सुप्रीम कोर्ट ने जिस इलेक्टोरल बॉन्ड को अवैध बताते हुए लगाया प्रतिबंध, जानिये उसके बारे में विस्तार से

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सुप्रीम कोर्ट ने आज इलेक्टोरल बॉन्ड पर फैसला सुनाया है। दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉड को अवैध बताते हुए इसकी खरीद पर रोक लगा दी है। कोर्ट ने यह भी कहा है कि भारतीय स्टेट बैंक (SBI) को 2019 से लेकर अब तक की इलेक्टोरल बॉन्ड से जुड़ी सारी जानकारी चुनाव आयोग को देनी है। अब इलेक्टोरल बॉन्ड क्या होता है? कैसे जारी किया जाता है? कौन खरीद सकता है और इसे लेकर क्या विवाद है इस बारे में जानेंगे।

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इलेक्टोरल बॉन्ड क्या है ?

भारत में जब भी चुनाव होते हैं तो उस समय बहुत पैसा खर्च होता है। पार्टियां अपनी बात जनता तक पहुंचाती हैं और इसमें काफी पैसा ज़रुरत होती है। इसमें व्यक्ति, कॉरपोरेट और संस्थाएं बॉन्ड खरीदकर राजनीतिक दलों को चंदे के रूप में देती थीं। और इसी चंदे को इलेक्टोरल बॉन्ड कहा जाता है।

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आपकों बता दें कि मोदी सरकार ने 2017 में इलेक्टोरल बॉन्ड लाने की घोषणा की थीं और जनवरी 2018 में इलेक्टोरल बॉन्ड को अधिसूचित कर दिया गया था। जब इलेक्टोरल बॉन्ड को अधिसूचित किया गया तब सरकार ने इसे पॉलिटिकल फंडिंग की दिशा में सुधार बताया और दावा किया कि इससे भ्रष्टाचार से लड़ाई में मदद मिलेगी।

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इलेक्टोरल बॉन्ड पर रोक :

सुप्रीम कोर्ट ने अब इलेक्टोरल बॉन्ड पर रोक लगा दी है और इस अवैध करार दिया है। अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि चुनावी बॉन्ड सूचना के अधिकार का उल्लंघन है। कोर्ट ने यह भी कहा है कि SBI को 2019 से लेकर अब तक की इलेक्टोरल बॉन्ड से जुड़ी सारी जानकारी 3 हफ्ते में चुनाव आयोग को देनी है। 3 हफ्ते बाद चुनाव आयोग को ये सारी जानकारी अपनी ऑफिशीयल वेबसाइट पर पब्लिश करनी होगी।

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कौन खरीद सकता है ?

  1. इलेक्टोरल बॉन्ड जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर महीने में जारी किए जाते हैं।
  2. चुनावी बॉन्ड को भारत का कोई भी नागरिक, कंपनी या संस्था खरीद सकती हैं।
  3. ये बॉन्ड 1000, 10 हजार, 1 लाख और 1 करोड़ रुपये तक के हो सकते हैं।
  4. देश का कोई भी नागरिक SBI की 29 शाखाओं से इलेक्टोरल बॉन्ड्स खरीद सकते हैं।
  5. दान मिलने के 15 दिन के अंदर राजनीतिक दलों को इन्हें भुनाना होता हैं।
  6. बॉन्ड के जरिए सिर्फ वही सियासी दल चंदा हासिल कर सकती हैं जो लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29A के तहत रजिस्टर्ड हैं और जिन्होंने पिछले संसदीय या विधानसभाओं के चुनाव में कम से कम एक फ़ीसद वोट हासिल किया हो।

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इलेक्टोरल बॉड की 2017 में घोषणा हुई थी और तभी से इस पर विवाद की शुरुआत हो गई थीं। इस योजना को चुनौती 2017 में दी गई थीं। लेकिन इस पर सुनवाई 2019 में शुरू हुई। सुप्रीम कोर्ट ने सभी पॉलिटिकल पार्टियों को ये कहा था कि वे 30 मई, 2019 तक चुनावी बॉन्ड से जुड़ी सभी जानकारी चुनाव आयोग को दें। आज तक की रिपोर्ट के अनुसार भारतीय स्टेट बैंक की 29 शाखाओं को इलेक्टोरल बॉन्ड जारी करने और उसे भुनाने के लिए अधिकृत किया गया था। ये शाखाएं नई दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, गांधीनगर, चंडीगढ़, पटना, रांची, गुवाहाटी, भोपाल, जयपुर और बेंगलुरु की थीं।

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दो याचिकाएं दायर की गईं :

साल 2019 के दिसंबर महीने में ही इलेक्टोरल बॉड को लेकर दो याचिकाएं दायर की गई। पहली याचिका एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स और ग़ैर-लाभकारी संगठन कॉमन कॉज़ ने मिलकर दायर की थी।दूसरी याचिका, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) ने दायर की थी।इन याचिकाओं में कहा गया था कि भारत और विदेशी कंपनियों के जरिए जो चंदा मिलता है वो गुमनाम फंडिंग है। इसके ज़रिये बड़े पैमाने पर चुनावी भ्रष्टाचार को वैध बनाया जा रहा है। यह योजना नागरिकों के जानने के अधिकार का उल्लंघन करती है।

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किसको कितना चंदा :

टीवी9 भारतवर्ष की रिपोर्ट के मुताबिक, मार्च 2018 से जुलाई 2023 के बीच कई राजनीतिक दलों को 13,000 करोड़ रुपये ट्रांसफर किए गए हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि 2018 और 2022 के बीच 9,208 करोड़ रुपये के चुनावी बांड बेचे गए और भाजपा ने कुल धन का 58 प्रतिशत हासिल किया। जनवरी 2023 में चुनाव आयोग के जारी आंकड़ों से पता चला कि 2021-22 में चुनावी बांड के जरिए चार राष्ट्रीय राजनीतिक दलों – भाजपा, तृणमूल कांग्रेस, कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने अपनी कुल आय का 55.09 प्रतिशत यानी 1811.94 करोड़ रुपये इकट्ठा किए। भाजपा को 2021-22 में चुनावी बांड के माध्यम से दान का बड़ा हिस्सा मिला, उसके बाद तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) और कांग्रेस को मिला।

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