UP के सोनभद्र में जमीन की लड़ाई लड़ रहे 200 आदिवासी पहुंचे कोर्ट, सवर्णों ने जबरन कब्जायी है जमीन

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आदिवासी समाज अपने पूर्वजों के जमाने से ही इस जमीन पर खेती बाड़ी करता आ रहा है। उन लोगों को पता ही नहीं चला कि उनकी जमीन किसी दूसरे के नाम पर दर्ज है। आए दिन वो लोग यहां आकर इन्हें परेशान करते हैं। इस बारे में कई बार प्रशासन को अवगत कराया जा चुका है, लेकिन कोई ठोस कार्यवाही नहीं हुई है…

सुषमा तोमर की रिपोर्ट

Sonbhadra news : हमारे देश में माना जाता है कि आदिवासी भारत के मूलनिवासी हैं और जल, जंगल, जमीन के असली मालिक भी, लेकिन दुखद बात ये है कि भारत की आज़ादी के 75 सालों बाद भी अपनी मूलभूत सुविधाओं के लिए आदिवासी समाज को लड़ाई लड़नी पड़ रही है। ऐसा ही एक मामला उत्तर प्रदेश के सोनभद्र स्थित राबर्ट्सगंज सदर तहसील के मऊ कलां में सामने आया है। यहां ठाकुर जाति के कुछ लोगों पर दबंगई से बड़ी संख्या में आदिवासी समाज के लोगों की जमीन चोरी-छिपे अपने नाम करवाने का मामला सामने आया है।

आदिवासी समाज जो सालों से उस जमीन पर रह रहा है, जिनके पुरखों ने अपना पूरा जीवन उसी जमीन पर बिता दिया और भविष्य की कमाई के तौर पर अपने बच्चों को वहीं जमीन सौंप कर चले गए, आज उसी जमीन के लिए सोनभद्र के आदिवासी सवर्णों के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं। उन्हें डर है कि कभी भी दबंग आकर उनसे जमीन खाली करवा देंगे।

40 बीघा जमीन की लड़ाई
सोनभद्र के मऊ कलां गांव में 200 आदिवासी अपनी 30 से 40 बीघा जमीन के लिए शासन से प्रशासन तक गुहार लगा चुके हैं। कई बार जनप्रतिनिधियों के चक्कर भी काटे, लेकिन उनकी गुहार ना तो सुनी गयी और ना ही जमीन पर अवैध कब्जा करने वालों पर कोई कार्यवाही की गयी। मऊ कलां गांव में ये 200 आदिवासी सालों से रह रहे हैं। जहां की जमीनों पर खेती कर उन्होंने अपना गुजर बसर किया है, लेकिन एक दिन चुर्क के ठाकुर उनके पास आए और कहा कि ये 40 बीघा जमीन उनकी है।

दैनिक भास्कर में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक मऊ कलां के पूर्व प्रधान दशरथ कहते हैं, आदिवासी समाज अपने पूर्वजों के जमाने से ही इस जमीन पर खेती बाड़ी करता आ रहा है। उन लोगों को पता ही नहीं चला कि उनकी जमीन किसी दूसरे के नाम पर दर्ज है। आए दिन वो लोग यहां आकर इन्हें परेशान करते हैं। इस बारे में कई बार प्रशासन को अवगत कराया जा चुका है, लेकिन कोई ठोस कार्यवाही नहीं हुई है।

न्यायालय का लिया सहारा
अपनी जमीन को बचाने के लिए 200 आदिवासियों ने प्रशासन और जनप्रतिनिधियों के पास गुहार लगाने के बाद अब न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है। उच्च न्यायालय इलाहाबाद में पिटिशन याचिका दाखिल करने वाले अधिवक्ता ने बताया कि आदिवासी भयभीत होकर अपने ग्राम प्रधान के माध्यम से इसका एक शिकायत पत्र डीएम को देकर न्याय की गुहार लगाई थी, लेकिन उनकी तरफ से कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। अब डीएम और सरकार द्वारा इस मामले में कोई सुनवाई नहीं करने के बाद आदिवासियों ने उच्च न्यायालय इलाहाबाद में एक पिटीशन याचिका दाखिल की है।

खतौनी में छेड़छाड़ कर जमीन पर किया कब्जा

उच्च न्यायालय के अधिवक्ता उदय प्रकाश देव पांडे के मुताबिक आदिवासी समाज के लोग उनके पास आए, अपनी परेशानी उन्हें बतायी। उन्होंने कहा कि, आदिवासी समाज के लोगों का कहना है कि साल 1972 की खतौनी में छेड़छाड़ कर उसमें अपना नाम दर्ज करवा कर हमारी जमीनों पर कब्ज़ा किया गया है। जब वह लोग पहली बार यहाँ पैमाइश के लिए आए तो आदिवासी समाज के किसी ने भी उन्हें नहीं पहचाना। उन्होंने आकर कहा कि ये हमारी जमीन है , इसे जल्द से जल्द खाली करो।

आदिवासियों का कहना है कि सर्वे सेटेलमेंट में राजस्व कर्मियों की मिलीभगत से साल 1972 में खतौनी में हेरफेर की गयी और रिकॉर्ड में बाहरी लोगों के नाम शामिल कर दिए गए। ऐसे में ठाकुरों के दबंगई के कारण आदिवासियों और दंबगों के बीच संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो गयी है। ऐसे में उन्हें सोनभद्र में दूसरा उम्भा कांड होने का डर सता रहा है।

क्या था उम्भा कांड

साल 2019 में सोनभद्र के उम्भा में  सैकड़ों बीघा जमीन पर कब्जे के लिए 11 आदिवासियों की गोली मारकर निर्मम हत्या कर दी गयी थी। इस घटना में 19 आदिवासी गंभीर रूप से घायल भी हुए थे। आदिवासियों का ये नरसंहार जमीन पर कब्जे के लिए किया गया था। आदिवासियों के इस नरसंहार के लिए ग्राम प्रधान यज्ञदत्त और उसके साथियों को गिरफ्तार किया गया था। दी क्विंट की रिपोर्ट के  मुताबिक 2019 में हुए इस उम्भा कांड में पीड़ितो को जो वादे किए गए थे सरकार ने उन्हें पूरा नहीं किया। 10 बीघा जमीन देने की बात हुई थी लेकिन सिर्फ साढ़े 7 बीघा जमीन दी गयी। उम्भा के पीड़ित आज भी जब उस खौफनाक मंजर को याद करते हैं तो सिहर उठते हैं।

क्या होती है खतौनी जिसके बूते सवर्णों ने किया आदिवासियों की जमीन पर अवैध कब्ज़ा :

यूपी भूमि डॉट कॉम के मुताबिक सरल भाषा में समझा जाए तो  किसी गांव से संबंधित उस गांव की भूमि की जानकारी या व्यक्ति विशेष के द्वारा भूमि से संबंधित कागजातों के बारे में जानकारी प्राप्त होना खतौनी कहलाता है। खतौनी को राजस्व शब्दावली में बी 1 तथा किश्तबंदी के नाम से जानते हैं। खतौनी का मुख्य उपयोग हम सभी पर राजस्व वसूली या लगान के लिए किया जाता हैं। आदिवासियों का आरोप हैं कि 1972 की खतौनी में फेर बदल करवाकर उनकी जमीन पर कब्ज़ा किया गया है। अब उन्हें हर वक्त ये डर सताता है कि कभी भी उनसे जमीन खाली करने के लिए कह दिया जाएगा।

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