रमाबाई भीमराव अंबेडकर का जन्म आज ही के दिन 7 फरवरी 1898 को महारष्ट्र के छोटे से गांव दाभोल में हुआ था। बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर की पत्नी रमाबाई एक दलित गरीब परिवार से थीं। इनके पिता का नाम भीकू धुत्रे (वणंदकर) और माता का नाम रुकमणी (वणंदकर) था। इनके पिता कुली का काम करते थे। दाभोल बंदरगाह से मछली की टोकरी को बाजार तक ढोकर परिवार का पालन पोषण करते थे। आज रमाबाई के 126वीं जयंती के दिन हम उनके जीवन के खास पहलू के बारे में जानेंगे।
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बचपन में ही माता पिता चल बसे:
रमाबाई को बाबा साहेब अंबेडकर प्यार से रामू कहते थें। जबकि बाबा साहेब अंबेडकर के अनुयायी उन्हें “रमाई” कहकर पुकारते थे और उनकी तुलना वह माँ से करते थे। बचपन में ही रमाबाई के सिर से माता पिता दोनों का साया उठ गया था। इसके बाद रमाबाई और उनके भाई बहन को उनके गोविंदपुरकर मामा मुंबई ले आए।
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कम उम्र में विवाह:
साल 1906 में जब रामजी अम्बेडकर अपने बेटे भीमराव अंबेडकर के लिए वधु की तलाश कर रहे थे तब उन्हें रमाबाई का पता चला और सूबेदार रमाबाई को देखने चले गए। रामजी अम्बेडकर को रमाबाई पसंद आ गयी और उन्होंने भीमराव और रमाबाई की शादी का फैसला लिया और दोनों का विवाह करवा दिया था। विवाह के समय रमाबाई केवल 9 साल की थीं और बाबा साहेब अंबेडकर 15 साल के थें।
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आर्थिक परेशानियों का सामना :
बाबा साहेब अंबेडकर का जीवन रमाबाई से काफी प्रभावित था। ऐसा कहा जाता है कि जब बाबा साहेब अंबेडकर विदेश में रहकर उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे थे तब उनकी पत्नी रमाबाई ने उन्हें काफी प्रोत्साहित किया था। बाबा साहेब अंबेडकर जब विदेश में रहकर उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे थे तब भारत में रमाबाई ने आर्थिक परेशानियों का सामना किया था और इस बात की भनक रमाबाई ने बाबा साहेब अंबेडकर को लगने नहीं दी।
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तरक्की का ख्याल :
अमर उजाला की रिपोर्ट के मुताबिक फिल्म निर्माता सुनील शर्मा ने भी इस मामले में बताया था कि “वह गोबर के उपले बनाती थीं और उन्हें अपने सिर पर ले जाती थीं। वह खाना बनाने के लिए इसका इस्तेमाल करती थीं। वह अंबेडकर को विदेशों में डॉक्टरेट ऑफ साइंस सहित दुनिया की सर्वोच्च शैक्षणिक डिग्री प्राप्त करने में मदद करती थीं”।रमाबाई बाबा साहेब अंबेडकर का काफी ख्याल रखती थीं वह हमेशा इस बात का ध्यान रखतीं थीं कि उनकी वजह से बाबा साहेब अंबेडकर की तरक्की में किसी तरह की कोई दिक्कत न आए।
सामाजिक आंदोलन में सहभागिता:
बाबा साहेब अंबेडकर पुस्तकों से बहुत प्रेम करते थें और समाज के कल्याण के लिए हमेशा तत्पर रहते थें। बाबा साहेब अंबेडकर की इस खूबी की रमाबाई काफी सम्मान करती करती थीं। बाबा साहेब अंबेडकर के सामाजिक आंदोलन में भी रमाबाई भी सहभागिता करती थीं। दलित समाज के लोग रमाबाई को ‘आईसाहेब’ और डॉ. भीमराव अंबेडकर को ‘बाबासाहेब’ कह कर बुलाते थे।
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अभाव के कारण संतान को खोया :
रमाबाई और बाबा साहेब अंबेडकर की पांच संतान थीं लेकिन अभाव और गरीबी के कारण उनके चार बच्चों की मौत हो गई और एक संतान जीवित रहीं। उनके पुत्र गंगाधार की ढ़ाई साल की उम्र में मौत हो गई फिर रमेश नाम के पुत्र की मौत हुई। इंदु नाम की बेटी भी बचपन में ही चल बसी। इसके बाद सबसे छोटा पुत्र राजरतन भी नहीं रहा। इनका सबसे बड़ा पुत्र केवल यशवंत राव ही जीवित रहे। इनके चारों बच्चों ने अभाव के कारण ही दम तोड़ दिया था। रमाबाई और बाबा साहेब के जीवन में यह एक ऐसा वक्त था जब दोनों पर दुखों का पहाड़ टूट गया था। अपनी चार चार संतानों को अपनी आंखों के सामने मरते देखना माता पिता के लिए इससे बड़े दुख की बात और क्या हो सकती है।
अंबेडकर पर रमाबाई का प्रभाव:
दोनों ने जीवन की तमाम समस्याओं का सामना किया और एक वक्त बाबा साहेब अंबेडकर के जीवन में ऐसा भी आया जब रमाबाई हमेशा के लिए बाबा साहेब अंबेडकर को छोड़कर चली गईं। रमाबाई का लंबी बीमारी के बाद 26 मई 1935 को निधन हो गया था। बाबासाहेब अम्बेडकर ने 1940 में प्रकाशित “थॉट्स ऑफ पाकिस्तान” नाम की अपनी पुस्तक में अपने जीवन पर रमाबाई के प्रभाव को स्वीकार किया था। उन्होंने अपनी पुस्तक ‘थॉट्स ऑन पाकिस्तान’ को अपनी प्यारी पत्नी रमाबाई को समर्पित किया। उन्होंने अपनी पुस्तक में लिखा है कि “मामूली भीमा से डॉ. अंबेडकर बनाने का श्रेय रमाबाई को जाता है”।
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