संविधान सभा में बाबा साहेब द्वारा पेश संविधान के मसौदे पर विरोध क्यों हुआ था..?

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साल 1948 तारीख 4 नवंबर. ये वो दिन था जब बाबा साहेब अंबेडकर ने संविधान सभा में पहली बार संविधान का मसौदा पेश किया था। मसौदा पेश करने के साथ साथ संविधान सभा को संबोधित करते हुए बाबा साहेब ने बताया कि संविधान के ड्राफ्ट में किन चीज़ों को शामिल किया गया है। मसलन, संविधान में नागरिक को क्या मौलिक अधिकार दिए जाएंगे, देश का प्रशासनिक ढांचा क्या होगा। न्यायपालिका, विधायिका औऱ कार्यपालिका के पास क्या शक्तियाँ होंगी। वहीं राजनीतिक ढांचा किस तरह से काम करेगा।

संविधान सभा के कुछ लोगों ने इसकी तारीफ की तो वहीं कुछ इस मसौदे से नाखुश दिखे। इसका कारण य़े था कि बाबा साहेब ने संविधान का जो मसौदा तैयार किया था उसमें देश का प्रशासनिक ढांचा और राजनितिक ढांचा पंचायती राज के सिद्धांतो पर आधारित नहीं था। इसके बाद संविधान सभा में इस बात को लेकर एक नई बहस शरू हो गई कि संविधान में ग्राम पंचायत को जोड़ा जाए या नहीं।

ग्राम पंचायत को संविधान मे जोड़ने के खिलाफ़ क्यों थे बाबा साहेब: 

बता दें कि बाबा साहेब संविधान में ग्राम पंचायतों को जोड़ने के लिए कभी सहमत नहीं थे। उनका मामना था कि, गांव स्थानीय बोली, अज्ञानता, संकीर्णता औऱ सांप्रदायिकता के सिवा कुछ नहीं हैं। 6 अक्टूबर 1932 को जब बॉम्बे प्रसिडेंसी में प्रांत पंचायत विधेयक पेश किया गया था तब बाबा साहेब ने यह कहते हुए उसका विरोध किया था कि “भारत के गांव जातिग्रस्त हैं इसलिए वहाँ सरकारी संस्थाओं की सफलता की संभावना बेहद कम हैं। वहीं पंचायत विधेयक को लेकर बाबा साहेब ने कहा, “मैं भारत के लिए स्वशासन के सिद्धांत को तब तक स्वीकार नहीं कर सकता जब तक कि मैं संतुष्ट न हो जाऊं कि प्रत्येक स्व-सरकारी संस्थान में दलित वर्ग को उनके अधिकारों की रक्षा लिए विशेष प्रतिनिधित्व देने वाला प्रावधान है।“

image credit twitter

हालांकि 22 नवंबर 1948 को संविधान सभा में के संथानम ने जब ग्राम पंचायत से जुड़ा संशोधित विधेयक पेश किया तो उसे सर्वसम्मती से स्वीकार किया गया। इसमें बाबा साहेब अंबेडकर की भी सहमति थी।

इन कारणों से जताई थी सहमति: 

बाबा साहेब ने ये सहमति तीन कारणों से जताई थी। पहला कारण ये कि के संथानम के इस प्रस्ताव में लिखा था कि, “राज्य ग्राम पंचायतों को संगठित करने के लिए कदम उठाएंगे और उन्हें वह अधिकार देंगे जो स्वशासन इकाई के तौर पर कार्य करने के लिए आवश्यक होंगे। “ दूसरा कारण ये कि संविधान सभा के अधिकतर सदस्य संविधान में पंचायतों को जोड़ने के पक्ष में थे।

नेशनल स्पोर्ट्स क्लब के सेमिनार में संबोधित करते हुए बाबा साहेब अंबेडकर (image credit twitter)

इस पर के. संथानम का प्रस्ताव जिसके अनुसार पंचायतों को राज्यों के डायरेक्टिव प्रिंसिपल्स में शामिल किया जाना था इसे देखते हुए अंबेडकर भी पंचायतों को संविधान में शामिल करने के लिए राज़ी हो गए। तीसरा और अंतिम कारण ये माना जाता है कि बाबा साहेब का सोचना था कि पंचायतें राज्य सरकारों के निर्देश पर चलेंगी इसलिए यह संस्थान मजबूत नहीं होंगे और ये संविधान के अनुच्छेद 40 तक ही सीमित रहेगें।

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