जातिवाद के कड़े आलोचक “प्रबोधनकार ठाकरे” के बारे में क्या ये सब जानते हैं आप?

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प्रबोधनकार ठाकरे का जन्म 17 सितंबर, 1885 को पनवेल में हुआ था। वैसे इनका नाम “केशव सीताराम ठाकरे” था। लेकिन इन्हें इनके “प्रबोधनकार ठाकरे” उपनाम से जाना जाता था। प्रबोधनकार ठाकरे एक भारतीय समाज सुधारक थे। इन्होंने अंधविश्वास जैसी बुराईयों का भी अंत किया था। आज प्रबोधनकार ठाकरे की पुण्यतिथि के दिन हम अपने इस लेख में उनके जीवन और समाज के लिए उनके योगदान के बारे में जानेंगे।

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शिक्षा:

 

प्रबोधनकार ठाकरे समाज सुधारक, वक्ता और मराठी पत्रकार थे। इनकी शुरुआती शिक्षा पनवेल में हुई थी। इन्होंने देवास में मैट्रिक तक शिक्षा पूरी की थी। पिता की बेरोज़गारी के कारण प्रबोधनकार ठाकरे की शिक्षा बीच में ही रुक गई थी।

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पनवेल में आगे की शिक्षा की सुविधा न होने के कारण उन्हें कभी देवास तो कभी बारामती जाना पड़ता था। प्रबोधनकार ठाकरे शिव सेना के संस्थापक बाल ठाकरे के पिता थे। वह महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के दादा भी थे।

PRABODHANKAR THACKERAY, IMAGE CREDIT BY GOOGLE

 

अलग अलग क्षेत्र में काम किया:

प्रबोधनकार ठाकरे ने अलग अलग क्षेत्रों जैसे साइन बोर्ड पेंटिंग करना, रबर स्टैंप बनाना, किताबें बांधना, दीवारों पर पेंटिंग करना, तस्वीरें लेना और मशीनों की मरम्मत में काम किया था। इसके अलावा वह गांव गांव जाकर ग्रामोफोन भी बेचते थे। स्कूल शिक्षक के तौर पर भी उन्होंने काम किया था।

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प्रबोधनकार ठाकरे ने महिलाओं की शिक्षा, सामाजिक समानता के समर्थक थे। और जातिगत भेदभाव के कड़े आलोचक थे। उन्होंने अपने काम के माध्यम से समाज में सकारात्मक बदलाव को प्रेरित किया था। और सामाजिक न्याय और प्रगति को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया था।

BAL THACKERAY, (SON OF PRABODHANKAR ) IMAGE CREDIT BY GOOGLE

 

क्रांतिकारी साहित्य का अध्ययन :

“महात्मा फुले” प्रबोधनकार ठाकरे के आदर्श थे। वह उनके कार्य से काफी प्रभावित थे। प्रबोधनकार ठाकरे ने महात्मा फुले के क्रांतिकारी साहित्य का अध्ययन किया था। महात्मा फुले के साहित्य को पढ़ने के बाद प्रबोधनकार ठाकरे की सामाजिक सुधार के प्रति अवधारणा स्पष्ट हो गई थीं। समाज सुधार ही अब प्रबोधनकार ठाकरे का लक्ष्य था इसे पूरा करने के लिए उन्होंने किसी तरह की कोई लपरवाही या समझौता नहीं किया।

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तीन हथियारों का उपयोग:

 

प्रबोधनकार ठाकरे ने बाल विवाह, छुआछूत, ब्राह्मण पुजारियों के दुर्व्यवहार, तानाशाही और दहेज जैसे मुद्दों के खिलाफ आवाज़ आई थी। उन्होंने अन्यायपूर्ण रीति-रिवाजों, जाति-प्रथा और अस्पृश्यता को मिटाने के लिए बयानबाजी, लेखन और प्रत्यक्ष कार्रवाई के तीन हथियारों का उपयोग करके रूढ़िवादियों से लड़ाई लड़ी थीं।

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UDDHAV THACKERAY, GRANDSON OF PRABODHANKAR, IMAGE CREDIT BY GOOGLE

 

तंबू में लगा दी आग:

 

ऐसा कहा जाता है कि प्रबोधनकार ठाकरे ने विवाह समारोह में 12 साल की बच्ची का विवाह 65 साल के अधेड़ से होते देख विवाह के तंबू में आग लगा दी थी। प्रबोधनकार ठाकरे “ मुद्दमहूं म्हातरा इतुका ना फोडे वयमन” छंद गाया करते थे जो बाल विवाह के खिलाफ विरोध का प्रतीक था।

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ब्राह्मणवादी वर्चस्व का कड़ा विरोध:

 

मराठी पत्रकार के साथ साथ प्रबोधनकार ठाकरे संयुक्त महाराष्ट्र समिति के एक वरिष्ठ नेता थे। जिसने महाराष्ट्र को भाषाई राज्य का दर्जा दिलाने के लिए सफलतापूर्वक प्रयास किया था। प्रबोधनकार ठाकरे ने ब्राह्मणवादी वर्चस्व का कड़ा विरोध किया था। उन्होंने समाज के कमजोर वर्गों को ऊपर उठाने का पुरजोर प्रयास किया था। वह जाति-मुक्त समाज के पक्ष में थे और इसका समर्थन करते थे।\

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जातिगत भेदभाव का सामना:

प्रबोधनकार ठाकरे ने जातिगत भेदभाव का सामना किया था। ऐसा कहा जाता है बचपन में एक बार वह सार्वजनिक स्थल पर भोजन के लिए गए थे। लेकिन उन्हें अलग कतार में खड़ा होना पड़ता था। और दूर से ही उनके गिलास में पानी डाल दिया जाता था। ब्राह्मणों के इस तरह के व्यवहार से वह काफी क्रोधित हो गए थे। बचपन से ही वह जातिगत भेदभाव के कड़े आलोचक थे।

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BABA SAHEB AMBEDKAR, IMAGE CREDIT BY GOOGLE

रचनाएं:

o प्रबोधन
o जगतिक कर्मंचे विवेक विचार
o प्रबोधनकार
o इतिहासाची ओलख

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o सांस्कृतिक राष्ट्रवाद
o भारतीय कला वा संस्कृति
o प्रबोधन केशव ठाकरे व्यक्ति अनी विचार
o सामाजिक व्यवस्थापन वा सामाजिक न्याय

आत्मकथा:

माझी जीवनगाथा (मेरी आत्मकथा)

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जाति-मुक्त समाज के समर्थक:

 

प्रबोधनकर ठाकरे ने जाति-मुक्त समाज के समर्थन में पूरे बॉम्बे क्षेत्र में व्याख्यान भी दिया था। जिसकी वजह से वह कोल्हापुर के छत्रपति शाहू और डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर के कार्यो के करीब आ गए थे। सामाजिक, राजनीतिक, शिक्षा के क्षेत्र में प्रबोधनकर ठाकरे के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता।

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अपने कार्यों से ठाकरे ने समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने का अथक प्रयास किया। 1973 में आज के दिन 20 नवंबर को 88 वर्ष की आयु में प्रबोधनकार ठाकरे का निधन हो गया था। प्रबोधनकार ठाकरे को उनके प्रगतिशील कार्यो के लिए हमेशा याद किया जाता रहेगा।

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