मित्र दत्तोबा को लिखें पत्र में क्यों भावुक हुए थे अम्बेडकर ?

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एक ऐसा शख्श जिसने बचपन से जाति का दंश झेला था, जो जनता था कि अगर उसने ऊँची जाति के मटके से पानी पिया या उस मटके को छू भी लिया तो उसकी कितनी बड़ी सज़ा उसे मिल सकती थी। जाति के नाम पर जिसकी शिक्षा को कक्षा के दरवाजे पर सीमित कर दिया गया। जिसे ब्लैक बोर्ड को छूने नहीं दिया गया, उस पर लिखने नहीं दिया गया सिर्फ इसलिए क्योंकि वो छोटी जाति का है।

लेकिन उस शख्श ने कभी हार नहीं मानी। वो लड़ा इन सभी परिस्थितियों से, वो लड़ा उस हर एक जातिवादी मानसिकता रखने वाले से जिसने जात पात के नाम पर इंसानियत को सूली पर चढ़ा दिया था। वो एक अकेले शख्स बाबा साहेब डॉ भीमराव अंबेडकर थे।

अपने समाज को शिक्षित करने के लिए बाबा साहेब ने निरंतर संघर्ष किया। दलित समाज में चेतना जगाने का काम किया। बाबा साहेब ने दलित समाज को हमेशा कहा की वो शिक्षित बने, संगठित रहें और अपने समाज को आगे बढ़ाने के लिए लगातार संघर्ष करते रहें।

बाबा साहेब का जीवन खुद संघर्षों से लदा था। विदेश में पढ़ाई और अपने रहने खाने का खर्चा निकालने के लिए होटल में काम करना पड़ा। जब पढ़ाई पूरी करके बड़ौदा महाराज की सेवा में हाज़िर हुए तो दफ़्तर में जातिवाद झेलना पड़ा। जहाँ का चपरासी भी उनकी टेबल पर फाइल फेंक कर देता था। पीने को पानी नहीं मिलता था। यहाँ तक कि महार जाति से होने के कारण उन्हें रहने के लिए किराये पर घर भी नहीं मिला। पारसी होटल में सहारा मिला भी तो वहां से भी जाति के कारण निकाल दिया गया।

इतना सब झेलते हुए भी बाबा साहेब ने कभी उफ़ तक नहीं करी, अपनी आँखों से कभी एक आंसू नहीं बहाया, बस लड़ते रहे। लेकिन एक पल बाबा साहेब की ज़िंदगी में भी ऐसा आया जब वो भी भावुक हो गए। यह घटना उस वक्त की है जब उन्होंने अपनी चौथी संतान को खो दिया। इसी दौरान बाबा साहेब ने अपने दोस्त दत्तोबा को एक पत्र लिखा जो बेहद ही मार्मिक और भावुक कर देने वाला पत्र है।

बाबा साहेब इस पत्र में लिखते हैं...”हम चार सुंदर रूपवान और शुभ बच्चे दफन कर चुके हैं। इन में से तीन पुत्र थे और एक पुत्री । यदि वे जीवित रहते तो भविष्य उन का होता। उन की मृत्यु का विचार करके ह्रदय बैठ जाता है। हम बस अब जीवन ही व्यतीत कर रहे हैं। जिस प्रकार सिर से बादल निकल जाता है, उसी प्रकार हमारे दिन झटपट बीतते जा रहे हैं। बच्चों के निधन से हमारे जीवन का आनंद ही जाता रहा और जिस प्रकार एक ग्रंथ में लिखा है,
‘तुम धरती का आनंद हो । यदि वह धरती को त्याग जाय तो फिर धरती आनंदपूर्ण कैसे रहेगी’? मैं अपने परिक्त जीवन में बार-बार अनुभव करता हूं। पुत्र मृत्यु से मेरा जीवन बस ऐसे ही रह गया है, जैसे तृण की – कांटों से भरा हुआ कोई उपवन। बस अब मेरा मन इतना भर आया है कि और अधिक नहीं लिख सकता।”

बाबा साहेब ने अपने दोस्त दत्तोबा पवार को मराठी में लिखा था। संविधान निर्माता बाबा साहब डॉ भीमराव अंबेडकर ने समाज के लिये जो किया शायद ही कोई और इतना कर पाता ?

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