मंदिरों में अछूतों के प्रवेश के लिए पंजाबराव देशमुख और अंबेडकर ने उठाए थे ये कदम

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डॉक्टर पंजाबराव देशमुख भारत के पहले कृषि मंत्री थे। पंजाबराव देशमुख का शिक्षा और कृषि के क्षेत्र में बहुत बड़ा योगदान है। देशमुख ने इंजनियरिंग डिग्री, डिप्लोमा तकनीकी, कृषि और मेडिकल कॉलेजों की शुरुआत करके शिक्षा के क्षेत्र में महान योगदान दिया था। देशमुख ने दलितों के लिए भी काम किया था। दलितों के मसीहा बाबा साहेब अंबेडकर के साथ मिलकर उन्होंने “मंदिर प्रवेश सत्याग्रह” भी किया था।

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मंदिर प्रवेश सत्याग्रह की शुरुआत:

दरअसल दलितों को अछूत समझा जाता था जिसकी वजह से उन्हें मानवीय अधिकारों से वंचित रखा जाता था। दलितों को सार्वजनिक स्थल से पानी भरने का अधिकार नहीं था, राजनीतिक संगठन में भाग लेने का अधिकार नहीं था, स्कूलों और कॉलेजों में पढ़ने का अधिकार नहीं था। यहां तक कि मंदिर में भगवान की पूजा करने और मंदिर में प्रवेश करने का भी उन्हें अधिकार नहीं था।
दलितों को अछूत समझकर उनके मंदिर में पूजा करने और प्रवेश पर अधिकार न होने पर, बाबा साहेब अंबेडकर ने “मंदिर प्रवेश सत्याग्रहों” की शुरुआत की थी। इसमें “कालाराम मंदिर प्रवेश” और “पार्वती मंदिर प्रवेश सत्याग्रह” शामिल थे। लेकिन इन सत्याग्रहों की शुरुआत अमरावती के “अंबादेवी मंदिर प्रवेश सत्याग्रह” से हुई थी। इसलिए अंबादेवी मंदिर प्रवेश सत्याग्रह का अंबेडकरी आंदोलनों में एक महत्वपूर्ण स्थान है।

 

PUNJAB RAO DESHMUKH, AGRICULTURE MINISTER , IMAGE CREDIT BY GOOGLE

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मंदिर में दलितों को प्रवेश करने का अधिकार नहीं:

 

अमरावती में “अंबादेवी मंदिर” अपने इतिहास के लिए जाना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि अंबादेवी दर्शन के लिए हिंदू दूर दूर से आते थे। लेकिन मंदिर में दलितों को प्रवेश करने का अधिकार नहीं था। उस समय एक मराठा समाज सुधारक थे “गोविंदराव मेश्राम” जो “महार जाति” से संबंध रखते थे। मेश्राम ने उस वक्त दलितों की सहायता के लिए प्रयत्न किया। उन्होंने अंबादेवी मंदिर पंच समिति को अनुरोध भेजा और दलितों को अंबादेवी मंदिर में प्रवेश की अनुमति देने के लिए “अंबादेवी मंदिर प्रवेश सत्याग्रह” शुरु किया।

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गोविंदराव मेश्राम के इस अनुरोध को अंबादेवी मंदिर पंच समिति ने अस्वीकार कर दिया था। इस वजह से दलित समाज में निराशा का माहौल पैदा हो गया था। उस समय मराठा समाज सुधारक “दादासाहेब बागवे” ने भी इस ओर पहल की थी। एक बार फिर से मंदिर में प्रवेश के लिए अंबादेवी मंदिर पंच समिति को आवेदन भेजने का फैसला किया गया और एक गंभीर आंदोलन की चेतावनी भी दी गई।

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सत्याग्रह समिति का गठन:

“दादासाहेब बागवे” की पहल से दलितों में उत्साह का माहौल देखने को मिला। लेकिन इसके बाद भी अंबादेवी मंदिर पंच समिति ने अपना फैसला नहीं बदला कि अछूतों को मंदिर में प्रवेश की अनुमति दी जाएगी। फिर दलितों ने सत्याग्रह करने का फैसला ले लिया। सत्याग्रह की योजना सफल हो सके इसके लिए सत्याग्रह समिति का गठन किया गया। अंबेडकर के करीबी सक्रिय मराठा नेता “डॉक्टर पंजाबराव देशमुख “ ने इस समिति की अध्यक्षता स्वीकार की। सत्याग्रह समिति ने पूरे अमरावती जिले को कवर किया।

DOCTOR BABA SAHEB AMBEDKAR, IMAGE CREDIT BY GOOGLE

 

 

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मंदिर में प्रवेश के लिए बैठके की गई:

