शिक्षा के लिए कलाम और डॉ अम्बेडकर के योगदान को जानते हैं आप ?

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भारत के पहले शिक्षा मंत्री “मौलाना अबुल कलाम आज़ाद” की जयंती पर देश में हर साल 11 नवंबर को “राष्ट्रीय शिक्षा दिवस” मनाया जाता है। मौलाना अबुल कलाम  आज़ाद ने शिक्षा के क्षेत्र में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उन्होंने शिक्षा जगत में प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा को मुफ्त और अनिवार्य बनाया।

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तकनीकी शिक्षा पर जोर, सांस्कृतिक शिक्षा पर ध्यान दिया, साहित्य अकादमी, ललित कला अकादमी, और संगीत नाटक अकादमी की स्थापना की, इसके अलावा उन्होंने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) की भी स्थापना की थी। शिक्षा जगत में उनके अतुलनीय योगदान की वज़ह से उन्हें आज भी याद किया जाता है।

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Maulana Abul Kalam Azad - Constitution of India
MAULANA ABUL KALAM AZAD, FORMER MINISTER OF EDUCATION, IMAGE CREDIT BY GOOGLE

 

शिक्षा पर कलाम ने क्या कहा था:

1 सभी धर्म समान हैं, हमें सभी धर्मों का सम्मान करना चाहिए.।
2 हमें जीवन में कभी हताश नहीं होना चाहिए, निरंतर आगे बढ़ते रहना चाहिए.।
3 गुलामी बहुत बुरी होती है, भले ही इसका नाम कितना भी खूबसूरत क्यों न हो।
4 बहुत सारे लोग पेड़ लगाते हैं, लेकिन उनमें से कुछ को ही उनका फल मिलता है।
 5 दिल से दी गई शिक्षा समाज में क्रांति ला सकती है.।

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स्वतंत्र भारत के पहले विधि मंत्री :

राष्ट्रीय शिक्षा दिवस के अवसर पर भले ही “मौलाना अबुल कलाम आज़ाद” को याद किया जाता है। लेकिन शिक्षा जगत में एक और नाम ऐसा है जिनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। वह हैं दलितों के मसीहा डॉक्टर “भीमराव अंबेडकर” जो स्वतंत्र भारत के पहले विधि (कानून)  मंत्री भी रहें हैं।

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समाज की उन्नती के लिए नारा दिया :

समाज की उन्नती के लिए बाबा साहेब अंबेडकर ने एक नारा दिया था उनका कहना था कि “शिक्षित बनो – संघर्ष करो – संगठित रहो ।“ बाबा साहेब का मानना था कि भारत में सभी लोगों तक शिक्षा की पहुँच नहीं थी। शिक्षा बहुत कम लोगों तक ही सीमित थी। यह बहुजनों का कभी अधिकार और अवसर नहीं बन पाई। इस वज़ह से समाज के पिछड़े, अति पिछड़े और दलित समुदाय के लोगों की स्थिति और भी ज़्यादा दयनीय हो गई थी क्योंकि उन्हें शिक्षा के अधिकार से वंचित रखा गया था।

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शिक्षा सम्मान मिलता है :

बाबा साहेब का कहना था कि शिक्षा से इंसानियत और राष्ट्रीयता का बोध होता है। शिक्षा, रोटी, कपड़ा और मकान ही नहीं, बल्कि सम्मान प्राप्त करने का साधन है। उनका कहना था कि शिक्षा से ही समता, स्वतंत्रता, बन्धुता और देशप्रेम की भावना का जन्म होता है।

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शिक्षा सामाजिक कष्टों को दूर करने  संजीवनी है:

 

बाबा साहेब अंबेडकर ने न केवल शिक्षा संबंधी विचार रखे। बल्कि शिक्षा के प्रसार के लिए उन्होंने प्रयास भी किये थे। इसलिए बाबा साहेब ने 1951 में मिलिंद महाविद्यालय की स्थापना की थी। इस अवसर पर बाबा साहेब ने कहा था कि –

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‘हिन्दू समाज में सबसे निम्न वर्ग में आने के कारण मैं शिक्षा के महत्व को अच्छी तरह समझता हूँ। निम्न स्तर के लोगों के उत्थान की समस्या उनके आर्थिक स्तर से जोड़ी जाती है, जो भयंकर भूल है। भारत में सामाजिक स्तर को ऊँचा उठाने के लिए उन्हें भोजन-वस्त्र देना और उच्च वर्ग की सेवा में लगा देना ही समस्या का हल नहीं है। निम्न वर्ग की समस्या यह है कि उनके अन्दर से हीन भावना की ग्रंथी निकाल दी जाए। जिसने उनका विकास अवरूद्ध किया है, उन्हें दूसरों का गुलाम बना रखा है। उनके अन्दर अपने लिए और अपने देश के लिए अपने जीवन की महत्ता की चेतना जागृत की जाए, जिसे वर्तमान सामाजिक व्यवस्था में क्रूरतापूर्वक लूट लिया गया है। उच्च शिक्षा के प्रसार के अलावा किसी अन्य चीज से इसे प्राप्त नहीं किया जा सकता। मेरे विचार से यह सारे सामाजिक कष्टों को दूर करने के लिए संजीवनी है।“

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B,R AMBEDKAR , IMAGE CREDIT BY GOOGLE

समाज की उन्नति के लिए नारा दिया :

