बाबा साहेब आंबेडकर भारतीय संविधान के रचयिता हैं जिन्हें भारत का पहला विधि मंत्री भी कहा जाता है। डॉक्टर बाब साहेब आंबेडकर ने 1951 में आज ही के दिन 28 अक्टूबर को जलंधर के डीएवी कॉलेज में “भारत में संसदीय लोकतंत्र के भविष्य” पर एक भाषण दिया था । उनका कहना था कि सरकार की संसदीय प्रणाली में मुख्य तीन बातें शामिल होती हैं।
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बाबा साहेब की संसदीय प्रणाली पर मुख्य तीन बातें :
पहला, शासन का अधिकार वंशानुगत नही:-
डॉक्टर आंबेडकर ने कहा कि शासन वंशानुगत पर आधारित नही होना चाहिए। किसी भी व्यक्ति को यह अधिकार नहीं है कि वह वंशानुगत शासन का दावा करें। उनका कहना था कि अगर कोई व्यक्ति शासन करना चाहता है तो उस व्यक्ति का समय समय पर लोगों के द्वारा चुनाव किया जाना चाहिए। सरकार की संसदीय प्रणाली वंशानुगत शासन को स्वीकार नहीं करती है।
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दूसरा, कोई भी व्यक्ति विशेष सत्ता या शासन का प्रतीक नहीं होता है:-
उनका कहना था कि कोई भी व्यक्ति यह अनुमान नहीं लगा सकता कि वह कानून जानता है, सरकार चला सकता है। कानून लोगों द्वारा चुने हुए संसद में उपस्थित प्रतिनिधियों के द्वारा बनाए जाते हैं। यह वो लोग हैं जो उन लोगों को सलाह देते हैं जिनके नाम पर कानून घोषित होते हैं।
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डॉक्टर आंबेडकर ने राजशाही और लोकतंत्र दोनों सरकार प्रणाली में अंतर भी बताया है। राजशाही के बारे में उनका कहना था कि इसमें लोगों के मामलों को केवल राजा के नाम और उनके अधिकार के तहत चलाया जाता है। जबकि लोकतंत्र में लोगों के चुने हुए प्रतिनिधियों के नाम पर देश की सरकार चलाई जाती है।
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तीसरा, निर्वाचित प्रतिनिधियों पर जनता का विशवास:-
तीसरा और अंत में उनका कहना था कि संसदीय लोकतंत्र का अर्थ हम ‘एक व्यक्ति, एक वोट’ से लगाते हैं। सरकार की संसदीय प्रणाली का अर्थ है कि निर्धारित अवधि में चुनाव करना है। उन्होंने 28 अक्टूबर को जलंधर के डीएवी कॉलेज में भाषण देते हुए ब्रिटेन का उदाहरण दिया उनका कहना था कि ब्रिटेन में संसद के चुनाव हर 7 वर्ष में होते थे। जिसकी वजह से लोगों ने वहां पर आंदोलन किया क्योंकि लोगों की मांग थी कि यहां वार्षिक चुनाव हो।
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ब्रिटेन में हुए इस आंदोलन का मकसद अच्छा था यदि वहां वार्षिक चुनाव होता तो लोगों के हित में अच्छा होता लेकिन यह संभव नहीं था क्योंकि संसदीय चुनाव काफी खर्चीलें होते हैं। इसलिए किसी तरह का समझौता किया गया और 5 साल की अवधि को चुनाव के लिए सही अवधि माना गया था
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