जीवन परिचय-
क्रांतिकारी नाना पाटील का जन्म 3 अगस्त 1900 को येडेमाचिन्द्रा महाराष्ट्र में हुआ था। उनका पूरा नाम नाना रामचन्द्र पिसल था। नाना पाटील जिन्हें क्रांतिसिंह के नाम से भी जाना जाता था। 6 दिसंबर 1976 को उनका निधन हो गया था। पाटील भारतीय स्वतंत्रता कार्यकर्ता, स्वतंत्रता सेनानी और मराठवाड़ा क्षेत्र के बीड जिले का प्रतिनिधित्व करने वाले भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के संसद सदस्य थे। वह लोगों के लिए एक प्रेरणास्रोत भी थे। वे पश्चिम महाराष्ट्र के येडेमाचिन्द्र सांगली जिले में गठित क्रांतिकारी प्रति-सरकार के संस्थापक भी थे । नाना पाटील ने सतारा जिले में एक समानांतर सरकार की स्थापना भी की थी।
दलितो का उत्थान-
नाना पाटील ने 1919 में दलित वर्गों के विकास, अंध विश्वास और हानिकारक परंपराओं के खिलाफ जागरूकता पैदा करने के लिए प्रार्थना समाज के साथ अपना सामाजिक कार्य शुरू किया था। इसमें उन्होंने प्रार्थना समाज और उससे जुड़े सत्यशोधक समाज के लिए काम करते हुए दस साल तक का समय व्यतीत किया। इस अवधि के दौरान उन्होंने ‘समाज-विवाह’ (कम बजट विवाह) और भैया शिक्षा जैसी कल्याणकारी पहल शुरू कीं थी।
जातिवाद के थे खिलाफ-
पाटील जातिवाद के कट्टर ख़िलाफ़ थे। उन्होंने जीवन भर गरीबों और किसानों के अधिकार के लिए संघर्ष किया। उन्होंने उन्हें पारंपरिक विवाह समारोह और त्योहारों में होने वाले अतिरिक्त खर्चों से बचना सिखाया। साथ ही उन्होंने ऋण लेने से बचने की भी सलाह दी और सामाजिक विकास के लिए शिक्षा के महत्व पर जोर दिया था।
राजनीतिक सफर-
नाना पाटील ने अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से की थी। साथ ही उन्होंने शंकरराव मोरे, केशवराव जेधे, भाऊसाहेब राउत, माधवराव बागल के साथ मिलकर उन्होंने 1948 को पीजेंट्स एंड वर्कर्स पार्टी ऑफ इंडिया की सदस्यता ली। जिसके बाद उन्हें 1957 में सतारा निर्वाचन क्षेत्र से और 1967 में बीड निर्वाचन क्षेत्र से लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी से टिकट मिला था और इन चुनावों में वे सफल भी हुए।
ब्रिटिश काल में गए जेल-
बता दें कि इसके पूर्व ब्रिटिश काल में नाना पाटील को जेल में भी डाला गया था। वे हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के संस्थापक सदस्य रहें थे जोकि 1929 और 1932 के बीच भूमिगत हो गए थे। 1932 से 1942 तक ब्रिटिश राज के साथ संघर्ष के दौरान पाटील को आठ या नौ बार जेल में डाल दिया गया था। मुख्य रूप से वह सांगली जिले के तासगांव , खानापुर , वालवा और दक्षिण कराड तालुका में सक्रिय थे। 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान 44 महीने के लिए दूसरी बार जेल गये। वहीं कुछ महीनों तक वे धनकवाड़ी , पुरंधर गांव में रहे, और तत्कालीन पाटील (ग्राम प्रधान), शामराव ताकावले से मदद मिली। पाटील का तरीका औपनिवेशिक सरकार पर सीधा हमला करने वाला था और उनका ये तरीका जिले में व्यापक रूप से स्वीकार भी किया गया था।
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Woh Prati sarkar chalate the aur unke area me aaye toh British logo ke pairo me kil se patra thokte the. Kisi ki himmat nahi hoti thi unke area me jaane ki