गिरफ़्तारी के दौरान जान लीजिए भारतीय राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के दिशानिर्देश, कभी भी आ सकते हैं काम

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भारतीय राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) द्वारा पुलिस गिरफ्तारी के संबंध में जारी दिशानिर्देश :

किसी भी गिरफ़्तारी के पहले, दौरान या गिरफ़्तारी के बाद कैसे मानव के मूल अधिकारों की रक्षा की जाए  इस संवंध में भारत के मानव अधिकार आयोग ने कुछ जरुरी दिशा निर्देश जारी किये हैं, जिन्हे जानना एक जागरूक नागरिक के लिए परम आवश्यक है ताकि किसी के मूल अधिकारों के हनन को रोका जा सके.

विशेष रूप से गिरफ्तारी और हिरासत के संबंध में पुलिस शक्तियों के दुरुपयोग के बारे में बड़ी संख्या में शिकायतों से चिंतित, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने दिशानिर्देशों का एक सेट तैयार किया है। दिशानिर्देशों संवैधानिक प्रावधानों, मौजूदा कानूनों, सुप्रीम कोर्ट के फैसलों और राष्ट्रीय पुलिस आयोग की सिफारिशों पर आधारित हैं.

आयोग ने कहा है कि इन दिशानिर्देशों का सभी क्षेत्रीय भाषाओं में अनुवाद किया जाना चाहिए और पूरे देश के सभी पुलिस थानों में उपलब्ध कराया जाना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा है कि पुलिस को एनएचआरसी(NHRC)  दिशानिर्देशों के उल्लंघन के संबंध में शिकायतों की त्वरित और प्रभावी जांच के लिए एक शिकायत निवारण तंत्र स्थापित करना चाहिए.

गिरफ्तारी से पहले पालन की जाने वाली प्रक्रिया : 

सुप्रीम कोर्ट ने जोगिंदर कुमार बनाम यू.पी. राज्य (1994) मामले में निर्धारित किया है, कि बिना वारंट के गिरफ्तारी तभी की जानी चाहिए जब शिकायत की वास्तविकता, अपराध में किसी व्यक्ति की संलिप्तता के बारे में उचित संतुष्टि हो जाए और गिरफ्तारी की जानी आवश्यक हो।

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने कहा है कि जमानती अपराधों में गिरफ्तारी से बचना चाहिए जब तक कि इस बात की प्रबल संभावना न हो कि व्यक्ति भाग जाएगा, पुलिस अधिकारी को की गई गिरफ्तारी को सही ठहराने में सक्षम होना चाहिए, बिना वारंट के गिरफ्तारी को निम्नलिखित परिस्थितियों में ही उचित ठहराया जा सकता है :

1) जहां मामले में हत्या, डकैती, लूटमार, बलात्कार आदि जैसे गंभीर अपराध शामिल हैं और कानून की प्रक्रिया से बचने या भागने से रोकने के लिए आपको संदिग्ध को गिरफ्तार करना आवश्यक है.

2) जहां संदिग्ध द्वारा हिंसक व्यवहार किया गया है, तथा और अधिक हिंसक अपराध करने की संभावना है; और/या

3) जहां संदिग्ध को सबूत नष्ट करने, गवाहों के साथ हस्तक्षेप, या अन्य संदिग्धों को चेतावनी देना जिन्हें अभी तक गिरफ्तार नहीं किया गया है, से रोकने की जरूरत है; और/या

4) संदिग्ध एक आदतन अपराधी है, जिसे गिरफ्तार किए जाने तक इसी तरह के या आगे के अपराध करने की संभावना है। (राष्ट्रीय पुलिस आयोग की तीसरी रिपोर्ट)

गिरफ्तारी के समय अपनाई जाने वाली प्रक्रिया:

मानवीय गरिमा को बरकरार रखा जाना चाहिए और संदिग्धों को गिरफ्तार करने और उनकी तलाश करते समय कम से कम बल का प्रयोग किया जाना चाहिए।

एक नियम के रूप में, गिरफ्तारी करते समय बल प्रयोग से बचना चाहिए.

यदि गिरफ्तार किया जा रहा व्यक्ति प्रतिरोध करता है, तो न्यूनतम बल का प्रयोग किया जाना चाहिए और इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि चोटों से बचा जा सके.

गिरफ्तार व्यक्ति की गरिमा की रक्षा की जानी चाहिए, गिरफ्तार व्यक्ति की गिरफ़्तारी के सार्वजनिक प्रदर्शन या परेड की अनुमति नहीं है.

गिरफ्तार व्यक्ति की उसकी गरिमा और निजता का सम्मान करते हुए उसकी तलाशी ली जानी चाहिए,  महिलाओं की तलाशी शालीनता का पूरा ध्यान रखते हुए महिला पुलिस अधिकारी ही करें.
महिलाओं को सूर्यास्त और सूर्योदय के बीच गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है। जहां तक ​​संभव हो, महिला पुलिस अधिकारियों को तब साथ ले जाना चाहिए जब गिरफ्तार किया जा रहा व्यक्ति एक महिला हो.

