“इस शहर को ये हुआ क्या, कहीं राख है तो कहीं धुंआ धुंआ” ये बड़ी ही प्रसिद्ध लाइनें हैं। थिएटर्स में फ़िल्म दिखाने से पहले दर्शकों को धूम्रपान निषेध की चेतावनी ज़रूर दिखाई जाती है और उसी चेतावनी की शुरुआत इन प्रसिद्ध लाइनों से होती है। हालांकि इसे सुनने के बाद लोग 2 मिनट मेँ भूल जाते हैं और फिर किसी गली चोराहे पर अपनी ज़िंदगी को ताक पर रख कर सिगरेट से धुएं के छल्ले उड़ाते और तम्बाकू चबाते हुए मिल जाते हैं।
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लेकिन दक्षिण भारत में रहने वाले एक दलित व्यक्ति ने इन लाइनों के असल मकसद को न केवल समझा है बल्कि लोगों को तम्बाकू छोड़ने के लिए दो दशको से अकेले दम पर कैंपेनिंग भी कर रहें हैं। हम बात कर रहे हैं हैदराबाद में रहने वाले रघुनंदन मचाना की। रघुनंदन मचाना दलित समाज से आते हैं और तेलंगाना सरकार में खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग में प्रवर्तन उप तहसीलदार के पद पर काम कर रहें है। अपनी नौकरी के अलावा पूरे दिन के दो घंटे रघुनंदन लोगो को तंबाकु और धूम्रपान ना करने के लिए जागरूक करने में बिताते हैं।
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धूम्रपान करना या तंबाकु का सेवन करना सेहत के लिए कितना खतरनाक होता है यह समझाने का रधुनंनद एक अलग ही तरीका अपनाते है। वो लोगो को समझाते हैं कि जितना पैसा आप धूम्रपान या तंबाकु पर खर्च करते हैं अगर यही पैसा आप बच्चों के खिलौने लेने या पत्नी के लिए साड़ी खरीदने में खर्च करते हैं तो परिवार के साथ आपके रिश्ते बेहतर होंगे साथ ही आपकी सेहत पर भी कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ेगा।
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अगर आप ये लेख बहुत ध्यान से पढ़ रहे है तो आपके मन में एक सावल ये आ सकता है कि ये बातें कितनी फिल्मी लग रही है। लेकिन आपको बता दूं कि फिल्में भी तो समाज का आईना ही है जो समाज में होता है वहीं आपको किसी ना किसी रूप में फिल्मों में देखने के लिए मिल जाता है। बहरहाल फिल्मों की बात से आगे बढ़ते हैं और रघुनंदन मचाना की बात करते हैं।
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दो दशकों से लोगों को कर रहें हैं जागरूक :
रघुनंदन मचाना 46 साल के हैं और वो मूल रूप से मेडचल मल्काजगिरी के केशवराम के रहने वाले हैं। रघुनंदन तेलंगाना सरकार में खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग में प्रवर्तन उप तहसीलदार के पद पर काम कर रहें है। लेकिन रघुनंदन एक समाजिक कार्यकर्ता के तौर पर दो दशकों से धूम्रपान और तंबाकु का सेवन ना करने के लिए लोगों को जागरूक भी कर रहें है। रघुनंदन सिर्फ 5 सालों में करीब 50 हज़ार लोगों से मिलकर उन्हें धूम्रपान और तंबाकु का सेवन ना करने के लिए मना चुकें हैं। साथ ही 500 गांवों का दौरा कर चुकें हैं। इस दौरान उन्होंने साइकिल से 5,000 किमी की यात्रा भी की।
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लोगों को क्यों कर रहे हैं जागरूक :
धूम्रपान हो या तंबाकु का सेवन ये दोनों ही इंसान की जान के दुश्मन है। WHO (world Health organization) और तमाम देशों की सरकारें भी इसके लेकर कई कानून बना चुकी है। भारत में भी सिगरेट और अन्य तंबाकू उत्पाद अधिनियम, 2003 (COTPA) लागू है। लेकिन रघुनंदन की जिंदगी में कुछ ऐसा हुआ जिसके बाद उन्होंने कमस खा ली की अपने सामने किसी को धूम्रपान या तंबाकु के कारण मरते हुए नहीं देखेंगे। एक मीडिया वेबसाइट से बात करते हुए उन्होंने बताया था कि,
“जब वह जूनियर कॉलेज में दाखिला ले रहे थे तब उनकी मुलाकात दीक्षिततुत्लु से हुई। दीक्षिततुत्लु ने रघुनंदन की कॉलेज फीस देने में मदद की जिसके बाद रघुनंदन और दीक्षिततुत्लु अच्छे दोस्त बन गए। लेकिन दीक्षिततुत्लु धूम्रपान और तंबाकू चबाने का आदी था। कुछ समय बाद जब उसकी तबीयत बिगड़ी और उसे एहसास हुआ कि मौत करीब है, तब अपनी दोस्ती के बदले दीक्षिततुत्लु ने रघुनंदन से वादा लिया कि वो तंबाकू उत्पादों के उपयोग के दुष्प्रभावों के बारे में लोगो में जागरूकता फैलाएं।”
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“कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है” :
रघुनंदन कहते है कि कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है और इसी स्प्रिट के साथ वो लोगों को धूम्रपान औऱ तंबाकु का सेवन ना करने के लिए जागरूक करते हैं। इतना ही नहीं वो लोगों को धूम्रपान औऱ तंबाकु छोड़ने के बदले खाना, पैसा और उनके बच्चों की पढ़ाई का खर्चा उठाने में भी मदद करते है। उनकी जिंदगी में ऐसे बहुत से किस्से हैं जब उन्होंने लोगो को धूम्रपान औऱ तंबाकु छोड़ने की एवज़ में किसी ना किसी तरीके से मदद की है।
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रघुनंदन के इस अभियान की कुछ प्रेरणादायक घटनाएँ
पहला इंसीडेंट यदाद्री जिले का है। जहाँ रघुनंदन को बस में 50,000 रुपये के साथ एक बटुआ मिला। बटुआ मोटकुर गांव के मरैया नामक किसान का था। रघुनंदन ने बटुआ वापस करने के लिए किसान के सामने शर्तें रखी. रघुनंदन ने किसान से कहा कि उसे धूम्रपान छोड़ना होगा। रधुनंदन की बात मान कर किसान ने धूम्रपान छोड़ दिया इससे मरैया की पत्नी और बच्चे बहुत खुश हुए।
2021 में एक ट्रैक्टर चालक ट्रैक्टर चलाते वक्त धूम्रपान कर रहा था। इसी दौरान वो वाहन से नियंत्रण खो बैठा और ट्रैक्टर के साथ मुसी नहर में जा गिरा। इस हादसे में 12 लोगों की मौत हुई। यह घटना भोंगिर के लोगों को किसी त्रासदी की याद दिलाती है लेकिन रघुनंदन ने वहां के लोगों को इससे सबक लेने के लिए कहा। जिसके बाद से वह जब भी बस स्टैंड या बसों में धूम्रपान करने वाले या तंबाकू के आदी लोगों को देखते है, तो उन्हें धूम्रपान छोड़ने के लिए मनाने की कोशिश करते है।
रघुनंदन ने एक बार नारायणपेट के वेंकटेश को उदास देखा। वेंकटेश की पत्नी तंबाकू की लत के चलते उन्हें छोड़कर चली गई थी। रघुनंदन ने वेंकटेश की पत्नी को फोन कर वादा किया कि वह धूम्रपान छोड़ देंगे। तब से यह जोड़ी खुशी-खुशी रह रही है।
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दक्षिण का वन मैन आर्मी : रधुनंदन मचाना
बता दें कि नेशनल रिसोर्स सेंटर फॉर टोबैको कंट्रोल (NRCTC) पोस्टग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (PGIMER) ने लोगों को तंबाकू की लत से बचाने के लिए रघुनंदन के प्रयासों की सराहना की है। इसके अलावा रघुनंदन को उनके प्रयासों के लिए प्रधान मंत्री कार्यालय, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय और तंबाकू नियंत्रण के लिए संसाधन केंद्र जैसी विभिन्न तंबाकू नियंत्रण एजेंसियों ने भी सराहा है।
इतना ही नहीं रिसोर्स सेंटर फॉर टोबैको कंट्रोल (आरसीटीसीपीजीआई) ने एक पत्र में भारत में तंबाकू नियंत्रण के लिए काम करने वाले रघुनंदन को वन मैन आर्मी बताया। वहीं USA की पल्मोनरी मेडिकल जर्नल द्वारा “शाबाश – रघुनंदन” शिर्षक के साथ रघुनंदन के ईमानदार प्रयासों और सार्वजनिक सेवा के बारे में एक विशेष लेख भी प्रकाशित किया जा चुका है।
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हालांकि दलित समाज से आने वाले रघुनंदन पर WHO की नज़र अभी तक नहीं पड़ी है। लेकिन भारत में अकेले दम पर तंबाकु और धूम्रपान के खिलाफ़ आंदोलन चलाने वाले रघुनंदन मचाना सबके लिए एक प्रेरणा के स्रोत हैं।
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