनात्मक अभिव्यक्ति की।

 

भिखारी ठाकुर द्वारा लिखित उपन्यास को मंच पर प्रदर्शित करती एक तस्वीर (image : the lallantop)

रचनात्मक शैली :

भिखारी ठाकुर का रचनात्मक जगत बेहद सरल और देशज था। इसमें भिन्न-भिन्न तरह की विषमताएं, सामंती हिंसा, मनुष्य के छल-प्रपंच आदि शामिल थे। उन्होंने अपनी कलम की नोंक से जगत को एक अलग रूप में दिखाया था। उनकी भाषा चुहल, व्यंग्य और कमल की जादूगरी का ऐसा मिश्रण थी, जिसे सामान्य मनुष्य कहने से डरता है। भिखारी ठाकुर की रचनाएं ऊपर से जितनी सरल दिखती है वो भीतर से उतनी ही जटिल होती है।

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उनकी रचनाओं के भीतर मनुष्य की चीख-पुकार का खास अनुभव मिलता है। उनकी रचनाओं से आपको अपने दु:खों से प्रपंचों से लड़ने की एक अलग सी शक्ति मिलती हैं। भिखारी की रचनाओं में आपको शब्द ज्ञान से लेकर चिंतन के असीमित क्षेत्र का ज्ञान मिलेगा।

भिखारी ठाकुर के नाटक :

भिखारी ठाकुर नृत्य कलाओ के साथ ही अपनी नाट्य शेली के लिए भी जाने जाते थे। उनके नाटक महत्वपुर्ण माने जाते है आज भी उनके नाटक काफी लोकप्रिय माने जाते है :

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बिदेसिया भिखारी ठाकुर का सबसे प्रसिद्ध नाटक है। इस नाटक का मुख्य विषय विस्थापन है। इस नाटक में एक निम्न वर्ग के ऐसे परिवार को दिखाया गया है जो भूमिहीन है तथा परिवार का अकेला पुरुष रोजी-रोटी की तलाश में शहर विस्थापित होता है। यह एक प्रतिनिधिपरक कहानी है जो उस क्षेत्र में तब निम्न जाति-वर्ग के हर घर की सच्चाई हुआ करती थी।

 

भिखारी ठाकुर द्वारा लिखित पुस्तक “बिदेसिया” ( image : google)

 

बिरहा-बहार – उनके इस नाटक की कहानी का मुख्य किरदार दलित वर्ग के धोबी-धोबिन है। भिखारी ठाकुर ने इस नाटक में कपड़ा धुलने वाले धोबी-धोबिन की तुलना आत्मा धोने वाले ईश्वर से की है।

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चौवर्ण पदवींभिखारी ठाकुर की यह गाथा गायन की शैली है। इसमें समाज के चारों वर्णों के मेल-मिलाप को भिखारी ठाकुर ने इस प्रसंग में उठाया है। जिसमें समाज में फैले जाति-व्यवस्था पर गम्भीर कटाक्ष है।

बेटी-बेचवा इस नाटक का मुख्य विषय तत्कालीन समाज में व्याप्त बेमेल विवाह रहा है। इस नाटक में यह दिखाया गया है कि किस तरह अमीर ज़मींदार लोग बुढ़ापे में भी निम्न जाति-वर्ग के ग़रीबों की कम उम्र की लड़कियों को ख़रीद कर उनसे शादी कर उनकी ज़िंदगी बर्बाद करते थे।

भिखारी ठाकुर द्वारा लिखित पुस्तक “बेटी-बेचवा” ( image : google)

नकल भांड आ नेटुआ के भिखारी ठाकुर अपने नाच में इस लोकप्रिय फ़ॉर्म का इस्तेमाल किया करते थे। जिसमें गीत-संगीत, नृत्य एवं अभिनय समाहित है। नकल भांड आ नेटुआ के एकपात्री नाटक है जिसमें सामाजिक कुरितों पर गहरा व्यंग है। भांड या भांट और नेटुआ आज भी हाशिए का समाज है।

नाई बाहर इस नाटक के जरिए भिखारी ठाकुर ने सामंतवादी समाज में जज़मानी प्रथा के अंतर्गत नाई-जाति के साथ क्या-क्या भेद-भाव होता है इस विषय को बहुत प्रमुखता से इस नाटक में उभारा है।

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पिया निसइल इसके तहत भिखारी ठाकुर ने बहुजन समाज और भोजपुरी समाज के बहुसंख्यक आबादी के लिए नशाखोरी को एक बड़ी समस्या के रूप में रेखांकित किया है जिसमें औरतों को बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। जब उसका पति या बेटा शराबी हो जाता है। यह समस्या निम्न जाति-वर्ग में अधिक विद्यमान रही है।

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