पुण्यतीथि विशेष: “ईश्वर को मंदिर औऱ मूर्ती में मत ढूढ़ों, असली ईश्वर को पहचानों” संत गाडगे बाबा

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धार्मिक आडंबरों पर उगली उठाकर सवाल पूछने वाले, सामज में व्याप्त कुरीतियों को चिन्हित करने वाले औऱ समाज में चेतना जगाने वालों की सूची में एक नाम बाबा गाडगे का भी है। बाबा गाडगे जिन्हें कोई संत मानता है तो कोई दीन-दुखिय़ों का कर्ता धर्ता लेकिन संत बाबा गाडगे इन सबसे कही उपर थे। उन्हें अगर दूसरा महात्मा बुद्ध कहा जाए तो गलत नहीं होगा। 20 दिसंबर 1956 को बाबा गाडगे की मृत्यु हो गई लेकिन मानवता के मूर्तिमान बनकर वह आज भी लोगों के जहन में मौजूद हैं।

आज बाबा गाडगे की पुण्यतीथि पर हम आपकों बताएंगे उनसे जुड़ी कुछ विशेष बातें…

 

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बाबा गाडगे को महापुरूष क्यों कहा जाता है:

महाराष्ट्र के अमरावती जिले के शेणगांव अंजनगांव में 23 फरवरी 1876 में बाबा गाडगे का जन्म हुआ था। उन्हें बचपन में “डेबूजी झिंगराजी जानोरकर” के नाम से भी जाना जाता था। कहा जाता है कि उन्होंने अपनी सारी जिंदगी एक लकड़ी, फटी पुरानी चादर और मिट्टी के बर्तन के साथ बिता दी। उन्होंने अपने पूरे जीवन में खुद के लिए एक घर तक नहीं बनवाया लेकिन महाराष्ट्र में धर्मशालाएं, गौशालाएं, अस्पताल, स्कूल औऱ छात्रों के लिए छात्रावास बनवाएं थे।

 

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यह सब उन्होंने भीक्षा यानी भीख मांगकर बनवाएं थे। उन्होंने अपनी सारी जिंदगी उन्हीं धर्मशालाओं के किसी कौने और पेड़ के नीचे बिता दी जिन्हें उन्होंने समाज सेवा मे बनवाया था। कहा ये भी जाता है कि महाराष्ट्र के कई हिस्सो में बाबा गाडगे को मिट्टी के बर्तन वाले गाडगे बाबा तो कहीं चीथड़े-गोदड़े वाले बाबा के नाम से जाना जाता है।

धार्मिक आडंबरों का किया विरोध:

साल 1907 से 1917 तक बाबा गाडगे अज्ञातवास पर रहे थे। इसी समय उन्होंने अपनी और दूसरों की जिंदगी को बेहद करीबी से देखा। उन्होंने यह भी देखा औऱ समझा की कैसे धार्मिक आडंबरों, अंधविश्वास से समाज को हानि हो रही है। यही करण है कि समाज में सामाजिक कुरितियाँ और रूढ़ियों ने घर कर लिया है। बाबा गाडगे ने इन आंडबरों का सख्त विरोध किया था।

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दुखी औऱ उपेक्षितों की सेवा ही इश्वर भक्ति है:

संत बाबा गाडगे ने धार्मिक आडंबरों का मुखरता से विरोध किया था। वह मानते थे कि अगर इश्वर है और उनकी भक्ति कि जानी है तो उसका एक ही तरीका है कि उन लोगों की सेवा करों जो दुखी है, उपेक्षित है। यही लोक सेवा असल में इश्वर भक्ति है। वह मानते थे कि इश्वर किसी मंदिर, तीर्थस्थान या मूर्तियों में नहीं हैं, इश्वर यदि है तो दरिद्र नारायण के रूप में समाज में ही मौजूद है। हमें असल भगवान को पहचान कर उसकी तन-मन और धन से सेवा करनी चाहिए। असल सेवा वो ही है जो भूखे को भोजन दे, प्यासे को पानी पिलाए, नंगे को कपड़ा दे औऱ अनपढ़ को शिक्षित करें।

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मानवता के मूर्तिमान थे बाबा गाडगे?

वेब दुनिया की एक रिपोर्ट कहती है कि, प्रसिद्ध संत तुकडो जी महाराज ने बाबा गाडगे को श्रद्धांजली देते हुए एक पुस्तक अर्पित की जिसमें उन्होंने बाबा गाडगे को मानावता के मूर्तिमान के आदर्श के रूप में परिभाषित किया है। यहाँ इस बात का भी जिक्र किया गया है कि बाबा गाडगे ने महात्मा बुद्ध की ही भांति अपना परिवार औऱ सारे मोह त्याग कर जन कल्याण के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। वर्तमान में भी बाबा गाडगे द्वारा स्थापित “गाडगे महाराज मिशन” समाज सेवा  के कार्य कर रहा है।

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