राजनीति का ‘कबीर’अर्जक संघ के संस्थापक एवं मानवतावादी वैचारिकी के मजबूत स्तंभ महामना रामस्वरूप वर्मा जी के परिणिर्वाण दिवस पर उन्हें शत शत नमन आईए जानते है इस लेख के माध्यम से उनके जीवन के बारें में….
जीवन परिचय
रामस्वरुप वर्मा का जन्म उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात के गौरीकरन नामक गांव के एक किसान परिवार में 22 अगस्त 1923 को हुआ था। राम स्वरूप वर्मा एक ऐसे समाज की संरचना करना चाहते थे। जिसमें हर कोई पूरी मानवीय गरिमा के साथ जीवन जी सके। रामस्वरुप वर्मा का 19 अगस्त 1998 को लखनऊ में उनका निधन हो गया। उन्होंने अपने जीवन काल के दिनों में काफी संघर्ष किया।
राजनीति का कबीर
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बतादें कि लगभग पचास साल तक राजनीति में सक्रिय रहे रामस्वरूप वर्मा को राजनीति का कबीर कहा जाता है। 1957 में रामस्वरूप वर्मा सोशलिस्ट पार्टी से भोगनीपुर विधानसभा से उत्तर प्रदेश विधानसभा के सदस्य चुने गये, उस समय उनकी उम्र 34 वर्ष थी। 1967 में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से, 1969 में निर्दलीय, 1980, 1989 में शोषित समाज दल से विधानसभा के सदस्य निर्वाचित हुए। साथ ही 1999 में छठी बार में वह शोषित समाज दल से विधानसभा के सदस्य चुने गये थे।
अर्जक संघ की स्थापना
रामस्वरुप वर्मा ने अर्जक संघ की स्थापना 1 जून, 1968 को की थी अर्जक संघ के अनुयायी सनातन विचारधारा के उलट जीवन में सिर्फ दो संस्कार ही मानते हैं- विवाह और मृत्यु संस्कार विवाह के लिए रस्में परंपरागत नहीं निभाई जाती है बताया जाता है कि लड़का-लड़की संघ की पहले से तय प्रतिज्ञा को दोहराते है जिसके बाद वह एक-दूसरे वरमाला पहनाकर शादी के बंधन में बंध जाते हैं। जबकि वहीं दूसरी और भी मृत्यु के बाद अंतिम संस्कार मुखाग्नि या दफना-कर पूरा किया जाता है, किंतु अन्य धार्मिक कर्मकांड नहीं किया जाता है जबकि 5 या 7 दिन बाद सिर्फ एक शोकसभा की जाती है।
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ऊंच-नीच के भेदभाव को दूर करना
वही बाताया है कि अर्जक संघ मानववादी संस्कृति का विकास करने का काम करता हैं। जबकि इसका मकसद मानव में समता का विकास करना, ऊंच-नीच के भेदभाव को दूर करना होता है साथ ही सबकी उन्नति के लिए भी यह काम करता है। बतादें संघ 14 मानवतावादी त्योहार मनाता है। जिसमें गणतंत्र दिवस, स्वतंत्रता दिवस तथा आंबेडकर जयंती एंव बुद्ध जयंती, के अलावा पेरियार, रामास्वामी और बिरसा मुंडा की पुण्यतिथियां भी होती है।
पुस्तकों की रचना
दरसअल भाषाविद राजेंद्र प्रसाद कहते थे कि ‘रामस्वरूप वर्मा सिर्फ एक राजनेता ही नही थे। बल्कि एक उच्चकोटि के दार्शनिक, चिंतक और रचनाकार भी थे। क्योंकि उन्होंने कई पुस्तकों की रचना की है जो कि महत्वपुर्ण बताई जाती है। जिसमें है अछूतों की समस्या और समाधान, क्रांति क्यों और कैसे, मानववाद बनाम ब्राह्मणवाद, मानववाद प्रश्नोत्तरी, ब्राह्मणवाद महिमा क्यों और कैसे, आंबेडकर साहित्य की जब्ती और बहाली, आत्मा पुनर्जन्म मिथ्या, मानव समता कैसे, मनुस्मृति राष्ट्र का कलंक, निरादर कैसे मिटे, शोषित समाज दल का सिद्धांत, अर्जक संघ का सिद्धांत, वैवाहिक कुरीतियां और आदर्श विवाह पद्धति, आदि तमाम पुस्कतकें उनकें रचनाकार रहें है।
ब्राह्मणवाद के थे खिलाफ
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साथ ही वे कहते हैं, ‘वर्मा की अधिकांश रचनाएं ब्राह्मणवाद के खिलाफ हैं। पुनर्जन्म, भाग्यवाद, जात-पात, ऊंच-नीच का भेदभाव और चमत्कार सभी ब्राह्मणवाद के पंचांग हैं जो जाने-अनजाने ईसाई, इस्लामी, बौद्ध आदि मानववादी संस्कृतियों में प्रकारांतर से स्थान पा गए हैं। वे मानते थे कि मानववाद वह विचारधारा है जो मानव मात्र के लिए समता, सुख और समृद्धि का मार्ग प्रशस्त करती है। वे मानववाद के प्रबल समर्थक थे।
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