मध्यप्रदेश में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं। जीत हासिल करने के लिए कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही पार्टियां खुद को एक दूसरे से बेहतर दिखाने में लगी हुई हैं। लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए पार्टियां जगह-जगह जनसभाओं का आयोजन कर रहीं हैं। पार्टियों का मुख्य उद्देश्य राज्य में आदिवासी और दलितों का वोट बैंक प्राप्त करना है।
क्योंकि राज्य में आदिवासी वोट बैंक 22% है और इस समुदाय का असर 84 सीटों पर देखा जाता है इसलिए पार्टियां आदिवासी समुदाय को अपनी ओर लुभाने की कोशिश कर रहीं हैं।
आदिवासी वोट बैंक के बाद पार्टियों की नज़र दलित वोट बैंक पर भी टिकी है। क्योंकि मध्यप्रदेश में दलितों का वोट बैंक 18% है यानी मध्यप्रदेश में 64 लाख दलित वोटर हैं तो ऐसे में सभी पार्टियों के लिए दलित वोट बैंक भी बेहद ज़रूरी हो जाता है।
आदिवासी वोट बैंक का ही परिणाम था कि 2018 में बीजेपी विधानसभा चुनाव में हार गई थी। अब बीजेपी आदिवासी वोट बैंक को हासिल करने की कोशिश में है। बीजेपी ने 2018 के विधानसभा चुनावों के परिणाम से सबक लिया है।
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2018 के विधानसभा चुनावों में किस पार्टी का रहा वर्चस्व :
2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 47 ट्राइबल रिज़र्व सीट में से 31 पर जीत हासिल की थी जबकि बीजेपी ने 16 सीटों पर जीत हासिल की थी। इन चुनावों में बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा था जबकि कांग्रेस के हित में जीत दर्ज़ हुई थी। शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में चुनाव हारने के बाद बीजेपी 15 महीनों तक सत्ता से बाहर रही लेकिन फरवरी 2020 में मध्यप्रदेश में बीजेपी सत्ता में वापस लौट आई।
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अगर बात करें BSP (बहुजन समाज पार्टी) और GGP (गोंडवाना गणतंत्र पार्टी) की तो मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव के लिए BSP और GGP दोनों पार्टियों ने पहली बार गठबंधन किया है। गोंडवाना गणतंत्र पार्टी का गठन 1991 में हुआ था और यह पार्टी आदिवासी समूहों के लिए काम करती हैं। जानकारी के मुताबिक मध्यप्रदेश में BSP, 178 और GGP , 52 सीटों पर चुनाव लड़ेंगी।
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BSP के लिए इन सीटों पर जीत दर्ज करना जरूरी :
“द इंडियन एक्सप्रेस” की रिपोर्ट के अनुसार दोनों पार्टियों की नज़र दलित और आदिवासी वोट बैंक पर भी है। मध्यप्रदेश की कुल 230 विधानसभा सीटों में से 35 अनुसूचित जाति (SC) के लिए और 47 अनुसूचित जनजाति ST) के लिए आरक्षित हैं। बता दें कि मध्यप्रदेश में आदिवासी समुदाय की आबादी 21 फिसदी से भी ज्यादा है।
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ऐसा भी माना जा रहा है कि उत्तरप्रदेश की सीमा से लगे कुछ इलाकों जैसे बुंदेलखण्ड, ग्वालियर चंबल में दलितों का वोट बैंक ज़्यादा है तो ऐसे में बसपा (BSP) के लिए यह इलाके जीत दर्ज़ कराने में महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं। वहीं (GGP) को बालाघाट, मंडला, डिंडोरी, सिवनी, छिंदवाड़ी जैसे इलाके जीत दिला सकते हैं।
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पिछले चुनावों की बात करें तो (BSP) का प्रदर्शन मध्यप्रदेश में अच्छा नहीं रहा है। 2008 में बसपा ने 7 सीटें जीती थी जो 2013 में घटकर केवल 4 सीट रह गई थी। 2018 में बसपा को केवल 2 सीटें हासिल हुई थी। पिछले चुनावों में GGP पार्टी के बारे में बात करें तो GGP को 2003 में 61 उम्मीदवारों पर 3 सीट मिली थी। 2018 में GGP ने एसपी के साथ गठबंधन कर लिया था जिसमें एसपी को केनल 1 सीट मिली थी।
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चुनावों BSP और GGP की क्या है तैयारी :
BSP और GGP दोनों पार्टियां मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनावों के लिए पूरी तरह से तैयार हैं। BSP और GGP के चुनावी गठबंधन पर BSP के नेता रामजी गौतम ने भी कहा है कि, “मध्यप्रदेश में यह पहली बार है जब अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) समुदाय एक साथ होंगे। अब तक SC समाज के लोग कांग्रेस को वोट देते आए हैं लेकिन अब BSP और GGP दोनों विधानसभा चुनाव में मजबूत विकल्प के रुप में उभरकर सामने आएंगे।“ BSP के नेता रामजी गौतम ने यह भी कहा कि “हम SC/ST समुदाय के खिलाफ होने वाले अत्याचार के मामलों को गांव-गांव तक लेकर जाएंगे। हम शिक्षा, स्वास्थ्य, बेरोजगारी का मुद्दा उठाएंगे।“
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2018 में किसके खेमे में गया था दलित वोट:
साल 2018 के चुनावों में 35 अनुसूचित जाति की सीटों में से कांग्रेस ने 17 सीटों पर जीत हासिल की थी और बीजेपी ने 18 सीटों पर जीत दर्ज की थी।कांग्रेस की 17 सीटें, अंबाह, गोहद, डबरा, भांडरे, करेरा, अशोकनगर, गुन्नौर, जबलपुर पूर्व, गोटेगांव, परासिया, सांची, सोनेकच्छ, महेश्वर, सांवरे, तराना, घाटिया, आलोट रही। वहीं बीजेपी के खेमें में 18 सीटों, गुना, बीना, नरियावली, जतारा, चंदला, हटा, रैगांव, मनगवां, देवसर, आमला, पिपरिया, कुरवाई, बैरसिया,आष्टा, सारंगपुर, आगर, खंडवा, मल्हारगढ़ सीट आई थी।
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2018 में बसपा को मिले थे इतने वोट:
2018 के विधानसबा चुनावों में भिंड, ग्वालियर पूर्व, रामपुर बघेलान में BSP को 50 हजार से अधिक वोट मिले थे जबकि देवताल, पौहारी, सबलगढ़ और जौरा में 40 हजार से अधिक वोट मिले थे। वहीं सिमरिया, सतना, अमरपाटन, पथरिया, गुन्नौर, चंदेरी, लहार में 30 हजार से अधिक वोट मिलें थे।
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मऊगंज, गुढ़, चित्रकूट, नागौद, पन्ना, महाराजपुर, चंदला, राजनगर, मलहरा, निवाड़ी, मेहगांव में 20 हजार से अधिक वोट मिलें जबकि सिरमौर, त्योंथर, मनगवां, मैहर, जबेरा, पटाई, खरगापुर, शिवपुरी, कोलारस, सेवड़ा, अटेर, दिमनी, भितरवार में 20 हजार से कम वोट मिलें थे।
बम्हौरी, ग्वालियर, अंबाह, भांडेर, टीकमगढ़, बंडा, सागर, बीना, बिजावर, छतरपुर, रीवा में BSP को 5 हजार से अधिक वोट मिलें थे। अब देखना ये है कि मध्यप्रदेश में चुनावी माहौल जो गर्माया हुआ है उसके नतीजे किसके लिए अच्छे साबित होते हैं और किसको हार से संतोष करना पड़ेगा।
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