Bihar: घर में न LPG, न चाय के पैसे, ना कोई मदद, नगर निगम में भी पूछ नहीं; दलित डिप्टी मेयर गरीबी में सब्जी बेचने लगीं

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गया नगर निगम की दलित डिप्टी मेयर चिंता देवी आर्थिक तंगी और प्रशासनिक उपेक्षा के कारण सड़क पर सब्जी बेचने को मजबूर हैं। घर में गैस, चाय के पैसे तक नहीं हैं और उन्हें नगर निगम में भी कोई महत्व नहीं दिया जाता। जातिगत भेदभाव और अनदेखी से आहत होकर उन्होंने यह कदम उठाया है।

Bihar : गया नगर निगम की उप महापौर चिंता देवी की जिंदगी का एक ऐसा दर्दनाक और हैरान कर देने वाला पहलू सामने आया है, जिसने न सिर्फ नगर निगम प्रशासन बल्कि पूरे समाज को सोचने पर मजबूर कर दिया है। सोमवार को नगर निगम कार्यालय के पास सड़क किनारे सब्जी बेचती हुई उनकी तस्वीरें वायरल हुईं, जिसने हर किसी का ध्यान खींचा। चिंता देवी ने अपनी यह स्थिति खुद बयां करते हुए बताया कि नगर निगम के अधिकारी उन्हें लगातार अनदेखा कर रहे हैं। कार्यालय में उनकी मौजूदगी को महत्व नहीं दिया जाता और उनके अधिकारों को पूरी तरह से दरकिनार किया जा रहा है। उन्होंने आरोप लगाया कि प्रशासन में अनुसूचित जाति होने के कारण उनके साथ भेदभाव किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि आर्थिक तंगी के कारण उन्हें यह कदम उठाना पड़ा और सब्जी बेचकर वे दिन भर में मुश्किल से तीन-चार सौ रुपये कमा पाती हैं।

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आर्थिक तंगी ने ली सुकून छीन, चूल्हे पर खाना बनाने को मजबूर

चिंता देवी की आर्थिक स्थिति इतनी खराब है कि उनके घर में एलपीजी गैस तक नहीं है। वह आज भी चूल्हे पर खाना बनाने को मजबूर हैं। उन्होंने अपनी बेटी की शादी के लिए तीन लाख रुपये का कर्ज लिया था, जो अब तक चुका नहीं पाई हैं। उन्होंने बताया कि डिप्टी मेयर बनने के बाद भी उनकी स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ। उनका कहना है कि उन्हें न तो किसी सरकारी योजना की जानकारी दी जाती है और न ही कोई आर्थिक सहायता उपलब्ध कराई जाती है। यह स्थिति उनके लिए बेहद अपमानजनक और तकलीफदेह है।

जातिगत भेदभाव और प्रशासनिक राजनीति का शिकार

अपने साथ हो रहे व्यवहार पर चिंता देवी ने कहा कि अनुसूचित जाति का होने के कारण उनके साथ शुरू से राजनीति हो रही है। उन्होंने कहा, “हम सच बोलते हैं, इसलिए सबको कड़वा लगता है। जब हम जनता के हित की बात करते हैं और अधिकारियों से योजनाओं के क्रियान्वयन पर सवाल उठाते हैं, तो वे हमें नजरअंदाज कर देते हैं। हमारी उपस्थिति का सम्मान नहीं किया जाता और हमारी राय को महत्वहीन समझा जाता है।” उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें बैठकों और महत्वपूर्ण निर्णयों की जानकारी नहीं दी जाती, जिससे वे नगर निगम में पूरी तरह से अलग-थलग महसूस करती हैं।

समाज और प्रशासन के लिए सवाल

चिंता देवी का यह संघर्ष न केवल प्रशासनिक लापरवाही को उजागर करता है, बल्कि समाज में व्याप्त जातिगत भेदभाव और आर्थिक असमानता की भी कड़वी सच्चाई को सामने लाता है। सवाल यह है कि एक उपमहापौर, जो जनता की सेवा के लिए चुनी गई हैं, उन्हें इस तरह के हालात से क्यों गुजरना पड़ रहा है? यह घटना उन सामाजिक और प्रशासनिक खामियों को दर्शाती है, जिन्हें सुधारने की आवश्यकता है। चिंता देवी का यह संघर्ष समाज और प्रशासन दोनों के लिए एक आईना है, जो यह दिखाता है कि किस तरह हाशिए पर खड़े समुदायों के साथ व्यवहार किया जाता है।

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न्याय और समानता की उम्मीद

यह घटना एक चेतावनी है कि अगर समाज और प्रशासन ने ऐसी घटनाओं से सीख नहीं ली, तो यह न केवल हमारे लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए खतरनाक होगा, बल्कि उन वंचित समुदायों के लिए भी जो हर रोज़ न्याय और समानता की लड़ाई लड़ रहे हैं। चिंता देवी की यह कहानी हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि क्या हमारे समाज में सच में सबके लिए समान अवसर और सम्मान है, या फिर यह सिर्फ कागजों तक सीमित बातें हैं।

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