आरक्षण के नाकाम आंकड़े : भारतीय विश्वविद्यालयों में आरक्षण को पूरी तरह लागू करने में सरकार की असफलता

Share News:

आधुनिक भारत में विश्वविद्यालय शिक्षा सिस्टम के महत्वपूर्ण हिस्से हैं। ये विश्वविद्यालय देश भर में विभिन्न क्षेत्रों में शिक्षा संबंधित अध्ययन कार्यक्रम प्रदान करते हैं। भारत सरकार के आंकड़ो की माने तो, भारत में कुल 45 केन्द्रीय विश्वविद्यालय हैं, जिनमें से केवल एक विश्वविद्यालय ऐसा है जिसमें अनुसूचित जाति (SCs) के कुलपति है और एक विश्वविद्यालय में अनुसूचित जनजाति (STs) से कुलपति हैं। जबकि पांच कुलपति ओबीसी वर्ग (OBCs) से हैं।

यह भी पढ़े : माँ-बच्चे को चारपाई पर घर लाने वाले देश में कौन सा आज़ादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं हम ?

यह आंकड़े बताते हैं कि भारतीय शिक्षा संस्थानों में आरक्षण अभी भी जनरल वर्गों के पक्ष में अधिक है, जबकि आरक्षित वर्ग अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और ओबीसी वर्ग के लिए आरक्षित सीटों को भरने में सरकार नाकाम रही हैं। हाल ही में आंध्रप्रदेश राज्य से लोकसभा सदस्य डॉ संजीव कुमार सिंगारी के सवाल की आरक्षित वर्ग से जुड़े कितने व्यक्ति केन्द्रीय विश्वविद्यालय में अपनी सेवा दे रहे हैं के जवाब में राज्य शिक्षा मंत्री डॉ सुभाष सरकार ने लोकसभा में जो आंकड़े बताएं वह बेहद चिंताजनक है। इन आंकड़ों से पता चलता है कि केन्द्रीय विश्वविद्यालय में आरक्षित वर्गों की भागीदारी जितनी होनी चाहिए, उससे बहुत कम है।

यह भी पढ़े : पुण्यतिथि विशेष : फांसी से पहले क्या थे सरदार उधम सिंह के आखि़री शब्द ? पढ़िए..

3,550 पद मिलने थे लेकिन मिले सिर्फ़ 1,901 :

45 केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में कुल शिक्षण पद की संख्या 13,098 है। इसमें से 8,734 शिक्षक स्वर्ण वर्ग से हैं। आरक्षित वर्गों में अनुसूचित जाति से 1,421 शिक्षक, अनुसूचित जनजाति से 625 शिक्षक और ओबीसी वर्ग से 1,901 शिक्षक हैं। वहीं आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग के शिक्षकों की संख्या 192 है। इन पदों पर विराजमान वर्ग की संख्या आरक्षण के हिसाब से की जाएं तो बहुत कम है। ओबीसी की भागीदारी आरक्षण के हिसाब से 27% होनी चाहिए लेकिन उनकी हिस्सेदारी महज़ 14 प्रतिशत है।

 

 

यह भी पढ़े : संत कबीर : कबीर के वो दोहे जो अंधविश्वास और पाखंडवाद की बखिया उधेड़ते है.. पढ़िए

अनुसूचित जाति की संख्या 1,421 है लेकिन आरक्षण के हिसाब से 1,965 होनी चाहिए, क्योंकि अनुसूचित जाति के लिए आरक्षण 15% आरक्षण का प्रावधान है। वहीं अनूसूचित जनजाति को 7.5% आरक्षण दिया गया है जिसके मुताबिक उनकी संख्या 985 के करीब होनी चाहिए थी लेकिन उनकी संख्या इन केन्द्रीय विश्वविद्यालय में 625 ही है।

यह भी पढ़े : बिहार: जाति जनगणना पर रोक लगाने वाली याचिका को खारिज कर पटना हाईकोर्ट ने क्या कहा ?

शिक्षण पद कर्मचारियों के अलावा, इन विश्वविद्यालयों में दूसरे गैर शिक्षण पद कर्मचारी की संख्या 20,199 है। इसमें से 14,145 कर्मचारी जनरल वर्ग से हैं। आरक्षित वर्गों के कर्मचारियों की तस्वीर कुछ अलग है, अनुसूचित जाति से 1,958 कर्मचारी, अनुसूचित जनजाति से 1,141 कर्मचारी, ओबीसी से 2,526 कर्मचारी और आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों से 268 कर्मचारी हैं। इन आंकड़ों से साफ दिखता है कि आरक्षित वर्गों के लिए सुरक्षित आरक्षण को पूरी तरह लागू नहीं किया गया है।

यह भी पढ़े : दलित हीरो : हैदराबाद के रघुनंदन मचाना को “वन मैन आर्मी” की उपाधि क्यों मिली..? पढ़िए

1,341 प्रोसेसर में महज़ 60 ओबीसी वर्ग से :