बच्चों या किशोरों को गिरफ्तार करते समय कभी भी बल का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए.

पुलिस अधिकारियों को यह सुनिश्चित करने के लिए सम्मानित नागरिकों की मदद लेनी चाहिए कि बच्चे और किशोर आतंकित न हों, और बल प्रयोग करने की आवश्यकता उत्पन्न न हो.

गिरफ्तार व्यक्ति को उस भाषा में जिसे वह समझता है, गिरफ्तारी के आधार के बारे में तुरंत सूचित किया जाना चाहिए.

यदि किसी व्यक्ति को जमानती अपराध के लिए गिरफ्तार किया जाता है, तो उसे जमानत पर रिहा होने के उसके अधिकार के बारे में सूचित किया जाना चाहिए.

गिरफ्तारी एवं निरोध की सूचना अविलम्ब पुलिस नियंत्रण कक्ष एवं जिला एवं राज्य मुख्यालयों को प्रेषित की जाए इस संबंध में चौबीसों घंटे निगरानी तंत्र स्थापित किया जाना चाहिए.

गिरफ्तारी के बाद अपनाई जाने वाली प्रक्रिया:

गिरफ्तार व्यक्ति को गिरफ्तारी के आधार के बारे में सूचित करने, उसके वकील द्वारा प्रतिनिधित्व करने का अधिकार, अदालत के समक्ष तुरंत पेश किया जाने के संवंध में संवैधानिक और कानूनी प्रावधानों का कड़ाई से पालन किया जाना चाहिए.

संविधान का अनुच्छेद 22(1) कहता है कि गिरफ्तार व्यक्ति को गिरफ्तारी के आधार के बारे में यथाशीघ्र सूचित किया जाना चाहिए, उसे परामर्श के अधिकार से वंचित नहीं किया जाना चाहिए और उसकी पसंद के कानूनी परामर्शदाता द्वारा बचाव किया जाना चाहिए, सीआरपीसी (CRPC) की धारा 50 (1) के तहत एक पुलिस अधिकारी को गिरफ्तार व्यक्ति को गिरफ्तारी के आधार और उस अपराध का पूरा ब्योरा देना होता है जिसके तहत उसे गिरफ्तार किया जा रहा है.

संविधान के अनुच्छेद 22 (2) के तहत गिरफ्तार व्यक्ति को निकटतम मजिस्ट्रेट के समक्ष चौबीस घंटे के अंदर पेश किया जाना आवश्यक है, सीआरपीसी(CRPC) की धारा 57 में कहा गया है कि गिरफ्तार व्यक्ति को मजिस्ट्रेट के आदेश के बिना 24 घंटे से अधिक समय तक हिरासत में नहीं रखा जा सकता है.

गिरफ्तार किए गए व्यक्ति की पुलिस हिरासत में हिरासत के दौरान संबंधित राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के स्वास्थ्य सेवाओं के निदेशक द्वारा नियुक्त डॉक्टर या अनुमोदित डॉक्टरों के पैनल द्वारा हर 48 घंटे में जांच की जानी चाहिए.

पूछताछ के संबंध में प्रक्रिया:

पूछताछ के तरीके व्यक्ति के जीवन, स्वतंत्रता और गरिमा से संबंधित व्यक्तिगत अधिकारों के अनुरूप होने चाहिए.

संदिग्धों के साथ अत्याचार और अपमानजनक व्यवहार निषिद्ध है.गिरफ्तार व्यक्ति से पूछताछ स्पष्ट रूप से पहचाने जाने योग्य स्थान पर की जानी चाहिए, जिसे सरकार द्वारा इस उद्देश्य के लिए अधिसूचित किया गया है.

पूछताछ का स्थान सुलभ होना चाहिए, गिरफ्तार व्यक्ति के रिश्तेदारों या मित्र को सूचित किया जाना चाहिए कि उससे कहां पूछताछ की जा रही है.

गिरफ्तार व्यक्ति को पूछताछ के दौरान किसी भी समय एक वकील से मिलने की अनुमति दी जानी चाहिए, हालांकि जरूरी नहीं कि पूरे पूछताछ के दौरान हो.

 

स्रोत एवं उद्देश्य : इस लेख को NHRC के वेबसाइट से, इग्नू के मानवाधिकार संवंधी प्रमाणपत्र के लिए कराये जा रहे कोर्स इत्यादि से लिया गया है, इस लेख का मुख्य उद्देश्य लोगों को मानवाधिकारों के प्रति जागरूक करना है

यह लेख जितेन्द्र गौतम  (Twitter @ErJKGautam) द्वारा संकलित किया गया है, संकलन कर्ता मानवाधिकार, महिला सशक्तिकरण, जातिवाद एवं सामाजिक मुद्दों इत्यादि पर लेख और कवितायेँ लिखते रहते हैं।

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