पटना हाईकोर्ट ने जातिय गणना वाले फैसले को हरि झंडी दिखा कर बिहार की नीतीश सरकार को बड़ी राहत दे दी। कोर्ट के इस फैसले का बिहार सरकार और बिहार की जनता ने खुलकर स्वागत किया।
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बिहार सरकार के लिए आसान नहीं थी राह :
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भाजपा के साथ रहते हुए ही जातिगत जनगणना कराने का ऐलान किया था। नीतीश कुमार की सरकार ने 18 फरवरी 2019 और फिर 27 फरवरी 2020 को जातीय जनगणना का प्रस्ताव बिहार विधानसभा और विधान परिषद में पास कराया था। बिहार में जातीय गणना का प्रथम चरण 7 से 22 जनवरी तक हुआ। दूसरे चरण की शुरुआत 15 अप्रैल से की गई, जो 15 मई, 2023 तक खत्म करने का लक्ष्य था।
पटना हाई कोर्ट में इसके खिलाफ एक याचिका दायर की गई जिसके बाद 4 मई को

पटना हाईकोर्ट ने जाति जगणना पर अंतरिम रोक लगा दी थी। जिस पर पटना हाई कोर्ट ने पांच दिनों तक विस्तृत दलीलें सुनने के बाद, 7 जुलाई को राज्य में जाति-आधारित सर्वेक्षण कराने के बिहार सरकार के फैसले को बरकरार रखा है। साथ ही हाई कोर्ट ने चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज कर फैसला सरकार के पक्ष में सुनाया। हालांकि इस पर 80 प्रतिशत कार्य पूरा हो चुका है।
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क्या थी याचिका ?
याचिकाकर्ता ने याचिका में कहा था कि बिहार सरकार को यह सर्वे कराने का कोई अधिकार नहीं है। ऐसा करके सरकार संविधान का उल्लंघन कर रही है। जाति गणना में लोगों की जाति के साथ-साथ उनके काम और उनकी योग्यता का भी ब्योरा लिया जा रहा है। यह निजता के अधिकार का उल्लंघन है। जाति गणना पर खर्च किये गये 500 करोड़ भी टैक्स के पैसे की बर्बादी है।
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जाति गणना पर सरकार के वकील
हाईकोर्ट में सरकार का पक्ष महाधिवक्ता पीके शाही रख रहे थे हाई कोर्ट की रोक के बाद राज्य सरकार ने पहले हाई कोर्ट में समीक्षा याचिका दायर की और फिर सुप्रीम कोर्ट का रुख किया, लेकिन कोई राहत नहीं मिली। केंद्र सरकार के इनकार के बाद बिहार सरकार खुद बिहार में जाति आधारित जनगणना करा रही थी।

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याचिकाकर्ता के वकील ने क्या दलील दी :
याचिकाकर्ता के वकील दीनू कुमार ने कहा कि, अब हम सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे। बिहार सरकार को जातीय जनगणना कराने का अधिकार नहीं है। गौरतलब है कि जाति आधारित गणना पर रोक लगाने की मांग को लेकर कुल छह याचिकाएं दायर की गईं थीं और पटना हाई कोर्ट ने सभी आवेदनों को खारिज कर दिया है।
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क्या है जाति गणना ?
जातीय जनगणना जातियों कि गिनती को कहा जाता है। जिसमें जाति के आधार पर आबादी की गिनती की जाती है। जिसके द्वारा सरकार वहां के जातियों के आँकड़े व उनकी आर्थिक स्थति जानने कि कोशिश करती है। ताकि उनके लिए विकास कार्य व नई योजनाएं बनाई जा सके और उनकी आर्थिक स्थति बेहतर की जा सके। जाति गणना के द्वारा यह भा पता लगाया जाता है कि किस वंचित समाज की आबादी ज्यादा है और सबसे समृद्ध है । जाति, धर्म, शिक्षा और आय का भी पता चलता है। उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति का पता चल पाता है।
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जातीय जनगणना के बाद क्या आरक्षण बढ़ेगा?
बिहार सरकार समेंत देशभर में दलितों, पिछड़ो और आदिवासियों को लेकर सियासत हमेशा से चुनौती पूर्ण रहीं है। देश की 85 प्रतिशत की आबादी पर इनका हक है। यह किसी भी सरकार को बना व हटा सकतें है। ऐसे में हर राजनीतिक दल इन्हें अपने पाले में लाने की सोचता है जिसमें आरक्षण एक अहम मुद्दा होता है। इसी नजरिए से देखा जाए तो बिहार की नीतीश-यादव सरकार जातिवार जनगणना के बाद आरक्षण को लेकर बढ़ा फैसला ले सकती है। जिसका असर देश के अन्य सरकार व राज्यों में भी देखने को मिल सकता है।
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क्योंकि बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री रहें लालू प्रसाद यादव लगातार कहते रहे हैं कि समाज में जिसकी जितनी आबादी उसकी उतनी हिस्सेदारी होनी चाहिए। वहीं यह कहा जा रहा है कि डाटा सामने आने के बाद आरक्षण में बदलाव की भी मांग को नये सिरे से उठा सकते हैं। वह मांग कर सकते हैं कि आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट की ओर से लगाए गए कैप को हटाया जाए और जिसकी जितनी आबादी उसकी उतनी हिस्सेदारी के फॉर्म्यूले को लागू किया जाए। हालांकि यह सिर्फ एक अनुमान लगाया जा रहा है।
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