राज्य शिक्षा मंत्री डॉ सुभाष सरकार ने लोकसभा में एक आंकड़ा पेश किया जिसमें 45 केन्द्रीय विश्वविद्यालय में 1,341 प्रोफसर में 1,146 पदों पर अनारक्षित वर्ग का कब्जा है तो वहीं ओबीसी वर्ग से 60, अनुसूचित जाति के 96, अनुसूचित जनजाति से 22 और आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग से 3 प्रोफेसर हैं। यानी की महज़ 4 प्रतिशत व्यक्ति ही ओबीसी वर्ग से प्रोफेसर बन पाएं हैं तो वहीं अनुसूचित जनजाति का आंकड़ा केवल 1 प्रतिशत से अधिक है। हालांकि, इसमें अनुसूचित जाति की संख्या आरक्षण के हिसाब से ठीक ठाक है।

इन केन्द्रीय विश्वविद्यालय में एसोशिएट प्रोफेसर पद की संख्या 2,817 है। जिनमें में जनरल वर्ग से 2,304 व्यक्ति एसोशिएट प्रोफेसर हैं। अनुसूचित जनजाति से 231, अनुसूचित जनजाति से 69 और ओबीसी से 187 व्यक्ति ही एसोशिएट प्रोफेसर पद पर नियुक्त हैं। इसमें ओबीसी वर्ग की भागीदारी 6 प्रतिशत से अधिक है, अनूसूचित जनजाति 3 प्रतिशत के करीब है। तो वहीं एक बार फिर अनुसूचित जाति की संख्या एसोशिएट प्रोफेसर पद पर 8 प्रतिशत से अधिक है। जो बाकी आरक्षित वर्गों की तुलना में अच्छा है।

यह भी पढ़े : जयंती विशेष : दलितो को अंध विश्वास के खिलाफ़ जागरूक करने वाले नाना पाटिल को कितना जानते हैं आप ?

8,940 एसिस्टेंट प्रोफ़ेसर पदों में 5,284 पदों पर अनारक्षित वर्ग का कब्जा है। इसमें अनूसूचित जाति से 1,094 व्यक्ति असिस्टेंट प्रोफेसर पद पर नियुक्त हैं। अनुसूचित जनजाति से 534, ओबीसी वर्ग से 1,654 और आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग से 182 असिस्टेंट प्रोफेसर पद पर नियुक्त हैं।

 

आरक्षण खत्म करने की साज़िश ?

उत्तर प्रदेश में 69,000 पदों पर शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया होनी थी लेकिन वंचित वर्गों के शिक्षकों को जितना आरक्षण मिलना चाहिए था उतना नहीं मिला रहा है। लोगों ने कोर्ट का रूख किया। कोर्ट में अभ्यर्थियों द्वारा जो डेटा जमा किया गया, उसमें बताया गया कि 69,000 सहायक शिक्षक भर्ती में 28,000 आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों की ओवरलैपिंग कराई जानी थी लेकिन सरकार ने एक विशेष स्वर्ण वर्ग को फायदा पहुंचाने के लिए इस भर्ती प्रक्रिया में 13,007 आरक्षित वर्ग के अंतर्गत ओबीसी अभ्यर्थियों को चयनित किया।

यह भी पढ़े : MP news : सरकार की योजनाओं का नहीं मिल रहा लाभ, सड़को पर उतरा आदिवासी समाज, क्या है मांग? जानिए

अभ्यर्थियों ने आरोप लगाया कि इस भर्ती में जनरल कट ऑफ 67.11 थी, ओबीसी की कट ऑफ 66.73 थी। ऐसी स्थिति में सरकार ने किस तरह से जनरल वर्ग की कट ऑफ जो केवल 0.38 नंबर के अंतर की थी उसके तहत 18,598 पद किस आधार पर भर लिए गए। यह समझ से परे है।

वकील का आरोप ओबीसी को 27% के बजाय मिला केवल 3.80% आरक्षण :

मीडिया में छपी खबर की माने तो, ऑर्डर रिजर्व होने से पहले बहस के दौरान आरक्षण पीड़ित अभ्यर्थियों की तरफ से सीनियर वकील सुदीप सेठ एवं बुलबुल गोदियाल ने कोर्ट में पक्ष रखा। उन्होंने जस्टिस ओपी शुक्ला को बताया कि इस भर्ती में बेसिक शिक्षा नियमावली 1981 और आरक्षण नियमावली 1994 का उल्लंघन किया गया है।

यह भी पढ़े : राजस्थान : प्रताप राजपूत ने खुद को भगवान शिव का ‘अवतार’ बताकर आदिवासी महिला की ले ली जान, 4 गिरफ्तार

जिसकी वजह से इस भर्ती में ओबीसी को 27% आरक्षण के बजाय 3.80% और एससी/एसटी वर्ग को 21% आरक्षण के बजाय 16.2% ही आरक्षण दिया गया। ऐसा करने से विभाग ने 20 हजार से अधिक सीटों पर आरक्षण का घोटाला किया।

 

लेखक : मोहम्मद ज़मीर हसन | दलित टाइम्स

*दलित टाइम्स उन करोड़ो लोगो की आवाज़ है जिन्हें हाशिए पर रखा गया है। *

महिला, दलित और आदिवासियों के मुद्दों पर केंद्रित पत्रकारिता करने और मुख्यधारा की मीडिया में इनका प्रतिनिधित्व करने के लिए हमें आर्थिक सहयोग करें।

  Donate

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *