कौन थे जयपाल सिंह मुंडा जिनके नेतृत्व में ध्यानचंद ने खेली थी हॉकी की पारी?

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झारखंड के महानायक “मरांग गोमके” जयपाल सिंह मुंडा (1903-1970) ने आदिवासी अधिकारों, खेल और राजनीति में ऐतिहासिक योगदान दिया। ऑक्सफोर्ड में पढ़ाई के दौरान उन्होंने हॉकी में ‘ऑक्सफोर्ड ब्लू’ का खिताब जीता और 1928 के ओलंपिक में भारतीय हॉकी टीम की कप्तानी कर देश को पहला स्वर्ण पदक दिलाया। भारतीय सिविल सेवा छोड़ उन्होंने आदिवासी महासभा और झारखंड पार्टी के माध्यम से झारखंड राज्य की मांग को बल दिया। संविधान सभा के सदस्य और आदिवासी अधिकारों के प्रखर पैरोकार के रूप में उनकी भूमिका ऐतिहासिक रही। उनकी 121वीं जयंती पर झारखंड ने उन्हें भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित की।

3 जनवरी 1903 को झारखंड के खूंटी जिले के टकरा गांव में जन्मे जयपाल सिंह मुंडा, जिन्हें “मरांग गोमके” (महान नेता) के रूप में जाना जाता है, ने अपने संघर्ष और उपलब्धियों से इतिहास रचा। बचपन में प्रमोद पाहन नाम से विख्यात जयपाल सिंह ने रांची के सेंट पॉल स्कूल में अपनी प्रतिभा का परिचय दिया। उनकी असाधारण क्षमताओं को पहचानते हुए स्कूल के अंग्रेज प्रिंसिपल ने 1918 में उन्हें इंग्लैंड भेजा। वहां कैंटरबरी के सेंट ऑगस्टाइन कॉलेज और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के सेंट जॉन्स कॉलेज में पढ़ाई करते हुए उन्होंने अर्थशास्त्र में स्नातक की डिग्री हासिल की।

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भारतीय हॉकी को दिलाया पहला स्वर्ण

ऑक्सफोर्ड में पढ़ाई के दौरान जयपाल सिंह ने हॉकी में अपनी प्रतिभा का परचम लहराया। 1925 में उन्हें ‘ऑक्सफोर्ड ब्लू’ की उपाधि से नवाजा गया, जो किसी भी अंतरराष्ट्रीय हॉकी खिलाड़ी के लिए दुर्लभ सम्मान था। 1928 में उनकी कप्तानी में भारतीय हॉकी टीम ने एम्सटर्डम ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीता। उनकी नेतृत्व क्षमता और टीम रणनीति ने भारतीय हॉकी को पहली बार वैश्विक मंच पर खड़ा किया। इस स्वर्णिम यात्रा में हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद भी टीम का हिस्सा थे, जिन्होंने अपने अद्भुत खेल से दुनिया को चौंका दिया।

आदिवासी अधिकारों के लिए संघर्ष

हॉकी में स्वर्णिम सफलता के बाद जयपाल सिंह ने अपना जीवन आदिवासी समुदाय के उत्थान और उनके अधिकारों की लड़ाई को समर्पित किया। 1938 में उन्होंने आदिवासी महासभा का गठन किया और 1939 में इसकी अध्यक्षता संभाली। उन्होंने सुभाष चंद्र बोस से मिलकर झारखंड राज्य की मांग को बल दिया। 1946 में वे संविधान सभा के सदस्य बने और आदिवासी समुदाय के अधिकारों के लिए आवाज उठाई।

झारखंड पार्टी का गठन और राजनीतिक संघर्ष

1949 में आदिवासी महासभा को उन्होंने झारखंड पार्टी में परिवर्तित किया। 1952 के लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी मुख्य विपक्षी दल के रूप में उभरी। उनके नेतृत्व में झारखंड पार्टी ने पहले विधानसभा चुनावों में 32 सीटें जीतीं। हालांकि 1963 में उन्होंने पार्टी का कांग्रेस में विलय इस वादे पर किया कि झारखंड को अलग राज्य का दर्जा मिलेगा। यह सपना 2000 में जाकर साकार हुआ।

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121वीं जयंती पर श्रद्धांजलि

3 जनवरी 2025 को झारखंड ने अपने इस महानायक को उनकी 121वीं जयंती पर भावपूर्ण श्रद्धांजलि दी। खूंटी के टकरा गांव में केंद्रीय जनजातीय मंत्री अर्जुन मुंडा ने उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण किया और उनके योगदान को नमन किया। रांची स्थित जयपाल सिंह स्टेडियम में झारखंड आंदोलन के सैकड़ों कार्यकर्ता और समर्थक एकत्र हुए और उनकी प्रतिमा पर श्रद्धा सुमन अर्पित किए। झारखंड सरकार और जनता ने इस अवसर पर उनकी विरासत को याद करते हुए आदिवासी समुदाय के उत्थान के प्रति अपने संकल्प को दोहराया।

जयपाल सिंह मुंडा केवल एक नाम नहीं, बल्कि आदिवासी अधिकारों, खेल और राजनीति में अग्रणी भूमिका निभाने वाले महानायक थे। उनका जीवन संघर्ष, समर्पण और आदिवासियत की आवाज का प्रतीक है। उनकी विरासत झारखंड और पूरे भारत के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी रहेगी।

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