JNU में अपनी थीसिस जमा करने के लिए दलित स्कॉलर को करना पड़ रहा संघर्ष..

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डॉ अंबेडकर ने कहा है कि “शिक्षा शेरनी का दूध है जो पियेगा वो दहाड़ेगा” लेकिन मलाल की बात ये है कि भारत में आज दलितों को शिक्षित होने से रोकने का हर संभव प्रयास किया जा रहा है।  हालिया मामला दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (Jawaharlal Nehru University ) का है जहाँ एक दलित स्कॉलर (जिसका नाम सार्वजनिक नहीं किया जा सकता) जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ कंप्यूटर एंड सिस्टम साइंसेज (एससी एंड एसएस) में पिछले एक हफ्ते से अपनी थीसिस मूल्यांकन के लिए जमा कराने के लिए संघर्ष कर रहा है। लेकिन स्कूल ऑफ कंप्यूटर एंड सिस्टम साइंसेज Sc&SS द्वारा विशेष समिति की बैठक नहीं करवाई जा रही है।

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दलित स्कॉलर की थीसिस नहीं हो रही जमा :

दलित छात्र के मार्गदर्शक प्रोफेसर राजीव कुमार के मुताबिक उन्होंने विशेष समिति के प्रमुख डीन जाहिद रजा और कुलपति शांति श्री डी. पंडित को थीसिस जमा करने और उसके मूल्यांकन के लिए पत्र लिखा था लेकिन इसका कोई फायदा नहीं हुआ। टेलिग्राफ की एक रिपोर्ट के मुताबिक छात्र ने अपना शोध पूरा कर लिया है तथा उसकी साहित्यक चोरी की पड़ताल भी करवा ली है। साथ ही अनुसंधान सलाहकार समिति द्वारा मूल्यांकन के लिए थीसिस जमा करने की अनुमति भी दे दी है। लेकिन SC&SS (स्कूल ऑफ कंप्यूटर एंड सिस्टम साइंसेज) विशेष समिति की बैठक नहीं कर रहा है। बता दें कि SC&SS ही छात्र की थीसिस का मूल्यांकन के लिए आगे भेजेगा।

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दलित छात्र ने प्रशासन को दी थी चुनौती :

दी टेलिग्राफ के साथ बातचीत में दलित छात्र के मार्गदर्शक रहे राजीव कुमार ने बताया कि छात्र को प्रशासन द्वारा परेशान किया जा रहा है। क्योंकि दलित छात्र ने प्रशासन के एक फैसले को कोर्ट में चुनौती दी थी। वह आगे बताते हैं कि फरवरी 2022 में डीन ने एक आदेश जारी कर उनके दोनों छात्रों को मार्च 2024 में उनकी सेवानिवृत्ति के बाद किसी भी समस्या से बचने के लिए अपना गाइड बदलने के लिए कहा था। दलित छात्र ने डीन के इस आदेश को चुनौती देने के लिए राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (एनसीएससी) और दिल्ली उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। अदालत ने SC&SS के फैसले पर रोक लगा दी और राजीव कुमार को पद पर बने रहने की अनुमति दी थी। दलित छात्र ने अपनी तय समय सीमा से पहले ही अपना शोध कार्य पूरा कर लिया है।

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कुमार आगे बताते हैं कि, उन्होंने पिछले महिने समिति को उन परीक्षकों के नाम की एक सूची भेजी थी जिन्हें थीसिस भेजी जा सकती है। विशेष समिति आमतौर पर सेमेस्टर की शुरुआत से पहले इन मामलों पर निर्णय लेती है। लेकिन 9 जनवरी से नया सत्र शुरू हो गया है और समिति ने अब तक अपनी बैठक नहीं की है।

”जाति के आधार पर किसी के साथ भेदभाव करने का कोई सवाल ही नहीं है।”

एक तरफ प्रोफेसर राजीव कुमार जो दलित छात्र के मार्गदर्शक है कह रहे है कि दलित छात्र को इसलिए परेशान किया जा रहा है कि क्योंकि उसने प्रशासन के आदेश को चुनौती दी थी। प्रशासन हर संभव प्रयास कर रहा है कि मेरी रिटायरमेंट से पहले दलित छात्र की थीसिस पूरी ना हो। वहीं SC&SS के एक अधिकारी का कहना है कि ”जाति के आधार पर किसी के साथ भेदभाव करने का कोई सवाल ही नहीं है।” विशेष समिति स्कूल का शीर्ष पैनल है जिसमें बाहरी सदस्य होते हैं।

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पर्यवेक्षक थीसिस जमा करने से लगभग छह महीने से एक साल पहले नाम भेजते हैं। लेकिन इस बार परीक्षकों के नाम देर से आये है । हमने अन्य संकाय सदस्यों से भी अपने छात्रों के लिए परीक्षकों के नाम भेजने के लिए कहा है। बैठक एक सप्ताह के भीतर हो सकती है।

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