अंबादेवी मंदिर प्रवेश सत्याग्रह के बारे में जन जागरुकता फैलाने और अछूतों के बीच जनमत बनाने के लिए चंदुरबाज़ार, युंथगांव, एलिचपुर आदि में बैठके की गई। “डॉक्टर पंजाबराव देशमुख “ ने अपनी अध्यक्षता में तालुका सत्याग्रह परिषदों का आयोजन किया। अछूतों को मंदिर में प्रवेश के उचित अधिकार मिले इसलिए अमरावती के नेकोलेट पार्क में 28 अगस्त 1927 को बी नानासाहेब तिड़के की अध्यक्षता में बैठके हुई। इस बैठक में पंजाबराव देशमुख, एस.वाई.पाटिल, नानासाहेब, वामनराव घोरपड़े और दलपत सिंह उपस्थित हुए।

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अछूत आंदोलन में छात्रों को शामिल किया गया:

 

अछूतों के मंदिर में प्रवेश के लिए पंजाबराव देशमुख ने कड़ी मेहनत की। मराठा हाई स्कूल के अध्यक्ष पंजाबराव देशमुख और अधीक्षक गोपालराव देशमुख ने अपने हाई स्कूल के छात्रों को जबरन अछूत आंदोलन में शामिल किया। इसकी शिकायत भी की गई थी लेकिन 28 अगस्त 1927 की बैठक में पंजाबराव देशमुख ने कहा कि “अछूतों के आंदोलन में भाग लेने के लिए मराठा हाई स्कूल को बंद करना पड़े, हम सैंद्धांतिक लोगों को इसकी परवाह नहीं है।“ सवर्ण लोगों द्वारा तमाम अपमान सहने के बाद भी पंजाबराव देशमुख और अधीक्षक गोपालराव देशमुख अछूतों के प्रति समर्पित रहे यह उनकी अछूतों के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

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तीन “सूत्री योजना” का गठन:

 

23 सिंतबर 1927 को स्पर्श हिंदुओं की बैठक हुई थी। इस बैठक में उपस्थित सभी हितधारकों ने अंबादेवी मंदिर पंच समिति द्वारा दिए गए प्रस्ताव का समर्थन किया। लेकिन हनुमंतराव देशमुख ने इस पर आपत्ति जताई और कहा “अछूतों के लिए मंदिर प्रवेश के मुद्दें पर सामाजिक तौर पर विचार करना चाहिए। जैसे ईसाई और मुसलमान एक ही मंदिर में जाते हैं। उसी तरह हमें भी किसी के मंदिर में जाना चाहिए।“ हनुमंतराव देशमुख के इस बयान से सनातनी भम्रित हो गए। विरोध करने लगे बैठक में घोषणा हुई कि अंबादेवी मंदिर में अछूतों को प्रवेश की अनुमति नहीं दी जाएगी। इस वजह से हिंदू में अनुकूल और प्रतिकूल दो गुट बन गए इसलिए सहमति बनाना जरुरी हो गया था।

 

 

AMBADEVI TEMPLE, AMRAWATI , IMAGE CREDIT BY GOOGLE

 

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फिर मंदिर में प्रवेश के लिए तीन “सूत्री योजना” का गठन किया गया जो इस प्रकार है:-
1 अंबादेवी मंदिर के चारों ओर एक प्राचीर का निर्माण होना चाहिए, केवल प्राचीर तक ही अछूतों को जाने की अनुमति होनी चाहिए।
2 प्रत्येक व्यक्ति को केवल दिन के निश्चित समय पर मंदिर तक पहुंच होनी चाहिए।
3.उपर्युक्त समय के दौरान अछूतों को मंदिर में प्रवेश नहीं करना चाहिए।

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इस तीन सूत्री योजना से सवर्ण और अछूतों के बीच समझौता करने का प्रयास किया गया लेकिन यह असफल रहा। क्योंकि इस योजना से अछूतों के समानता का उल्लंघन होता है। फिर
सत्याग्रह समिति ने इसे अस्वीकार कर दिया और अंबादेवी मंदिर प्रवेश सत्याग्रह को सफल बनाने का निर्णय लिया।

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नई चेतना का आगमन हुआ:

पंजाबराव देशमुख की पहल पर 13 नवंबर 1927 को बाबा साहेब अंबेडकर की अध्यक्षता में “वरहाद प्रांतीय अछूत परिषद” का आयोजन किया गया था। बाबा साहेब अंबेडकर के आगमन से अंबादेवी मंदिर प्रवेश सत्याग्रह आंदोलन में एक नई चेतना का आगमन हुआ। 25 सिंतबर 1932 की बैठक में अंबादेवी मंदिर में अछूतों का प्रवेश भारी बहुमत से सफल हुआ। 25 सिंतबर 1932 को पंच समिति ने अछूतों के लिए अंबादेवी मंदिर को खोल दिया।

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