बिहार में जातिगत जनगणना से बीजेपी को दिक्कत क्यों हो रही है ?

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बिहार में आज यानि 7 जनवरी 2023 से जाति आधारित जनगणना प्रारम्भ हो रही है यह जनगणना दो चरणों में पूरी की जाएगी । पहले चरण में मकान-परिवार की गिनती और दूसरे चरण में जाति और व्यवसाय की गिनती की जाएगी । पहला चरण 7 जनवरी से 21 जनवरी तक चलेगा. दूसरा चरण 1 अप्रैल से 30 अप्रैल तक चलेगा.

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राज्य और केंद्र सरकार कई बार जाति आधारित जनगणना के मुद्दे पर आमने-सामने आ चुकी हैं और अब जब केंद्र सरकार ने राज्य सरकार की मांग नहीं मानी, तब बिहार सरकार ने अपने खर्च पर इसे कराने का फैसला किया है। काफी खींचतान के बाद आज से बिहार में जाति आधारित जनगणना शुरू हो रही है। करीब 500 करोड़ के खर्च से इसे दो चरणों में पूरा किया जाएगा।

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जाति जनगणना करवाने वाला बिहार देश का तीसरा राज्य

राजस्थान और कर्नाटक के बाद जति जनगणना करवाने वाला बिहार देश का तीसरा राज्य है। राजस्थान में 2011 में यूपीए शासन के दौरान सामाजिक आर्थिक सर्वे के साथ जाति गणना हुई थी लेकिन सर्वे के बाद जाति जनगणना के आकड़े जारी करने पर रोक लगा दी गयी थी । इसी तरह कर्नाटक में भी 2014 – 15 में सामाजिक एवं आर्थिक सर्वे नाम से जाति जनगणना हुई थी , 2017 में कंथराज समिति ने सर्वे की रिपोर्ट सरकार को सौप दी लेकिन सिद्धारमैया सरकार ने रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की ।

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जातिगत जनगणना क्यों ? क्या है इसके सियासी फायदे –

आजादी के बाद पहली बार 1951 में जनगणना हुई। तब से अब तक हुई सभी 7 जनगणना में SC और ST का जातिगत डेटा पब्लिश होता है, लेकिन बाकी जातियों का डेटा इस तरह पब्लिश नहीं होता। OBC और दूसरी जातियों की सही आबादी का अनुमान लगाना मुश्किल है।
1990 में वीपी सिंह सरकार ने जिस मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू कर पिछड़ों को आरक्षण दिया, उसने भी 1931 की जनगणना को आधार मानकर देश में OBC की आबादी 52% मानी थी।

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मंडल आयोग की सिफारिश पर ही OBC को 27% आरक्षण मिलता है जबकि SC और ST को जाति के आधार पर आरक्षण मिलता है।
OBC के आरक्षण का कोई आधार नहीं है .
अगर जातिगत जनगणना होती है तो इसका एक ठोस आधार होगा। जनगणना के बाद उसकी संख्या के आधार पर आरक्षण को कम या ज्यादा करना पड़ेगा।

जाति आधारित जनगणना का फायदा क्या –

इससे क्षेत्रीय दलों को लाभ मिलेगा। वो स्थानीय स्तर पर राजनीति को मजबूत कर सकते हैं, क्योंकि ओबीसी की राजनीति करने वालों को लगता है कि इस गणना से 50 फीसदी आरक्षण वाला बैरियर टूट सकता है। उनके आरक्षण का दायरा बढ़ सकता है।

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मंडल आयोग के बाद कई क्षेत्रीय पार्टियों का हुआ उदय जिसके बाद से ही OBC के इर्द-गिर्द सिमटी हुई है बिहार की राजनीति, राज्यों और देश में सभी पार्टियां OBC को ध्यान में रखकर ही अपनी सियासत करती है और इसी सियासी समीकरण को ध्यान में रखते हुए लंबे समय से जाति जनगणना की मांग हो रही है। एक तरफ जहा केंद्र में बीजेपी जाति जनगणना का विरोध कर रही है तो वही बिहार में गठबंधन सरकार में रहते हुए बीजेपी समर्थन में खड़ी थी ।

अब जानिए जाति जनगणना का विरोध क्यों हो रहा है –

एनडीए सरकार शुरुआत से ही जातिगत जनगणना के विरोध में खड़ी है , लोकसभा में गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने एक बयान दिया था की “संविधान के मुताबिक सिर्फ SC -ST की ही जाति जनगणना हो सकती है अगर OBC और अन्य जातियों की जाति आधारित जनगणना हुई तो इससे देश में 1990 जैसे माहौल बन सकते है और मंडल कमीशन जैसे और आयोगों के गठन की मांग होगी”।

 

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इसके बाद संभावना है की आरक्षण की व्यवस्था में फेरबदल हो और आबादी के अनुपात में आरक्षण देने की मांग उठे।
हालाँकि बसपा-सपा-राजद जैसी पार्टीया हमेशा से ही आबादी के अनुपात में आरक्षण देने की वकालत करते आयी है जिसका बसपा सुप्रीमो ने कई दफा जिक्र भी किया है।
अगर ओबीसी कोटे में बदलाव की मांग तेज हुई और जाति जनगणना से इनकी सही जनसख्या की जानकारी सामने आती है तो यह भाजपा जैसी पार्टी के लिए बड़ी मुसीबत बन सकता है कयोकि ओबीसी ही भाजपा का कोर वोट बैंक है और भाजपा ने ओबीसी आरक्षण का कभी खुलकर समर्थन नहीं किया और इसी भाजपा ने मंडल कमीशन के आधार पर दिए गए ओबीसी आरक्षण का विरोध किया था और इसके विरोध में ही रथ यात्रा निकाली थी।

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