एक कहावत है कि “कौन कहता है आसमान में सुराख़ नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों।“इस कहावत की जीती जागती मिसाल है वंदना कटारिया। आज वह 300 अंतर्राष्ट्रीय मैच खेलने वाली पहली भारतीय महिला हॉकी खिलाड़ी बन गई हैं। वंदना कटारिया के लिए यहां तक पहुँचना आसान नहीं था। उनके जीवन में काफी संघर्ष रहा इसके बाद भी वह रुकी नहीं आगे बढ़ती गईं। तो आइए वंदना कटारिया के जीवन और संघर्ष के बारें में विस्तार से जानते हैं।
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संघर्षो से भरा रहा जीवन:
हरिद्वार की रहने वाली वंदना कटारिया दलित परिवार से आती हैं। वह बचपन से ही हॉकी खेल के प्रति काफी जुनूनी रहीं हैं। आज वंदना कटारिया “300 अंतर्राष्ट्रीय मैच खेलने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी” के नाम से जानी जाती हैं। यह एक ऐसा मुकाम है जिसे हासिल करना हर खिलाड़ी का सपना होता है। लेकिन यहां तक पहुँचना वंदना कटारिया के लिए आसान नहीं था। उनकी मेहनत की कहानी संघर्षो से भरी रही है। वंदना कटारिया गरीब परिवार से थी पैसों की तंगी की वज़ह से ह़ॉकी स्टीक,जूतों के लिए उन्हें काफी संघर्ष करना पड़ता था।
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रुढ़ीवादी धारणाओं का किया सामना :
वंदना कटारिया के पड़ोसी यहां तक कि उनके परिवार के कुछ लोग भी उन्हें हॉकी खेलने से मना करते थे। उनकी दादी भी चाहता थी कि वह अन्य लड़कियों की तरह घर के काम करें।रुढ़ीवादी धारणाएं जहां एक लड़की को केवल रसोईघर तक सीमित करना बेहतर समझा जाता है जैसी रुढ़ीवादी धारणाओं को तोड़ते हुए वंदना कटारिया आगे बढ़ती गईं। लेकिन वंदना के पिता नाहर सिंह जो पेशे से एक पहलवान थे। उनके पिता ने रुढ़ीवादी धारणाओं की परवाह न करते हुए अपनी बेटी के इस फैसले का समर्थन किया और उसके इस सपने में उसका सहयोग भी किया।
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पिता का सहयोग मिला:
पिता के सहयोग के बाद वंदना कटारिया ने हॉकी खेलना शुरु कर दिया था। वह सुबह जल्दी उठकर अभ्यास के लिए भी जाया करती थीं। लेकिन उन्हें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता था क्योंकि उनके पास ट्रेनिंग के लिए उचित उपकरण नहीं होते थे। इसके बावजूद भी इसकी परवाह न करते हुए वह अपने कौशल को निखारने के लिए पेड़ की शाखाओं के साथ अभ्यास किया करती थीं। लेकिन वंदना कटारिया के जीवन में एक वक्त वो भी आया था जब उन्होंने अपने पिता को पैसों के लिए संघर्ष करते देखा था। उस दौरान वंदना कटारिया ने अपने इस सपने को तोड़ने का निर्णय ले लिया।
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कोच का मिला सहयोग :
लेकिन उनकी मुलाकत कोच “प्रदीप चिन्योती” से हुईं। प्रदीप चिन्योती ने वंदना कटारिया को स्कूल टूर्नामेंट में देखा और पहली बार भारत की तरफ से खेलने में उनकी मदद की। प्रदीप चिन्योती से वंदना कटारिया ने ट्रेनिंग लेना शुरु कर दिया और जल्द ही वह अपनी कड़ी मेहनत के दम पर आगे बढ़ती गई। और उन्हें पहली बार भारत की जूनियर महिला टीम के लिए खेलने का पहला आमंत्रण मिला। आज अपनी मेहनत के दम पर वह 300 अंतर्राष्ट्रीय मैच खेलने वाली पहली भारतीय महिला हॉकी खिलाड़ी बन गई हैं।
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झेलना पड़ा जातिवाद :
हॉकी में अपना नाम रोशन करने के बाद भी वंदना कटारिया का संघर्ष जारी रहा। दलित समुदाय से होने की वज़ह से उन्हें हमेशा लोगों के द्वारा ट्रोल किया जाता रहा। साल 2021 में ओलंपिक में भारतीय महिला हॉकी टीम अर्जेंटीना से हार गई थी। उस दौरान हरिद्वार में रहने वाले वंदना कटारिया के परिवार को सवर्ण लोगों ने जातिसूचक गालियां दी और उनके घर के बाहर पटाखे भी फोड़े थे। सवर्ण लोगों ने उनका मजाक भी उड़ाया और यह भी कहा कि उनकी टीम इसलिए नहीं जीती क्योंकि उसमें बहुत सारे दलित खिलाड़ी थे।
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कास्टिंगबाजी पर वंदना कटारिया का बयान:
इस मुद्दें पर वंदना कटारिया ने मीडिया से बात करते हुए कहा था कि “हम सभी देश के लिए खेल रहे हैं, और जो कुछ भी हो रहा है, जातिवादी टिप्पणियाँ नहीं होनी चाहिए। मैंने इसके बारे में जो भी थोड़ा सुना है, वह मत करो।“
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समर्थन में आईं थीं रानी रामपाल
जब वंदना कटारिया के साथ जातिगत दुर्व्यवहार हुआ था तो इस पर भारतीय महिला हॉकी टीम की कैप्टन, “रानी रामपाल” ने मीडिया से बात करते हुए इस घटना को शर्मनाक बताया और कहा था कि, “हमारी टीम एक साथ काम करती है और इन सभी चीजों से ऊपर है. हम अलग-अलग धर्मों के हैं। कुछ हिंदू हैं; कुछ मुस्लिम हैं; कुछ सिख हैं। हम देश के अलग-अलग हिस्सों से आते हैं. कुछ उत्तर से आते हैं, कुछ पूर्व और दक्षिण से। जब हम इस स्तर पर खेलते हैं तो हम केवल इस फैक्ट को देखते हैं कि हम भारत के लिए खेल रहे हैं. हम उस भारतीय झंडे के लिए काम करते हैं. हम उस झंडे के लिए अपना खून, पसीना और आंसू बहाते हैं। “
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दलित समुदाय को अक्सर जातिगत दुर्वव्यहार का सामना करना पड़ता है। स्पोर्ट्स क्षेत्र में भी खिलाड़ियों को जातिगत दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ता है। उनकी जाति को लेकर उन्हें अक्सर खेलने का अवसर तक नहीं दिया जाता । कभी-कभी अपनी टीम मेंबर्स या कोच के द्वारा भी वह जातिगत भेदभाव का सामना करते हैं। इस तरह के जातिगत भेदभाव की घटनाओं के कारण कुछ भावी खिलाड़ी अपने सपने तक को पीछे छोड़ देते हैं। लेकिन वंदना कटारिया खेल जगत का ऐसा चमकता सितारा है। जिसने जातिगत भेदभाव, रुढ़िवादी धारणाओं की फिक्र न करते हुए अपनी मेहनत के दम पर भारतीय महिला हॉकी टीम में अपना नाम स्वर्ण अक्षरों में अंकित कर भारत का नाम रोशन किया है।
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