“मन चंगा तो कठौती में गंगा” कहने वाले बनारस के महान संत रैदास ने आडंबर और जातिगत उत्पीड़न का जमकर किया था विरोध

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संत रैदास के समय में हर तरफ भेदभाव और भ्रष्टाचार फैला हुआ था, ऐसे में उन्होंने अपना जीवन सामाजिक एकता का प्रचार करने और समाज से भेदभाव को दूर करने में व्यतीत किया…

Saint Ravidas Jayanti Special : आज संत रविदास की जयंती है। आज 24 फरवरी शनिवार के दिन रविदास जी के जन्मदिवस को जयंती के रुप में मनाया जा रहा है। भारत के चर्चित संत रविदास को रैदास के नाम से भी जाना जाता है। संत रविदास जी का जन्म उत्तर प्रदेश के वाराणसी क्षेत्र में माघ पूर्णिमा को 1377 में हुआ था। इसलिए हर साल माघ पूर्णिमा के दिन संत रविदास जयंती मनाई जाती है।

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मोची परिवार में जन्म :

रविदास की माता जी का नाम कर्मा देवी और पिताजी का नाम संतोष दास था। संत रविदास का जन्म एक मोची परिवार में हुआ था और इनके पिता जूते बनाने का काम किया करते थे। महान संतों में से एक गुरु रविदास को महान संत, के अलावा दर्शनशास्त्री, कवि, समाज सुधारक और ईश्वर के अनुयायी के तौर पर जाना जाता है। संत रविदास जी ने मुहावरें और दोहें भी लिखे हैं। उनका एक मुहावरा है “मन चंगा तो कठौती में गंगा” आज भी काफी चर्चित है।

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भक्ति आंदोलन में योगदान:

संत रविदास जी ने भक्ति आंदोलन में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। संत रविदास ने अपना सारा जीवन समाज से जातिगत भेदभाव को दूर करने, समाज सुधार और समाज के कल्याण के लिए समर्पित कर दिया था। ऐसा कहा जाता है कि संत रविदास जी का जन्म ऐसे समय में हुआ था जब उत्तर भारत के कुछ क्षेत्रों पर मुगलों का राज हुआ करता था। उस समय हर तरफ भेदभाव और भ्रष्टाचार फैला हुआ था। ऐसे में उन्होंने अपना जीवन सामाजिक एकता का प्रचार करने और समाज से भेदभाव को दूर करने में व्यतीत किया।

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कविताओं के माध्यम से जनसंदेश :

संत रविदास जी ईश्वर की भक्ति में विश्वास करते थे और उन्होंने व्यक्तिगत आध्यात्मिक आंदोलन के लिए एकता को बढ़ावा दिया था। पंडित शारदानंद से संत रविदास ने शिक्षा प्राप्त की थी। उम्र बढ़ने के साथ साथ भक्ति के प्रति उनकी रुचि भी बढ़ती गई। संत रविदास जी अपनी कविताओं के माध्यम से भेदभाव दूर करने और सामाजिक एकता का संदेश भी देते थे। अपनी कविताओँ में जनसाधारण की ब्रजभाषा का इस्तेमाल करते थे। उनकी कविताओं में न केवल ब्रजभाषा बल्कि अवधि, ऊर्दू-फारसी, राजस्थानी, खड़ी बोली भाषा देखने को मिलती है। उनके चालीस पद सिखों के पवित्र ग्रंथ गुरुग्रंथ साहिब में सम्मिलित किए गए हैं।

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संत रविदास के प्रेरणादायक विचार :

• कभी भी अपने अंदर अभिमान को जन्म न दें। एक छोटी सी चींटी शक्कर के दानों को बीन सकती है, लेकिन एक विशालकाय हाथी ऐसा नहीं कर सकता।
• भगवान उस हृदय में वास करते हैं जिसके मन में किसी के प्रति बैर भाव नहीं है, कोई लालच या द्वेष नहीं है.
• कोई भी व्यक्ति छोटा या बड़ा अपने जन्म के कारण नहीं, बल्कि अपने कर्म के कारण होता है. व्यक्ति के कर्म ही उसे ऊंचा या नीचा बनाते हैं.
• हमें हमेशा कर्म करते रहना चाहिए और साथ-साथ मिलने वाले फल की भी आशा नहीं छोड़नी चाहिए, क्योंकि कर्म हमारा धर्म है और फल हमारा सौभाग्य
• मोह-माया में फंसा जीव भटकता रहता है, जबकि इस माया को बनाने वाला ही मुक्तिदाता है.
• जीव को यह भ्रम है कि यह संसार ही सत्य है किंतु जैसा वह समझ रहा है वैसा नहीं है, वास्तव में संसार असत्य है.
• ब्राह्मण मत पूजिए जो होवे गुणहीन, पूजिए चरण चंडाल के जो होवे गुण प्रवीन।
• मन चंगा तो कठौती में गंगा ।

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रविदास जयंती क्यों मनाई जाती है?

संत रविदास ने अपनी शिक्षा और उपदेशों से लोगों के जीवन को समृद्ध किया था। इसलिए हर साल उनके जन्मदिवस को जयंती के तौर पर मनाया जाता है। भारत में रविदास जी की जयंती के इस विशेष अवसर को मनाने के लिए विभिन्न देशों से भी लोग आते हैं। भक्त अनुष्ठानों को पूरा करने के लिए पवित्र नदी में डुबकी लगाते हैं। साथ ही कीर्तन-भजन का भी आयोजन किया जाता है। इस दिन रविदास जी के जीवन से जुड़ी घटनाओं को उनके शिष्य याद करते हैं और उससे प्रेरणा लेते हैं।

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