झारखंड के गिरिडीह में एक दलित (पासी समाज) युवक की मौत हो गई। मौत पुलिस स्टेशन में हुई इसलिए मामला थोड़ा ज्यादा संवेदन शील है। एक तरफ़ दलित परिवार का आरोप है की उनके बेटे नागो की मौत पुलिस की पिटाई से हुई है तो वहीं दूसरी तरफ़ पुलिस का मामले पर कहना है की दलित युवक की मौत हार्ट अटैक से हुई है। हालांकि परिवार का आरोप ये भी है की पुलिस अपने बचाव के लिए हार्ट अटैक वाली कहानी बना रही है। वैसे बताते चले कि घटना 21 अगस्त की है लेकिन इस घटना ने एक बार फिर पुलिस स्टेशन में होने वाली मौतों पर बहस छेड़ दी है।
यह भी पढ़े उत्तरप्रदेश : दलित महिला से छेड़छाड़, खेत में नग्न अवस्था में छोड़ कर फरार हुए जातिवादी
पुलिस हिरासत में मौत, देशभर के आंकड़े :
आइए बात करते है अब पुलिस हिरासत में अबतक देशभर में कितने लोगो कि मौत हो चुकी है। केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय के द्वारा राज्यसभा में दिए गए आकड़ो के अनुसार पिछले पांच वर्षों में देशभर में कुल 669 मामले पुलिस हिरासत हुई मौतों पर दर्ज किए गए है। मौतों का यह आंकड़ा 1 अप्रैल 2017 से 31 मार्च 2022 तक का है।
किस साल कितनी मौते ?
जबकि वहीं मंत्री नित्यानंद राय की ओर से दी गई जानकारी के मुताबिक पीछले साल 2021-2022 के दौरान पुलिस हिरासत में मौत के कुल 175 मामले दर्ज किए गए है जबकि वहीं 2020-2021 में 100 मामले, 2019-2021 में 112 मामले, 2018-2019 में 136 मामले, एवं 2017-2018 में 146 मौत के मामले दर्ज किए गए है। हालांकि इन आकड़ो में लगातार कमी देखी थी। लेकिन फिर पीछले वर्ष आएं आकड़े डराने वाले है।
यह भी पढ़े रामस्वरुप वर्मा को राजनीति का कबीर क्यों कहतें ? जाने उनके बारें में, पुण्यतिथि विशेष
Sc, St और OBC के लोगों से भरी पड़ी हैं जेल :
साथ ही अगर बात करें तो गृह राज्य मंत्री रेड्डी के मुताबिक, “देश की जेलों में 4,78,600 कैदी हैं जिनमें 3,15,409 कैदी एससी, एसटी और ओबीसी वर्ग से आते है। ये आंकड़े राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो यानी एनसीआरबी के आंकड़ों पर आधारित हैं। बताया था कि करीब 34 फीसद कैदी ओबीसी वर्ग के हैं जबकि करीब 21 फीसद अनुसूचित जाति से और 11 फीसद अनुसूचित जनजाति से हैं। ये आंकड़े इन वर्गों की जनसंख्या के मुकाबले काफी ज्यादा है।
पैसे की कमी के कारण कई आदिवासी जेल में :
हाल ही में राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू ने 26 नवंबर को उच्चतम न्यायालय में अपने पहले संविधान दिवस संबोधन में झारखंड के अलावा अपने गृह राज्य ओडिशा के गरीब आदिवासियों की आर्थिक स्थिति पर प्रकाश डालते हुए राष्ट्रपति मुर्मू ने कहा था कि जमानत राशि भरने के लिए पैसे नही होने के कारण कई आदिवासी जमानत मिलने के बावजूद जेल में हैं।
यह भी पढ़े आरक्षण के नाकाम आंकड़े : भारतीय विश्वविद्यालयों में आरक्षण को पूरी तरह लागू करने में सरकार की असफलता
जेल कम करनी चाहिए :
राष्ट्रपति मुर्मू ने जेलों की संख्या बढ़ाने और अत्यधिक भरने की चर्चाओं का भी जिक्र किया उन्होंने उल्लेख करते हुए कहा कि हम विकास की ओर आगे जा रहे हैं ऐसे में और अधिक जेल बनाने की क्या जरूरत है? जेल कम करनी चाहिए।
गंभीर अपराधो के आरोपी छूट जाते है
मुर्मू ने न्यायपालिका से गरीब आदिवासियों के लिए कुछ करने का आग्रह किया था। उन्होंने कहा था कि गंभीर अपराधों के आरोपी मुक्त हो जाते हैं, लेकिन इन गरीब कैदियों, जो हो सकता है किसी को थप्पड़ मारने के लिए जेल गए हों, को रिहा होने से पहले वर्षों जेल में बिताने पड़ते हैं। साथ ही उन्होंने कहा था कि जो लोग जेल में बंद हैं, उन्हें न तो मौलिक अधिकारों और कर्तव्यों के बारे में पता है और न ही संविधान की प्रस्तावना के बारे में तो ऐसे लोगों के लिए कुछ करने की जरूरत है।
हालांकि बात फिर झारखंड वाली घटना पर करें तो एसपी दीपक शर्मा ने थाना प्रभारी शशि सिंह व एएसआइ मिथुन रजक को तत्काल लाइन हाजिर करने की कार्रवाई करते हुए मेडिकल बोर्ड का गठन कर पोस्टमार्टम कराने और न्यायिक जांच का आदेश जारी कर दिए हैं।
*Help Dalit Times in its journalism focused on issues of marginalised *
Dalit Times through its journalism aims to be the voice of the oppressed.Its independent journalism focuses on representing the marginalized sections of the country at front and center. Help Dalit Times continue to work towards achieving its mission.
Your Donation will help in taking a step towards Dalits’ representation in the mainstream media.
ये देश के पैसा का दुरुपयोग कर रहे है मोदी भारत मे गरीबी चरन सिमा पार कर दिया है लोग चावल है तो दाल नही दाल है तेल नही कच्चे पके भोजन जीने के लिए भारत की देश की जनता खा रही और मोदी विदेश में भारत का नाम गिना रहे है ये अडानी