14 साल में 40 हजार से ज्यादा अंतिम संस्कार कर चुकी हैं लक्ष्मी जेना, बच्चों के साथ रहती हैं श्मशान घाट पर

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हमारे देश में आज महिलाएं हर क्षेत्र में आगे हैं। भले ही इंजीनियरिंग हो शिक्षा हो या विज्ञान का क्षेत्र हर क्षेत्र में महिलाएं अपनी आत्मनिर्भरता की मिसाल कायम कर रहीं हैं। आज भी पितृसत्तात्मक मानसिकता के कारण  कुछ कामों को लिंग आधारित देखा जाता है कि ये काम महिला के लिए बना है या ये काम केवल पुरुष कर सकता है। लेकिन आज हम आपकों अपने इस लेख में एक ऐसी महिला के बारे में बताएंगे जिन्होंने पितृसत्तात्मक मानसिकता की परवाह किए बिना श्मशान घाट में  देह संस्कार का काम करती हैं। ये एक ऐसा काम है जिसे केवल पुरुष प्रधान समझा जाता है लेकिन ओडिशा की लक्ष्मी जेना ने इस धारणा को तोड़ते हुए 14 साल से श्मशान घाट में काम किया है। उन्होंने अपने जीवन में अब तक लगभग 40,000 से ज्यादा देह संस्कार किए हैं। अपने इस कार्य से वह अपने गांव में हर किसी के लिए प्रशंसा की पात्र बनी हुई हैं।

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40,000 से ज्यादा शवों का अंतिम संस्कार :

BBC की रिपोर्ट के मुताबिक ओडिशा की मयूरभंज की रहने वाली लक्ष्मी जेना ने बताया कि वह बीते 14 साल से श्मशान घाट में काम कर रही हैं। लक्ष्मी बताती हैं कि उन्होंने अब तक 40,000 से ज्यादा शवों का अंतिम संस्कार किया है। BBC की रिपोर्ट के मुताबिक लक्ष्मी जेना ने बताया कि वह अपने पांच बच्चों के साथ श्मशान में रहती हैं और लाशे जलाने का काम करती हैं। लक्ष्मी जेना का घर मयूरभंज के बूढ़ामरा में है। श्मशान में लक्ष्मी से पहले उनके पति काम करते थे लेकिन उनके बीमार होने के बाद लक्ष्मी ने यह ज़िम्मेदारी संभाली।

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 बारीपदा उन पर समर्पित है:

BBC की रिपोर्ट के मुताबिक मयूरभंज नगरपालिका के अध्यक्ष “कृष्णानंद मोहंती” लक्ष्मी जेनी के पति की तबियत खराब है इसलिए लक्ष्मी जेनी ने खुद यह जिम्मेदारी संभाली है। उनका कहना है कि ये एक मानव सेवा समर्पित काम हैं इसलिए लक्ष्मी ये काम कर पा रहीं हैं। आगे उन्होंने बताया कि लक्ष्मी जेनी अब तक 14 साल में 40,000 से ज़्यादा देह संस्कार कर चुकी हैं। उनकी मेहनत और काम के लिए पूरा  बारीपदा उन पर समर्पित है। उनके त्याग और उनकी सेवा की जितनी की जाए वो कम है।

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कम उम्र में विवाह :

Odisha.tv  की रिपोर्ट के मुताबित लक्ष्मी जेना ने बताया कि “मैं इसे आत्म संतुष्टि के लिए करती  हूं। लोग मुझे जो कुछ भी देते हैं, मैं उसे सहानुभूति या खुशी से लेती हूं, अन्यथा मैं जो कुछ भी कर रही हूं उससे संतुष्ट हूं। भगवान ने मुझे जीवित रहने और अपने बच्चों की देखभाल करने के लिए पर्याप्त दिया है” जानकारी के मुताबिक लक्ष्मी का विवाह बहुत कम उम्र में हो गया था। इस छोेटी नवविवाहिता ने अपने पति को शवों का अंतिम संस्कार करते और मृतकों को सम्मानजनक विदाई देते देखा। शुरू में अपने पति की मदद के लिए हाथ बढ़ाना शुरू किया और लक्ष्मी ने जल्द ही मृतकों का अकेले  ही अंतिम संस्कार  करना शुरू कर दिया।

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मुझे कोई डर नहीं:

Odisha.tv  की रिपोर्ट के मुताबिक लक्ष्मी से पूछा गया क्या वह डरती हैं?, लक्ष्मी ने कहा, “नहीं, मुझे कोई डर नहीं है। लेकिन, मैं इस बात से सहमत हूं कि इससे बहुत बदबू आती है। मुझे भूतों या चुड़ैलों का कोई डर नहीं है। मैं इसे वर्षों से कर रही हूं और मुझे किसी भी असाधारण गतिविधियों का कोई अनुभव नहीं है। लक्ष्मी के इस नेक काम को स्थानीय लोगों से जबरदस्त प्रतिक्रिया मिली है, जिन्होंने महिला की दयालुता के लिए प्रशंसा की है। अपने 5 बच्चों की देखभाल करने, घर के सभी काम करने और अपने पति की मदद करने के अलावा, लक्ष्मी ने साबित कर दिया है कि मानवता अभी भी मौजूद है। रात हो या बरसात का दिन या जो भी हो, उन्होंने कभी भी किसी भी शरीर को नहीं लौटाया और पूरी गरिमा और सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया।

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स्थानीय लोगों ने क्या कहा ?

Odisha.tv  की रिपोर्ट के मुताबिक  स्थानीय विजय लेंका ने कहा कि”मृतकों के लिए उसकी सेवा हर कोई नहीं कर सकता। वह असाधारण है और प्रभु द्वारा चुनी जाती हैं। मैं उनके नेक कामों के लिए उन्हें सलाम करता हूं। मैं हमेशा उनकी सलामती के लिए प्रार्थना करता हूं। और अधिक आशीर्वाद उसके रास्ते में आ सकता है। इसी तरह, एक अन्य स्थानीय बिस्वा सत्पथी ने लक्ष्मी की प्रशंसा की और कहा, “हम इंसान के रूप में किसी की मृत्यु के बाद केवल आँसू बहाते हैं। हालांकि, लक्ष्मी सामान्य नहीं है। वह धन्य है और वर्षों से मृतकों की ‘सेवा’ कर रही है, चाहे कुछ भी हो। मैं उनकी परवरिश को सलाम करता हूं।

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