राजेंद्र बाबू राष्ट्रपति बनने के बाद पहली दफा 1950 ई. में मोतिहारी पधारे थे। सभा शुरू हुई तो रेल की पटरियों की तरफ से एक नाटे कद का आदमी, सावला रंग और गोल चेहरा वाला, शरीर से थोड़ा मोटा, घुटने तक मोटिया का धोती और गंजी पहने हुए धीरे-धीरे सरकते हुए मंच के पास चला आया। राजेंद्र बाबू ने देखते हैं उस आदमी को अपने पास बुलाया भरी सभा में उसे गले लगा दिया और हालचाल पूछा तो लोग हैरत में थे कि आखिर इस आदमी का मैं क्या खूबी है जो राजेंद्र बाबू इसे इतना सम्मान दे रहे हैं। वो आदमी कोई और नहीं बत्तख मियां अंसारी जी थे। इनका जन्म 25 जून 1869 में हुआ था।
गांधी जी 1917 ई में दक्षिण अफ्रीका से सीधा चम्पारण के नीलहों किसानों की दुर्दशा का जायजा लेने आए थे। तब तत्कालीन अंग्रेजी फैक्ट्रियों के मैनेजर इरविन ने उन्हें रात के खाना पर आमंत्रित किया। इरविन उन्हें खाना में मीठी जहर देकर गांधी जी को मारना चाहता था। अंग्रेज मैनेजर इरविन ने बत्तख मियां अंसारी को दूध में जहर मिलाकर गांधी जी को पीने के लिए देने को कहा कि तुम ऐसा नहीं करोगे तो नौकरी से निकाल दिए जाओगे। जायदाद जप्त कर ली जाएगी और तुम्हारी जिंदगी हर तरह से नष्ट कर दी जाएगी। बत्तख मियां अंसारी जब इनकार किया तो उनके बेटे को बंधक बना कर उन्हें इसके लिए मजबूर किया गया। इन धमकियों के बावजूद बतख मियां के कारण गांधीजी की जान बच गई। बतख मियां अंसारी ने डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद के कानों में कह दिया कि उस दूध में जहर मिला हुआ है, इस तरह उन्होंने गांधी जी के प्राणों की रक्षा करने का काम किया।
गांधीजी के जाने के बाद अंग्रेजों ने बताया कि सारी जायदाद जप्त कर ली। नौकरी से निकाल दिया और लगातार कष्ट देते रहें।अपनी तमाम जमीन जायदाद से हाथ धो बैठे, अंग्रेजों की यातना सही लेकिन कभी इसका प्रचार नहीं किया। राजेंद्र प्रसाद ने आदेश दिया था कि बतख मियां के परिवार को 35 एकड़ जमीन मुहैया कराई जाए, लेकिन इस पर कभी अमल नहीं हो पाया। जिनके पूर्वज अपनी जान पर खेलकर गांधी जी की जान बचाने का काम किया, वैसे राष्ट्रभक्त स्वतंत्रता सेनानी बतख मियां अंसारी के वंशज आज दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं। उनके दो पोते सरकार से कुछ अनुदान प्राप्त करने की आस में है, जो दैनिक दिहाड़ी मजदूरी कर के अपने परिवार का पालन-पोषण कर रहें हैं।
गांधी जी का जान बचाने का राज शायद बत्तख मिया अंसारी के मरने के साथ ही कब्र में दफ़न हो गया होता, अगर राजेंद्र बाबू ने उस दिन भरी सभा में नहीं बताया होता। बत्तख मिया का निधन 1957 ई. में हो गया। जब निधन की सूचना डॉ. राजेंद्र प्रसाद को मिली तो उन्होंने उनके बच्चो को 3 दिसंबर 1958 को दिल्ली बुलाया और उन्हें सम्मान पत्र दिया।
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