भारतीय बहुसंख्यक समाज की विचारधारा और उसकी पहचान को ही भारतीय जनमानस की विचारधारा और पहचान मान लेना न सिर्फ असंगत है बल्कि एक तरह से दूसरे वर्ग, समुदाय और अल्पसंख्यकों की अनदेखी करने जैसा है। सर्वविदित है की भारत विभिन्न भाषाओ, संस्कृतियों और अलग अलग धर्म को मानने वालो का देश है फिर भी भारतीय मीडिया के एक बड़े तबके के द्वारा मूल निवासियों की पहचान को हिन्दू समुदाय की पहचान से परिभाषित करने का खेल काफी समय से चल रहा है।
दलित, शोषित, और समाज से वंचित लोगो के साथ सदियों से चले आ रहे अमानवीय व्यवहार का उत्तरदायी हिन्दू समाज के साथ साथ भारतीय मीडिया का वो धड़ा भी है जिसे ना तो दलितों के साथ हो रहे भेदभाव दिखाई देता है और ना ही आये दिन उनके साथ अपराधों में हो रही अप्रत्याशित वृद्धि । बाबा साहब , मनुवादी मीडिया के भेदभाव पूर्ण रवैय्या और उनकी वास्तविकता से भलीभाँति परिचित थे इसलिए अपने अख़बार मूकनायक के पहले सम्पादकीय में उन्होंने इसके बारे में विस्तार से जिक्र किया था।
उन्होंने लिखा, “बहिष्कृत लोगो पर हो रहे और भविष्य में होने वाले अन्याय के उपाय सोचकर उनकी भावी उन्नति और उनके मार्ग के सच्चे स्वरुप की चर्चा करने के लिए वर्तमान समाचार पत्रों में जगह नहीं है। ज्यादातर समाचार पत्र खास जातियों के हित साधन करने वालो का है। इतना ही नहीं कभी कभी वे दूसरी जाति के लोगो के खिलाफ भी लिखते है ”
दलित समाज को अपने पहचान की लड़ाई की लड़ाई खुद लड़नी होगी। बिना अपना अस्तित्व पहचाने दलित समाज अपने खिलाफ हो रहे अति घृणित अमानवीय व्यवहार की लड़ाई नहीं लड़ पाएगा। इस समाज को न केवल मीडिया में अपनी भागीदारी को बढ़ाना होगा बल्कि कमज़ोर, शोषित और दलितों की दबी अनसुनी आवाज़ को भी मुख्यधारा में लाने के भरसक प्रयास करने होंगे। मीडिया प्रतिष्ठानों में बैठे ऐसे लोगो को भी चिन्हित करना होगा जो ना सिर्फ दलितों के ऊपर हो रहे अत्याचार की खबरों पर अपनी आँख मूंद लेते है अपितु समाज द्वारा किये जा रहे ऐसे कृत्य को सही साबित करने की भी चेष्टा करते है।
*दलित टाइम्स उन करोड़ो लोगो की आवाज़ है जिन्हें हाशिए पर रखा गया है। *
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