राजस्थान : 2023 के विधानसभा चुनावों में किस ख़ेमे में जाएगा दलित और आदिवासी वोट ??

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जानिए राजस्थान के आगामी विधानसभा चुनावों के लिए सभी पार्टियां तैयारी में लगी हुई हैं। प्रदेश में ज्यादातर पार्टियों के केंद्र में दलित और आदिवासी वोट बैंक है। एक वक्त था जब अनुसूचित जाति (SC) अनुसूचित जनजाति (ST) वोट बैंक कांग्रेस पार्टी के खेमें में होता था। लेकिन भाजपा ने धीरे-धीरे इस वोट बैंक को अपनी तरफ कर लिया था।

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अब कांग्रेस पार्टी चुनावी रण में उतरने के लिए तैयारी में हैं। सभी पार्टियों की नज़र दलित,आदिवासी वोट बैंक पर टिकी है। क्योंकि प्रदेश में किसी भी पार्टी की सरकार बनाने में दलित, आदिवासी मतदाताओं की सबसे बड़ी भूमिका होती है। मीडिया के अनुसार ऐसा भी कहा जा रहा है कि कांग्रेस पार्टी ने एक बड़ा वोट बैंक हासिल करने के लिए मिशन-59 भी लॉन्च किया है।

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मिशन-59 क्या है ?

मिशन-59 के तहत कांग्रेस पार्टी अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) की रिज़र्व सीटों को मज़बूत करने का काम करेगी। ऐसी संभावना भी है कि राजस्थान विधानसभा चुनाव में इन सीटों पर कांग्रेस पार्टी नए चेहरों को भी अवसर दे सकती है।

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राजस्थान में दलित, आदिवासी वोट बैंक:

राजस्थान में कुल 200 विधानसभा सीटों में से 33 सीटें अनुसूचित जाति (SC) और 25 सीटें अनुसूचित जनजाति (ST) और 142 समान्य वर्ग (GEN) की हैं।

 

ASHOK GEHLOT, CHIEF MINISTER OF RAJASTHAN

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दूसरी ओर राजस्थान में 17 फीसदी दलितों और आदिवासी समुदाय की 13.47 फीसदी संख्या है। इन आंकड़ो को देखते हुए इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि पार्टियों के लिए आदिवासी, दलित वोट बैंक कितना ज़रुरी है।

पिछलें चुनावों में कांग्रेस,भाजपा का प्रदर्शन:

2018 के विधानसभा चुनावों की बात करें तो 59 आरक्षित सीटों में से कांग्रेस को 38 विधायकों पर जीत हासिल हुई थी। वहीं दूसरा तरफ भाजपा को 59 सीटों में से 21 विधायकों का समर्थन प्राप्त हुआ था। पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को भाजपा से ज्यादा सीटें मिली थी जिसकी वज़ह से भाजपा को हार का सामना करना पड़ा था।

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जबकि 2013 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को अनुसूचित जाति (SC) की 32 सीटें मिली थी। जबकि कांग्रेस को एक भी सीट पर जीत नहीं मिली थी। दूसरी तरफ अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए आरक्षित 25 सीटों में से भाजपा ने 18 और कांग्रेस ने 4 सीटें जीती थीं। मात्र 4 सीटों पर ही सिमट जाने के कारण कांग्रेस 2013 में 200 में से केवल 21 सीटें ही जीत पाई थी। जबकि भाजपा ने 50 सीटें जीतकर बंपर बहुमत से सरकार बना ली थी।

पिछलें चुनाव में BSP का प्रदर्शन:

 

BSP ने 1990 में पहली बार राजस्थान में विधानसभा चुनाव लड़ा था। लेकिन BSP को जीत हासिल नहीं हुई थीं। BSP को 1998 में राजस्थान विधानसभा चुनाव में जीत हासिल हुई थीँ। इस चुनाव में BSP ने 108 विधानसभा सीटों पर अपने प्रत्याशी को चुनावी मैदान में उतारा था।2008 में कांग्रेस को 96 और BJP को 78 सीटों पर जीत मिली थी। लेकिन कांग्रेस को बहुमत के लिए 5 विधायकों की जरूरत थी। इसलिए BSP के 6 विधायकों को कांग्रेस में शामिल कर लिया गया था और BSP देखती रह गई थी।

Mayawati to go solo for state elections, accuses Congress for its alliance with casteists-Telangana Today
BSP SUPREMO, MAYAWATI

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2018 के ऱाजस्थान विधानसभा चुनाव में भी BSP को 6 सीटों पर जीत मिली थी। लेकिन बाद में बसपा के सभी 6 विधायक कांग्रेस में शामिल हो गए थे। इसी वज़ह से BSP प्रदेश में कमोवेश गायब हो गई थी।

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2023 में BSP की रणनीति:

अपने पिछलें चुनावों से सबक लेते हुए इस बार राजस्थान विधानसभा चुनावों के लिए BSP ने अपनी पूरी रणनीति तैयार कर ली है। ऐसा भी कहा जा रहा है कि BSP इस बार 60 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ेंगी।

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क्या कहती है ईटी की रिपोर्ट?

“ईटी की रिपोर्ट” के अनुसार, BSP ने 60 सीटों का चयन भी कर लिया है जहां वह लड़ना चाहती हैं। रिपोर्ट में यह भी कहा जा रहा है कि राजस्थान के अध्यक्ष भगवान सिंह ने कहा है कि,

“हम राजस्थान की सभी 200 विधानसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेंगे।, हमने 60 निर्वाचन क्षेत्रों की पहचान की है जहां हमने पिछले पांच वर्षों में पार्टी को मजबूत करने का काम किया है और यहां हमारा वोट बैंक अच्छा है। हमारा उद्देश्य चुनाव के बाद शक्ति संतुलन बनाना है। पार्टी ने अब तक 10 विधानसभा सीटों के लिए अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है।”

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BSP की संकल्प यात्रा:

राजस्थान विधानसभा चुनाव के लिए BSP सुप्रीमों मायावती के भतीजे और पार्टी के राष्ट्रीय समन्वयक आकाश ने भरतपुर, धौलपुर, गंगापुर, करौली, दौसा, अलवर, सीकर, झुंझुनू, चूरू, हनुमाननगर, बीकानेर और जोधपुर को कवर करते हुए ‘संकल्प यात्रा’ निकाली थी।

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15 दिन की इस यात्रा में 144 सीटों को कवर करते हुए 100 बैठकें की गई थीं। पार्टी का लक्ष्य दलित,आदिवासी वोट बैंक हासिल करना है। पिछलें चुनावों में भी दलित आदिवासी वोट बैंक ने अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। ऐसे में पार्टियों की नज़र इस वोट बैंक पर टिकी है।

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