Dalit Politics: भारत में दलित समुदाय से बने 8 मुख्यमंत्री; अब जनता की किस पर नजर? कौन होगा अगला दलित मुख्यमंत्री…

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आजादी के 75 साल बाद, दलित समुदाय से आने वाले नेताओं के लिए मुख्यमंत्री बनना चुनौतीपूर्ण रहा है, लेकिन उन्होंने महत्वपूर्ण उपलब्धियां भी हासिल की हैं। भारत में अब तक दलित समुदाय से 8 नेता मुख्यमंत्री बने हैं।

Vidhan Sabha Election: देश में दलित सियासत की गूंज दिनों-दिन बढ़ रही है, और यह तथ्य साफ है कि बीजेपी, कांग्रेस, सपा सहित अन्य प्रमुख राजनीतिक दल इस समुदाय का समर्थन प्राप्त करने के लिए सक्रिय हैं। दलित समुदाय की राजनीतिक ताकत और संख्या का महत्व सत्ताधारी पार्टियों के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह समुदाय बड़े पैमाने पर वोट बैंक का हिस्सा है और चुनावी जीत के लिए आवश्यक समर्थन प्रदान कर सकता है। दलित सियासत ने भारतीय राजनीति को नई दिशा दी है और दलित नेताओं की भूमिका, जैसे मायावती और अन्य मुख्यमंत्री, ने इस समुदाय की सामाजिक और राजनीतिक स्थिति को सशक्त किया है। इन नेताओं ने दलित मुद्दों को मुख्यधारा की राजनीति में प्रभावी ढंग से उठाया है और इससे जुड़े मतदाता समर्थन को आकर्षित किया है।

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भारत में दलित समुदाय से अब तक के 8 मुख्यमंत्री बने

  1. दामोदरम संजीवय्या – आंध्र प्रदेश
  2. भोला पासवान शास्त्री – बिहार
  3. रामसुंदर दास – बिहार
  4. जगन्नाथ पहाड़िया – राजस्थान
  5. मायावती – उत्तर प्रदेश
  6. सुशील कुमार शिंदे – महाराष्ट्र
  7. जीतन राम मांझी – बिहार
  8. चरणजीत सिंह चन्नी – पंजाब

इन नेताओं ने अपनी-अपनी राज्यों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और दलित समुदाय की आवाज़ को मुख्यधारा की राजनीति में महत्वपूर्ण स्थान दिलाया। चलिए अब इनके बारे में जानते हैं …..

भारत में दलित समुदाय के पहले मुख्यमंत्री

भारत में दलित समुदाय के पहले मुख्यमंत्री दामोदरम संजीवय्या थे, जिन्होंने 1960 के दशक में आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया। वे दलित समुदाय से आने वाले पहले मुख्यमंत्री थे और उस समय के सबसे युवा मुख्यमंत्री भी थे। संजीवय्या ने कांग्रेस पार्टी के साथ अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की और 1956 में आंध्र प्रदेश कांग्रेस कमेटी के तीसरे अध्यक्ष बने, एक पद पर वे 1961 तक रहे। 1957 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 301 में से 187 सीटें जीतीं, और नीलम संजीवा रेड्डी मुख्यमंत्री बने। गुटबाजी के कारण संजीवय्या को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंप दी गई। 1964 में, उन्होंने राज्यसभा सदस्य के रूप में कार्य किया और लाल बहादुर शास्त्री की सरकार में श्रम और रोजगार मंत्री बने। 1972 में, मात्र 51 वर्ष की उम्र में हार्ट अटैक से उनका निधन हो गया। उनके कार्यकाल और योगदान ने दलित समुदाय की राजनीतिक स्थिति पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाला।

बिहार से भोला पासवान शास्त्री

भोला पासवान शास्त्री का जन्म 1914 में बिहार के एक गरीब परिवार में हुआ था। 1968 में वो बिहार के पहले दलित मुख्यमंत्री बने। बता दें, कि शास्त्री ने स्वतंत्रता संग्राम में भी भाग लिया और 1968 से 1972 तक मुख्यमंत्री रहे। कांग्रेस का विभाजन होने पर वे 13 दिनों के लिए मुख्यमंत्री बने और बाद में इंदिरा गांधी की कांग्रेस (Requisitionists) में शामिल होकर 7 महीने तक मुख्यमंत्री रहे। 1972 से 1982 तक राज्यसभा में बिहार का प्रतिनिधित्व किया और 1978 में विपक्ष के नेता रहे। 1984 में उनका निधन हो गया।

बिहार से रामसुंदर दास

रामसुंदर दास का जन्म 1921 में बिहार में हुआ था। उन्होंने कोलकाता के विद्यासागर कॉलेज में पढ़ाई की, लेकिन भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लेने के लिए पढ़ाई छोड़ दी। उन्होंने प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के साथ जुड़कर 1957 में हाजीपुर से लोकसभा चुनाव लड़ा। 1977 के विधानसभा चुनाव में दास सोनपुर से विधायक बने।

मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर की मुंगेरीलाल आयोग रिपोर्ट को लेकर पार्टी में विवाद हुआ, और दलित विधायकों को समर्थन में लाने के लिए दास को 1979 में मुख्यमंत्री बनाया गया। ठाकुर ने इस्तीफा दे दिया और दास ने पद संभाला। वे 2015 में निधन हो गए।

राजस्थान से जगन्नाथ पहाड़िया

जगन्नाथ पहाड़िया राजस्थान के दलित समुदाय से आने वाले एकमात्र मुख्यमंत्री हैं। वे कांग्रेस में नेहरू-गांधी परिवार के करीबी माने जाते थे। पहाड़िया ने 1957 से 1984 के बीच चार बार लोकसभा सांसद, राज्यसभा सदस्य और चार बार विधायक के रूप में कार्य किया। आपातकाल के दौरान, संजय गांधी के करीबी बन गए और उन्हें मुख्यमंत्री बनाया गया। 1980 में संजय गांधी की मौत के बाद, उन्हें पार्टी में विरोध का सामना करना पड़ा। पहाड़िया ने कई केंद्रीय मंत्रालयों में भी काम किया और 1989-90 में बिहार तथा 2009-2014 तक हरियाणा के राज्यपाल रहे। 2021 में उनका निधन हो गया।

उत्तर प्रदेश से मायावती

मायावती दलित समुदाय से आने वाली एक प्रमुख और सबसे प्रसिद्ध मुख्यमंत्री हैं। उन्होंने उत्तर प्रदेश की चार बार मुख्यमंत्री के रूप में सेवा की: पहली बार 1995, दूसरी बार 1997, तीसरी बार 2002, और चौथी बार 2007 में। मायावती का जन्म एक निम्न-मध्य वर्ग परिवार में हुआ था, और उन्होंने कालिंदी कॉलेज, मेरठ यूनिवर्सिटी और दिल्ली विश्वविद्यालय से कानून की डिग्री प्राप्त की।

राजनीति में उन्हें बसपा के संस्थापक कांशीराम ने आगे बढ़ाया। 2007 में, बीएसपी को बड़ी जीत मिली और मायावती पहली बार अकेले दम पर मुख्यमंत्री बनीं, जबकि पहले वह सपा और बीजेपी के समर्थन से सत्ता में आई थीं।

महाराष्ट्र से सुशील कुमार शिंदे

सुशील कुमार शिंदे महाराष्ट्र पुलिस में कांस्टेबल थे और शरद पवार के साथ राजनीति में आए। 2003 में गुटबाजी के चलते उन्हें मुख्यमंत्री बनाया गया, जिससे वे महाराष्ट्र के पहले दलित मुख्यमंत्री बने। 2004 के चुनाव के बाद, देशमुख को फिर से मुख्यमंत्री बना दिया गया। शिंदे ने वित्त मंत्री रहते हुए नौ बार बजट प्रस्तुत किया और 2006-2012 में ऊर्जा, 2012-2014 में गृह मंत्रालय का प्रभार संभाला।

बिहार से जीतन राम मांझी

जीतन राम मांझी गया के एक मजदूर परिवार से थे और 1980 में राजनीति में आए। 2014 में जेडीयू की हार के बाद नीतीश कुमार ने उन्हें मुख्यमंत्री बनाया। 10 महीने बाद, जेडीयू ने इस्तीफा देने के लिए कहा, लेकिन मांझी ने मना कर दिया। अंततः उन्होंने इस्तीफा दिया और जेडीयू से बाहर हो गए। उन्होंने अपनी पार्टी, हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (सेकुलर), बनाई और वर्तमान में एनडीए गठबंधन में शामिल हैं और भारत सरकार में मंत्री हैं।

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पंजाब से चरणजीत सिंह चन्नी

चरणजीत सिंह चन्नी पंजाब के पहले दलित मुख्यमंत्री थे। 2021 में कांग्रेस ने उन्हें कैप्टन अमरिंदर सिंह की जगह मुख्यमंत्री बनाया। 2022 के विधानसभा चुनाव में चन्नी दोनों सीटों से हार गए और कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई। चन्नी ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत खरड़ नगर पालिका परिषद के वार्ड चुनाव से की और 2002 में अध्यक्ष बने। 2015-16 में विपक्ष के नेता रहे और 2017-21 तक मंत्री रहे। 2024 में उन्होंने जालंधर सीट से लोकसभा चुनाव जीता।

जनता भविष्य में किसे CM देखना चाहती है

अब आप बताइए कि आपका पसंदीदा दलित नेता कौन हैं और आप भविष्य में किस दलित नेता को मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहेंगे, चाहे वह किसी भी पार्टी से हों। आपकी राय हमें यह समझने में मदद करेगी कि जनता की अपेक्षाएं क्या हैं और कौन से नेता उनके लिए सबसे प्रभावशाली हो सकते हैं।

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