शिक्षा के संदर्भ में बाबा साहेब अंबेडकर का कहना था कि शिक्षा की पहुँच सभी लोगों तक होनी चाहिए। क्योंकि शिक्षा एक ऐसी विधा है जो मनुष्य को विवेकशील बनाती है। मानवीय मूल्यों की परिकल्पना भी शिक्षा द्वारा ङी  संभव होती है। बाबा साहेब अंबेडकर जब अपने जीवनकाल मे उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे थे तो उन्होंने भी जातिगत भेदभाव का सामना किया था। इसलिए उन्होंने यह फैसला लिया कि वह जातिगत भेदभाव, अस्पृश्यता का अंत करेंगे। इसलिए उन्होंने “शिक्षित बनो – संघर्ष करो – संगठित रहो  का नारा दिया था।

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शिक्षित बनो – संघर्ष करो – संगठित रहो :

 

बाबा साहेब का कहना था कि जब लोग शिक्षित होंगे, संघर्ष करेंगे और संगठित होने पर ही सभी सामान्य स्त्री-पुरुष विशेषतः दलित व उपेक्षित वर्ग, बराबरी का, दर्जा हासिल कर पाएंगे और समान अधिकारों को प्राप्त करने में सक्षम हो सकेंगे। इसी दिशा में अग्रसर होकर वे समाज का प्रगतिशील चरित्र सुदृढ़ बनाने में सफल होंगे।“

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शिक्षा पर अंबेडकर ने क्या कहा?

  1. नि:शुल्क और अनिवार्य रूप से प्राथमिक शिक्षा की व्यवस्था हो।
  2. साक्षरता प्रचार के लिए अशिक्षित, प्रौढ़ शिक्षा की योजना हो।
  3. औद्योगिक शिक्षा पर विशेष बल हो।
  4. दलित, अस्पृश्य और पिछड़ी जातियों के प्रतिभासम्पन्न और बुद्धिमान युवकों को उच्च शिक्षा के लिए सरकारी कोष की व्यवस्था हो।
  5. प्रादेशिक विश्वविद्यालयों की स्थापना हो।
  6. छात्र स्तर पर ही अपनी योग्यता बढ़ाएँ।

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  7.  अपने स्वयं के ज्ञान को धीरे-धीरे बढ़ाते रहना, इससे ज्यादा खुशी की बात और क्या हो सकती है?
  8. यह जानते हुए की शिक्षा ही जीवन में प्रगति का मार्ग है, छात्रों को कठिन अध्ययन करना चाहिए और समाज के वफादार नेता बनना चाहिए।
  9. हमें शिक्षा के प्रसार को उतना ही महत्व देना चाहिए जितना कि हम   राजनीतिक आंदोलन को    महत्व देते हैं। तकनीकी और वैज्ञानिक प्रशिक्षण के बिना देश की कोई भी विकास योजना पूरी नहीं होगी। 
  10. शिक्षित बनो, आंदोलन करों, संगठित रहो, आत्मविश्वासी बनो, कभी भी हार मत मानो, यही          हमारे जीवन के पांच सिद्धांत हैं।यह भी पढें:उत्तरप्रदेश : बहाने से बुलाकर सवर्णों ने किया रेप, आटा चक्की में डाल कर 3 टुकड़ो में काटा : पीड़ित दलित परिवार
  11. किसी भी समाज का उत्थान उस समाज में शिक्षा की प्रगति पर निर्भर करता  है।
  12. .ज्ञान मानव जीवन का आधार है। छात्रों की बौद्धिक क्षमता को बढ़ाना और बनाए रखना; साथ ही    उनकी बुद्धि को उत्तेजित करने का हर संभव प्रयास करना चाहिए।
  13.  आप शिक्षित हो गए इसका मतलब यह नहीं है कि सब कुछ हुआ। शिक्षा के महत्व में कोई          संदेह नहीं है, लेकिन शिक्षा के साथ-साथ शील (नैतिकता) भी सुधारी जानी चाहिए… नैतिकता के    बिना शिक्षा का मूल्य शून्य है।
  14. लड़कों और लड़कियों को शिक्षित करें, उन्हें पारंपरिक व्यावसायिक कामों में शामिल न करें।
  15.   मेरा जीवन तीन गुरुओं और तीन उपास्य दैवतों से बना है। मेरे पहले और श्रेष्ठ गुरु बुद्ध हैं। मेरे      दूसरे गुरु कबीर हैं और तीसरे गुरु ज्योतिबा फुले हैं…  मेरे तीन उपास्य दैवत भी हैं। मेरा     पहला  दैवत ‘विद्या’, दूसरा दैवत ‘स्वाभिमान’ और तीसरा दैवत ‘शील’ (नैतिकता) है।

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  16.   प्राथमिक शिक्षा का सार्वत्रिक प्रचार सर्वांगीण राष्ट्रीय प्रगति के भवन का आधार है।  इसलिए     प्राथमिक शिक्षा के मामले में अनिवार्य कानून बनाया जाना चाहिए।
  17.   इस दुनिया में स्वाभिमान से जीना सीखो। इस दुनिया में कुछ करके ही दिखाना है यह महत्वाकांक्षा हमेशा आपके अंदर होनी चाहिए। (याद रखना) जो लड़ने हैं वही आगे आते हैं।
  18.  स्वच्छ रहना सीखें और सभी दुर्गुणों से मुक्त रहें। अपने बच्चों को शिक्षित करें। उनके मन में धीरे-धीरे महत्वाकांक्षा जगाएं। उन्हें विश्वास दिलाएं कि वे महान व्यक्ति बनने जा रहे हैं। उनके अंदर की हीनता को नष्ट करें। उनकी शादी करने में जल्दबाजी न करें।
  19.  शिक्षा से व्यक्ति को समाज में सम्मान मिलता है।

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